पिछले आम चुनाव में रोजगार एक बड़ा मुद्दा
बना था, जिसे ठोस रूप
देने के लिए मोदी सरकार ने 'मेक इन इंडिया' और 'स्किल इंडिया' को अपने वर्किंग अजेंडा में काफी ऊंची जगह दे
रखी है। इन दोनों नारों का जमीनी शक्ल लेना अभी बाकी है, लेकिन इन पर काम करते हुए सरकार को भारतीय
युवाओं के कौशल और रोजगार को जोड़ने वाली बारीकियों को ध्यान में रखना चाहिए। लेबर
ब्यूरो द्वारा 2014 के लिए पेश की गई रिपोर्ट बताती है कि कुछ ऊंची नौकरियों को छोड़ दें तो
भारत के रोजगारदाता किसी को छोटी या मझोली नौकरियों पर रखते वक्त उसके कौशल से
ज्यादा उसके तजुर्बे पर नजर रखते हैं।
रिपोर्ट बताती है कि अगर आपके पास किसी ट्रेड
से जुड़ा डिप्लोमा है तो आपको नौकरी मिलने की गुंजाइश अपेक्षाकृत कम होगी। वजह? डिप्लोमा होल्डर होने के चलते आप बेहतर पगार
की उम्मीद करेंगे, हालांकि कंपनी को तुरंत एक प्रफेशनल के रूप में आपकी सेवाएं मिलनी शुरू
नहीं होंगी। इसके बजाय एक अकुशल व्यक्ति, जो बहुत कम पैसों पर कहीं छोटा-मोटा काम पकड़ कर दस जगह धक्के खाता हुआ
बेहतर काम की तलाश में उसी कंपनी के पास पहुंचा है, उसके लिए ज्यादा काम का साबित होता है, क्योंकि वह तुलनात्मक रूप से पैसे भी कम
मांगता है और पहले ही दिन संतोषजनक नतीजे भी देना शुरू कर देता है।
अध्ययन के नतीजे लोगों को डिप्लोमा लेने से हतोत्साहित करने वाले हैं। इनके मुताबिक आईटीआई या किसी और स्किल सेंटर से डिप्लोमा लेकर निकले व्यक्तियों में बेरोजगारी की दर 14.5 प्रतिशत है। सिविल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग के क्षेत्रों को छोड़ दें तो बाकी सभी क्षेत्रों के डिप्लोमा होल्डरों में पचीस फीसदी से भी ज्यादा लोग बेरोजगार हैं। खासकर कपड़ा उद्योग संगठित क्षेत्र में भारतीय युवाओं को सबसे ज्यादा रोजगार देता रहा है, लेकिन अभी हालत यह है कि इससे जुड़ी स्किल ट्रेनिंग लेकर निकले लोगों में 17 फीसदी बेरोजगार हैं। रिपोर्ट बताती है कि पिछले दस सालों में हर साल एक करोड़ 20 लाख लोग जॉब मार्केट में आ रहे हैं, लेकिन हर साल औसतन 55 लाख लोगों को ही कोई न कोई रोजगार मिल पा रहा है।
अध्ययन के नतीजे लोगों को डिप्लोमा लेने से हतोत्साहित करने वाले हैं। इनके मुताबिक आईटीआई या किसी और स्किल सेंटर से डिप्लोमा लेकर निकले व्यक्तियों में बेरोजगारी की दर 14.5 प्रतिशत है। सिविल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग के क्षेत्रों को छोड़ दें तो बाकी सभी क्षेत्रों के डिप्लोमा होल्डरों में पचीस फीसदी से भी ज्यादा लोग बेरोजगार हैं। खासकर कपड़ा उद्योग संगठित क्षेत्र में भारतीय युवाओं को सबसे ज्यादा रोजगार देता रहा है, लेकिन अभी हालत यह है कि इससे जुड़ी स्किल ट्रेनिंग लेकर निकले लोगों में 17 फीसदी बेरोजगार हैं। रिपोर्ट बताती है कि पिछले दस सालों में हर साल एक करोड़ 20 लाख लोग जॉब मार्केट में आ रहे हैं, लेकिन हर साल औसतन 55 लाख लोगों को ही कोई न कोई रोजगार मिल पा रहा है।
जाहिर है, कुशल और शिक्षित बेरोजगारों की दिनोंदिन लंबी
होती कतार को भारत की विकास कथा का हिस्सा बनाने के लिए सिर्फ कोई एक पेच पकड़ कर
काम करना काफी नहीं है। मसलन, यह कहना बेमानी है कि पेचकस चलाने वाला अगर ज्यादा अच्छी तरह पेचकस चलाएगा
तो उसे रोजगार मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। सरकार अगर नए स्किल डिवेलपमेंट सेंटरों
के लिए पैसा जारी करती है तो उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इनसे निकले युवाओं
को न सिर्फ काम मिले, बल्कि उन्हें उनके कौशल के अनुरूप और बेहतर पगार वाला काम मिले। इसके लिए
बेरोजगार युवाओं से पहले तमाम छोटी-बड़ी रोजगारदाता कंपनियों को स्किल इंडिया
कैंपेन का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।(ref : NBT Edit )
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