शशांक द्विवेदी
अंतरिक्ष
अभियानों से कमाई
दैनिक जागरण |
ध्रुवीय उपग्रह
प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का यह 30वां मिशन था । पीएसएलवी की 30वीं
उडान में तीन एक समान डीएमसी3 ऑप्टिकल पृथ्वी निगरानी उपग्रह थे जिनका
निर्माण ब्रिटेन ने किया है। इसके साथ ही दो सहायक उपग्रह भी थे। 447
किलोग्राम वजन वाले तीनों डीएमसी3 उपग्रहों को पीएसएलवी-एक्सएल के आधुनिक संस्करण का उपयोग
करते हुए 647
किलोमीटर दूर सौर-समकालिक कक्षा में स्थापित किया गया। इन तीन डीएमसी3
उपग्रहों के साथ पीएसएलवी-सी28 ब्रिटेन के दो सहायक उपग्रहों सीबीएनटी-1 और
डी-ऑर्बिटसेल को भी ले गया है ।
सीबीएनटी-1 एक
पृथ्वी अवलोकन का लघु तकनीक प्रदर्शक उपग्रह है और डी-ऑर्बिटसेल एक सूक्ष्मतम
(नैनो) तकनीक प्रदर्शक उपग्रह है । इन पांच अंतरराष्ट्रीय उपग्रहों को डीएमसी
इंटरनेशनल इमेजिंग (डीएमसीआईआई) और एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड ,जो कि
इसरो की व्यावसायिक शाखा है के बीच करार
के तहत प्रक्षेपित किया गया है । डीएमसी3 के इस समूह में तीन आधुनिक
छोटे उपग्रह डीएमसी3-1, डीएमसी3-2 और डीएमसी3-3 शामिल
हैं। इनका निर्माण इस तरह से किया गया है कि इससे धरती के किसी हिस्से की जल्द से
जल्द बेहतरीन गुणवत्ता वाली या ये कहें कि अधिक मेगा पिक्सल वाली तस्वीर प्राप्त
हो सके। ये सेटेलाइट धरती के किसी भी हिस्से की तस्वीर हर दिन ले सकते हैं। जिसका
उपयोग पर्यावरण सर्वेक्षण और आपदा प्रबंधन के लिए किया जाना है।
पांच
ब्रिटिश उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत अब तक 19
देशों के 45 उपग्रहों को अंतरिक्ष भेज चुका है। और भारत
इस तरह के व्यावसायिक प्रक्षेपण करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है । वास्तव
में विदेशी उपग्रहों का यह सफल प्रक्षेपण ‘भारत
की अंतरिक्ष क्षमता की वैश्विक अभिपुष्टि’ है।
वास्तव में ये सफलता कई मायनों में बहुत खास है क्योंकि एक समय था जब भारत अपने
उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था और आज भारत विदेशी
उपग्रहों के प्रक्षेपण से अरबों डालर की विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है । जिससे
भारत को वाणिज्यिक फायदा हो रहा है । इसरो के कम प्रक्षेपण लगत की वजह से दूसरे
देश भारत की तरफ लगातार आकर्षित हो रहें है । इसरो द्वारा 45
विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से देश के पास काफी विदेशी मुद्रा आई है। इसके साथ ही अरबों डॉलर के अंतरिक्ष बाजार में
भारत एक महत्वपूर्ण देश बनकर उभरा है । चाँद और मंगल अभियान सहित इसरो अपने 100
से ज्यादा अंतरिक्ष अभियान पूरे करके पहले
ही इतिहास रच चुका है ।
लोकमत |
यह सफलता अंतरिक्ष जगत
के दो वैश्विक प्रतिस्पर्धियों भारत और ब्रिटेन के बीच सहयोग की मिसाल भी बनेगी। अमेरिका
की फ्यूट्रान कॉरपोरेशन की एक शोध रिपोर्ट भी बताती है कि अंतरिक्ष जगत के छोटे
खिलाडियों के बीच इस तरह का अंतरराष्ट्रीय सहयोग रणनीतिक तौर पर भी सराहनीय है।
वास्तव में इस क्षेत्र में किसी के साथसहयोग या भागीदारी सभी पक्षों के लिए
लाभदायक स्थिति है। इससे बड़े पैमाने पर लगने वाले संसाधनों का बंटवारा हो जाता है।
खासतौर पर इसमें होने वाले भारी खर्च का। यह भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की वाणिज्यिक
प्रतिस्पर्धा की श्रेष्ठता का गवाह है ।
पांच ब्रिटिश उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण से उत्साहित इसरो
अध्यक्ष किरन कुमार ने कहा है कि आने वाले दिनों में इसरो ने कई प्रक्षेपणों की
योजना बनायी है।उनमें मार्च 2016 से
पहले जीएसएलवी-मार्क 2 और
तीन नौवहन उपग्रहों का प्रक्षेपण शामिल है।इसरो निकट भविष्य में एस्ट्रोसेट
एस्ट्रोनोमी, सेटेलाइट
मिशन व जीसेट शृंखला के उपग्रह तथा एनआई एसएआर (राडार सेटेलाइट) लांच करेगा। संगठन
जीएसएलवी-एमके तथा रियूजेबल लांच व्हीकल आरएलवी-टीडी भी विकसित कर रहा है।
चंद्रयान तथा वीनस मिशन के अलावा पुच्छल तारों से संबंधित मिशन भी इसरो की सूची पर
है। सूर्य मिशन ‘आदित्य’ तथा स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरिमेंट भी योजना में शामिल
है। भारत की अंतरिक्ष योजना भविष्य में
मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन भेजने की है। लेकिन इस तरह के अभियान की सफलता सुनिश्चित
करने के लिए अभी बहुत सारे परिक्षण किए जाने हैं।
इन पाँच ब्रिटिश उपग्रहों के सफल परीक्षण से साबित होता है कि भारत के पास
प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में जिस तरह
कम संसाधनों और कम बजट में न सिर्फ अपने आप को जीवित रखा है बल्कि बेहतरीन
प्रर्दशन भी किया है। भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा बढेगी क्योकि यह अरबों डालर का मार्केट है । भारत के पास कुछ बढत पहले से है, इसमें और प्रगति करके इसका बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उपयोग संभव है ।
कुछ साल पहले तक फ्रांस की एरियन स्पेश कंपनी की मदद से भारत अपने उपग्रह छोड़ता था, पर अब वह ग्राहक के बजाए साझीदार की भूमिका में पहुंच गया है । यदि
इसी तरह भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त
करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे यान अंतरिक्ष यात्रियों को चांद, मंगल या अन्य ग्रहों की सैर करा सकेंगे। भारत अंतरिक्ष विज्ञान में
नई सफलताएं हासिल कर विकास को अधिक गति दे सकता है ।देश में गरीबी दूर करने और विकसित भारत के सपने को पूरा करने में इसरो की इस तरह अंतरिक्ष में सफलता बहुत जरुरी है ।
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