सतीश पेडणोकर
भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाकर
करोड़ों लोगों को रोजगार देने के लिए मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया जैसी
महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है। देशिवदेश में इसकी र्चचा है। लेकिन इसे सफल बनाने
के लिए देशी-विदेशी पूंजी निवेश और आर्थिक सुधार जितने जरूरी हैं, उतना ही जरूरी है कौशल या हुनरमंद
श्रमशक्ति। यदि देश के पास हुनरमंद लोग नहीं होंगे तो पूंजी निवेश और आर्थिक सुधार
जैसे कारक भी मेक इन इंडिया को सफल बनाने में नाकाम साबित होंगे। न केवल श्रमशक्ति
हुनरमंद होनी चाहिए, बल्कि
नियंतण्र स्तर पर प्रतियोगी भी होनी चाहिए। इसीलिए मेक इन इंडिया को सफलता के लिए
सरकार ने एक और महत्वाकांक्षी योजना स्किल इंडिया शुरू की है। भारत सवा सौ करोड़
की विशाल मनुष्यशक्ति का देश है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह युवाशक्ति
का देश है। 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र की है। इसमें
शिक्षित युवाशक्ति की तादाद भी अच्छी- खासी है, लेकिन भारत की यह खूबी तब कमजोरी
में बदल जाती है जब स्किल या हुनर की बात आती है। इन शिक्षित लोगों में बड़ी
संख्या ऐसे लोगों की है जिनके पास कोई हुनर नहीं है। हमारी शिक्षा व्यवस्था ने
युवाओं को शिक्षा तो दी, मगर
कोई स्किल नहीं दी जिससे वे किसी उद्योग या व्यवसाय में नौकरी पा सकें या अपना
व्यवसाय खुद शुरू कर सकें। दरअसल, हुनर भी ऐसा होना चाहिए, जिसकी बाजार में मांग हो। हमारी
शिक्षा व्यवस्था का आधुनिक उद्योगों की जरूरतों के साथ कोई तालमेल ही नहीं है।
हमारे स्कूलों और कॉलेजों से पढ़कर निकले छात्र उद्योगों की जरूरतों को पूरा नहीं
कर पाते, इसलिए
नौकरी पाने लायक नहीं होते। हमारी शिक्षा पद्धति की विडंबना यह है कि हमने शिक्षा
को किताबी बना दिया, उसे
रोजगार से जोड़ने की कोशिश नहीं की। दिल्ली विविद्यालय के कुलपति दिनेश सिंह कहते
हैं कि हमने 2011 में मुंबई की एक बड़ी फाइनेंशियल कॉरपोरेशन कंपनी को आमंत्रित किया
था कि वह छात्रों को अपने यहां नौकरी के लिए नियुक्त कर सके। इसके लिए स्नातक स्तर
के अभ्यार्थियों से कंपनी बुनियादी जानकारी की अपेक्षा कर रही थी, लेकिन 1200
अभ्यर्थियों में महज
तीन अभ्यार्थियों को कंपनी ने चुना। दरअसल, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद समय
दर समय शिक्षा के क्षेत्र में बहुत-सी गलतियां हुई हैं, जो राष्ट्र के विकास में अवरोध
पैदा कर रही हैं। यदि 1200 छात्रों में केवल तीन छात्र चुने जाते हैं तो इसका मतलब यही है कि
हम छात्रों को हुनरमंद नहीं बना पा रहे हैं।
सीआईआई की नवीनतम रपट इंडिया स्किल
रिपोर्ट-2015 के मुताबिक, हर
साल सवा करोड़ युवा रोजगार बाजार में आते हैं लेकिन ये तभी हमारे लिए एसेट बन सकते
हैं जब वे आधुनिक उद्योगों की जरूरतों के मुताबिक सही तरीके से प्रशिक्षित हों।
अन्यथा वे बेरोजगारों की फौज ही बढ़ाएंगे। रपट के मुताबिक अभी आने वाले युवाओं में
से 37 प्रतिशत ही रोजगार के काबिल होते हैं। यह आंकड़ा कम होने के बावजूद
पिछले साल के 33 प्रतिशत के आंकड़े से ज्यादा है और संकेत देता है कि युवाओं को
स्किल देने की दिशा में धीमी गति से ही सही काम हो रहा है। सरकार हमारी शिक्षा
व्यवस्था की इस मूलभूत कमी को दूर करने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी इस
बारे में बहुत ज्यादा सचेत हैं और इस दिशा में निरंतर कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने शिक्षक दिवस के दिन छात्रों के लिए स्किल की आवश्यकता पर बहुत जोर
दिया। चुनाव प्रचार के दौरान भी उन्होंने बार-बार कहा था कि हमें स्किल्ड इंडिया
बनाना है। इसके पीछे का तर्क किसी को भी समझ में आने वाला है कि देश के करोड़ों
लोगों को रोजगार केवल तभी दिया जा सकता है, जब उनके पास कोई स्किल हो। ऐसा न
होने के कारण ही आज देश की हालत यह है कि एक तरफ करोड़ों लोग बेरोजगार हैं, तो दूसरी तरफ लोगों को जरूरत के
समय प्लंबर, कारपेंटर
आदि सामान्य तकनीशियन तक नहीं मिल पाते। उद्योगों को भी कई तरह के तकनीशियन चाहिए
होते हैं मगर उन्हें कुशल और हुनरमंद लोग मिल नहीं पाते। हुनर की मांग और
आपूत्तर्ि में इस खाई की वजह यह है कि हमारे देश में स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान ही
नहीं दिया गया। यदि भारत में मौजूद युवाशक्ति के स्किल विकास पर ध्यान दिया जाए तो
हमारा देश निश्चित ही विकास के मामले में सफलता के झंड़े गाड़ सकता है। आज के
जमाने में विकास के लिए संसाधन, पूंजी आदि जितना ही जरूरी है
हुनरमंद मानवीय संसाधन। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि देशभर में स्किल विकास
केंद्रों का जाल हो, साथ
ही साथ इन केंद्रों को उद्योगों के साथ जोड़ा जाए। यह सही है कि विकास के लिए सही
नीतियों का चुनाव जरूरी है, लेकिन
विकास और स्किल का भी चोली-दामन का साथ रहा है। यदि देश में स्किल का विकास न हो
तो विकास बहुत लंबी दूरी तक नहीं जा पाता, उसे लोगों में स्किल विकसित होने
तक का इंतजार करना ही पड़ता है। इसलिए इन दिनों विकास के लिए मानव संसाधनों के
विकास की जरूरत पर भी बल दिया जाने लगा है। इसका मतलब है कि देश के नागरिक
पढ़े-लिखे हों और उनके पास इस तरह का हुनर हो जिसके जरिये वे विकास में अहम योगदान
दे सकें। स्किल भी ऐसी होनी चाहिए जिसकी उद्योग और व्यापार धंधों को जरूरत हो और
जिसे नवीनतम तकनीक के अनुसार ढाला जा सके। अगर लोगों के पास स्किल हो और बाजार की
मांग के अनुसार न हो तो स्किल और बाजार के बीच में मिसमैच हो जाएगा। ऐसी स्थिति
में स्किल होने के बावजूद लोगों को रोजगार नहीं मिल पाएगा। यही कारण है 44 प्रतिशत कंप्यूटर ट्रेनिंग लेने
वाले और 60 प्रतिशत टैक्सटाइल से जुड़े स्किल की ट्रेनिंग लेने वाले खाली बैठे
हैं। यह समस्या केवल हमारे ही नहीं, बाकी देशों की भी है और उन्होंने
इसे अपने तरीके से सुलझाया है। जर्मनी में चैंबर आफ कॉमर्स इस तरह की स्किल्स पर
नजर रखता है जिनकी उद्योगों को आवश्यकता है और उसके लिए पाठ्यक्रम बनाने और उसे
लागू करने में मदद करता है। हमारी औद्योगिक संस्थाओं फिक्की और सीआईआई को इससे सबक
लेना चाहिए और कुशल मानव संसाधन चाहिए तो उन्हें इस दिशा में कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि देश में वोकेशनल संस्थाएं
बहुत कम हैं। अभी जो वोकेशनल संस्थाएं हैं, अपनी पूरी क्षमता से काम करें तो
भी हर साल स्कूल छोड़ने वालों में से केवल तीन प्रतिशत को ही वोकेशनल ट्रेनिंग दे
सकती हैं।
दरअसल, पश्चिमी
देश पिछले वर्षो के अनुभव के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अकादमिक शिक्षा की तरह
ही बाजार की मांग के मुताबिक उच्च गुणवत्ता वाली स्किल की शिक्षा देनी भी जरूरी
है। एशिया की आर्थिक महाशक्ति दक्षिण कोरिया ने स्किल विकास के मामले में चमत्कार
कर दिखाया है और उसके चौंधिया देने वाले विकास के पीछे स्किल विकास का सबसे
महत्वपूर्ण योगदान है। इस मामले में उसने जर्मनी को भी पीछे छोड़ दिया है। 1950
में दक्षिण कोरिया की
विकास दर हमसे बेहतर नहीं थी। लेकिन इसके बाद उसने स्किल विकास में निवेश करना
शुरू किया। यही वजह है कि 1980 तक वह भारी उद्योगों का हब बन गया। उसके 95 प्रतिशत मजदूर स्किल्ड हैं या
वोकेशनली ट्रेंड हैं, जबकि
भारत में यह आंकड़ा तीन प्रतिशत है। ऐसी हालत में भारत कैसे आर्थिक महाशक्ति बन
सकता है। स्किल इंडिया बनाने के अपने इरादे के तहत मोदी सरकार ने अलग मंत्रालय
बनाया है। यह बताने के लिए कि सरकार इसे कितना महत्व देती है, नेशनल स्किल डेवलपमेंट मिशन भी
बनाया गया है। हमारे देश में स्किल विकास का कार्यक्रम नया नहीं है लेकिन स्वतंत्र
मंत्रालय जरूर नया है। इसलिए नए एप्रोच की जरूरत है। वैसे यह सवाल बार-बार उठ रहा
है कि केंद्र सरकार पहले की तरह हर योजना को स्वतंत्र रूप से पैसा देगी या इस
मंत्रालय को ही सभी स्किल विकास के कार्यक्रमों के संचालन की जिम्मेदारी दे दी
जाएगी। यह भले ही निकट भविष्य में न हो, लेकिन आखिर में ऐसा ही होना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
मेक इन इंडिया को हिंदी में भारत निर्माण कहेंगे ना ?
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