जो लोग पिता नहीं पा रहे थे उनके लिए
खुशखबरी है। जी हां फ्रांस के वैज्ञानिकों
ने वो कर दिखाया है जिसके सुनकर ऐसे मर्द खुशी से उछल पड़ेंगे। वैज्ञानिकों ने दुनिया में पहली बार
स्पर्म सेल विकसित करने का दावा किया है। इससे उन पुरुषों के इलाज की उम्मीद बढ़ गई है, जो स्पर्म नहीं बनने के कारण पिता नहीं बन पाते हैं। इन वैज्ञानिकों की माने तो अब
प्रतिवर्ष 50,000 लोगों के इलाज हो पाएगा जो पिता बन पाने में अक्षम है। इससे उन
पुरुषों के इलाज की उम्मीद बढ़ गई है जो स्पर्म नहीं बनने के कारण पिता नहीं बन पाते हैं। वैज्ञानिकों की माने तो जेनेटिस
सामग्री से पूर्णत: क्रियाशील सीमन का निर्माण कर लिया है। उनका दावा है कि वह इसके प्री-क्लीनिकल ट्रायल
में सफल रही है और अगले दो साल के भीतर
क्लीनिकल ट्रायल में बच्चे को जन्म देने की स्थिति में आ जाएगी। इन वैज्ञानिकों की माने तो अब प्रतिवर्ष
50,000 लोगों के इलाज हो पाएगा जो पिता बन पाने में अक्षम है। इससे उन
पुरुषों के इलाज की उम्मीद बढ़ गई है जो स्पर्म नहीं बनने के कारण पिता नहीं बन पाते हैं। प्रयोगशाली में स्पर्म तैयार करना एक
लंबी प्रक्रिया
है। प्री-क्लीनिकल ट्रायल में ये वेज्ञानिक सफल रहे है और उनका दावा है कि अगले दो साल के भीतर
क्लीनिकल ट्रायल में बच्चे को जन्म देने
की स्थिति में आ जाएंगे। कैलिस्टेम
के मुताबिक स्पर्मेटोगोनिया नामक ये कोशिकाएं परखनली में परिपक्व स्पर्म के रूप में विकसित हुई हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक उनकी टीम ने
आईवीएफ के लिए स्वीकृत शुक्राणु बनाने की आवश्यक तकनीक विकसित करने में पूर्णता हासिल कर चुकी है।
इस नयी खोज से भविष्य में स्पर्म डोनर की जरूरत खत्म हो सकती है. क्या है इस संबंध में वैज्ञानिकों का दावा और
किस तरह से इससे बच्चे को जन्म देने की बनायी गयी है योजना आदि समेत इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर ये
विशेष लेख
आपमें से ज्यादातर लोगों ने वर्ष 2012 में आयी गयी फिल्म ‘विकी डोनर’ जरूर देखी होगी.
इसके निर्देशक शुजीत सरकार ने इस फिल्म में दिल्ली महानगर में स्पर्म से जुड़े मामलों, खासकर संतान पैदा करनेवाले मामलों को लोगों द्वारा छिपते-छिपाते इलाज कराने के दौर से
आगे बढ़ते हुए स्पर्म के कारोबार को बड़े ही सहज तरीके
से प्रस्तुत किया है.
फिल्म में अन्नू कपूर एक स्पर्म विशेषज्ञ डॉक्टर चड्ढा की भूमिका में हैं, जो किसी इंसान की स्पर्म की खासियतों को परखने में माहिर
हैं. डॉ चड्ढा की नजरों में आये फिल्म के नायक
आयुष्मान खुराना को वे उसका स्पर्म डोनेट करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, ताकि उससे उनका कारोबार तेजी से बढ़े और आयुष्मान को आमदनी का एक अलग जरिया मिल जाये. साथ
ही इससे उन लोगों को सबसे ज्यादा फायदा हो, जो विवाहित युगल स्पर्म के अभाव में
संतान-सुख से वंचित हैं.
हालांकि, इस फिल्म की कहानी में इसके नायक ‘विकी’ पर कुछ ज्यादा ही फोकस किया गया है, लेकिन साथ ही एक अन्य पहलू को भी सहजता
से दर्शाया गया है. दरअसल, महानगरीय जीवन में स्पर्म की कमी ङोलनेवाले दंपतियों पर
पड़े परदे को भी उधेड़ने का काम इस फिल्म के
जरिये किया गया है.
इस फिल्म में भले ही स्पर्म की कमी से जूझ रहे लोगों को संतान-सुख के लिए भाग-दौड़ करते हुए दिखाया गया है, लेकिन हाल ही में इसे लैबोरेटरी में विकसित किये जाने की खबरें आयी हैं, जिससे यह उम्मीद जगी है कि अब इस प्रकार के दंपतियों को किसी ‘विकी’ जैसे स्पर्म ‘डोनर’ को नहीं खोजना
होगा.
फ्रांस की एक कंपनी ने लैबोरेटरी में स्पर्म सेल्स को विकसित करने के दावा किया है. ‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट में
बताया गया है कि स्पर्म की कमीवाले पुरुषों के लिहाज से इसे विकसित किया गया है, ताकि उनका दांपत्य जीवन इससे प्रभावित न हो. कंपनी का कहना है कि जेनेटिक
मैटेरियल को परिवर्तित रूप देते हुए पूरी तरह से
कार्यकुशल स्पर्म बनाया गया है. हालांकि, यह अभी परीक्षण के दौर में है. लेकिन
माना जा रहा है कि इसकी सफलता का सत्यापन
होने के बाद यह दुनियाभर में उन लाखों व्यक्तियों की जिंदगी को बदलने की क्षमता रखता है, जो अपना स्पर्म पैदा करने में सक्षम नहीं हैं.
50,000 लोगों को होगा फायदा
हालांकि, इसे किस प्रकार से विकसित किया गया है, इस संबंध में तथ्यों को प्रकाशित नहीं किया गया है. साथ ही
इसकी पुष्टि का आधार क्या है या स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि की गयी है, ये सब चीजें सवालों के दायरे में हैं और शायद यही वजह है कि ब्रिटिश विशेषज्ञों ने फिलहाल इस
दावे को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है.
दूसरी ओर केलिस्टेम लैबोरेटरी का यह दावा है कि उसने बेसिक मेल फर्टिलिटी सेल्स (पुरुषों की मूलभूत
प्रजनन कोशिकाओं) को टेस्ट ट्यूब में परिपक्व वीर्य के तौर पर परिवर्तित करने में सफलता हासिल की है, जिसे स्पर्माटोगोनिया कहा जाता है. इस फर्म के सीइओ इजाबेल क्यूओक का कहना है कि केलिस्टोम ने एक ऐसे मसले पर फोकस करते हुए उसे विकसित करने
का काम किया है, जिसके नतीजे पूरी दुनिया में अच्छे देखे जा सकते हैं.
उन्होंने उम्मीद जतायी है कि दुनियाभर में प्रजनन क्षमता की समस्या से जूझ रहे पुरुषों के लिए यह उपयोगी साबित
हो सकता है. उनका यह दावा है कि उनकी टीम ने पहली बार ‘इन विट्रो फर्टलिइजेशन’ यानी लैबोरेटरी में वीर्य प्रत्यारोपण करने के लिए पर्याप्त मात्र
में वीर्य के निर्माण की तकनीक को विकसित किया है. वे मानते हैं कि इसका वैश्विक कारोबार कई अरब डॉलर का हो सकता है. उल्लेखनीय है कि दुनियाभर में ‘इन विट्रो फर्टलिइजेशन’ का इस्तेमाल काफी वर्षो से किया जा रहा है.
क्या है स्पर्मेटोजेनेसिस
स्पर्मेटोजेनेसिस यानी शुक्राणुजनन वह प्रक्रिया है, जिसके तहत मूलभूत प्रजनन कोशिकाएं स्पर्म में परिवर्तित होती हैं और यह बेहद
जटिल प्रक्रियाओं में शामिल है. आम तौर पर
इंसान के शरीर में इसे अपना स्थान बनाने में करीब 72 दिनों का समय लगता है.
इस दौरान मूलभूत कोशिकाओं की नियमित आपूर्ति से वे परिपक्व वीर्य में तब्दील हो जाते हैं. लेकिन कुछ लोगों में
शुक्राणुओं के नहीं बनने की स्थितियां पैदा हो जाती हैं या वीर्य का असामान्य उत्पादन होने की दशा में उसका असर उनकी प्रजनन क्षमता पर पड़ता
है.
वैज्ञानिक पिछले 15 वर्षो से एक ऐसी प्रक्रिया को विकसित
करने में जुटे हैं, जिसके तहत प्रजननक्षमताविहीन पुरुष के अपरिपक्व शुक्राणुओं
को हासिल करते हुए उसे प्रजननक्षमता से
युक्त पुरुष में ट्रांसफोर्म किया जा सके, जिसके जरिये आइवीएफ के इस्तेमाल से बच्चे
को जन्म दिया जा सके. वैसे चूहों में कृत्रिम रूप से इस तरह की प्रक्रिया को अंजाम दिये जाने को पूर्व में कई बार दर्शाया जा
चुका है, लेकिन कंपनी का यह दावा है कि मानवीय कोशिकाओं में इसके इस्तेमाल को
पहली बार प्रदर्शित किया गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि इसके अगले चरण में यह दर्शाया जायेगा कि प्री-क्लिनीकल ट्रायल में यह प्रक्रिया
सुरक्षित पायी गयी है. इसका अगला चरण अगले वर्ष तक प्रदर्शित किये जाने की उम्मीद जतायी गयी है.
2017 में पहला परीक्षण
केलिस्टेम लैबोरेटरी का दावा है कि यदि इसका प्री-क्लिनीकल ट्रायल सफल रहा, तो उन्हें यह उम्मीद है कि वर्ष 2017 तक वे इस स्थिति में होंगे कि क्लिनीकल ट्रायल से एक बच्चे को जन्म
दिया जा सके. इस कार्य को अंजाम देने के लिए विशेषज्ञ सामान्य बायोप्सी के माध्यम से इंसान के अंडकोष से अपरिपक्व स्पर्माटोगोनिया का सैंपल
निकालेंगे और उस जेनेटिक मैटैरियल को परिपक्व स्पर्म में परिवर्तित करेंगे. और इस तरह से उस परिपक्व स्पर्म का इस्तेमाल पारंपरिक आइवीएफ प्रक्रिया को
अंजाम देने के लिए किया जायेगा. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि कोई इंसान तत्काल बच्चे का पिता नहीं बनना चाहता, तो ऐसी स्थिति में उसके स्पर्म को फ्रीज
करके रख लिया जायेगा और भविष्य में उसका इस्तेमाल
किया जा सकता है.
कैरोलिना को नहीं पता उनका पिता कौन?
ब्रिटेन में पैदा हुई 30 वर्षीया कैरोलिना हैस्टीड को यह नहीं पता
कि उनका पिता कौन है. ‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट के
मुताबिक, कैरोलिना का जन्म लंदन में कृत्रिम तरीके से करवाया गया था.
दरअसल, डॉक्टरों का कहना था कि इनके पिता अपनी
प्रजननक्षमता खो चुके हैं. ऐसी स्थिति
में कैरोलिना का जन्म किसी अज्ञात पुरुष के शुक्राणु के इस्तेमाल से किया गया था. कैरोलिना का मामला महज एक उदाहरणभर हो सकता है, लेकिन दुनियाभर में ऐसे लाखों लोग हो सकते हैं, जिन्हें उनके
जैविक पिता के बारे में जानकारी नहीं होगी. ऐसे में लैबोरेटरी में बनाये जाने वाले स्पर्म से इस तरह के सवाल ही पैदा नहीं होंगे कि किसी अन्य
व्यक्ति के स्पर्म का इस्तेमाल करते हुए पैदा किये गये बच्चे का पिता कौन है.
पूर्व में किया गया दावा
कुछ वर्षो पूर्व ब्रिटेन में के न्यूकासल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मानव
शुक्राणु बनाने का दावा किया था. वैज्ञानिकों का मानना था कि दुनिया में पहली बार हुए इस प्रयोग की सफलता से पुरु षों में पिता नहीं बन पाने की
समस्या को दूर करने में मदद मिल सकती है.
न्यूकासल विश्वविद्यालय और नॉर्थइस्ट स्टेम सेल इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में
स्पर्म विकसित करने के सफल प्रयोग की रिपोर्ट विज्ञान पत्रिका ‘स्टेम सेल एंड
डेवलपमेंट’ में प्रकाशित की गयी थी. हालांकि, उस वक्त इस क्षेत्र से संबंधित कई अन्य
वैज्ञानिकों ने इस बात पर संदेह जताया था
कि पूरी तरह से विकसित शुक्राणुओं को प्रयोगशाला में पैदा किया गया. लेकिन न्यूकासल के वैज्ञानिकों ने एक वीडियो
जारी कर दावा किया था कि उनके द्वारा बनाये गये
शुक्राणु पूरी तरह विकसित और गतिशील हैं.
इस प्रयोग से जुड़े न्यूकासल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रोफेसर करीम नेयर्निया के हवाले से ‘बीबीसी’ की एक रिपोर्ट में
बताया गया है कि इस तकनीक के जरिये
पुरुषों की बंध्यता की समस्या को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा, क्योंकि
प्रयोगशाला में शुक्राणुओं के विकास के अलग-अलग चरणों का अध्ययन किया जा सकता है.
इससे शुक्राणुओं के आनुवंशिक प्रभाव या उन पर पड़ने वाले पर्यावरणीय जैसे बाह्य प्रभावों का भी अध्ययन करने
का मौका मिलता है. उनका कहना था कि उनकी टीम को किसी मादा भ्रूण से शुक्र ाणु विकसित करने में अभी सफलता नहीं मिली है, लेकिन सिद्धांतत: ऐसा करना संभव है.
क्या है स्पर्म
वीर्य एक जैविक तरल पदार्थ है, जिसे वीर्य तरल भी कहा जाता है. सामान्य तौर पर इसमें शुक्राणु होते हैं. यह जननग्रंथि (यौन
ग्रंथियां) और नर जीवों के अंगों द्वार स्नवित होता है
और मादा अंडाणु को निषेचित कर सकता है. पुरुषों में, शुक्र ाणुओं के अलावा बीजीय तरल में अनेक
घटक होते हैं.
वीर्य स्खलन की प्रक्रि या के दौरान, शुक्राणु संबंधित वाहिनी के माध्यम से गुजरते हैं और प्रोस्टेट ग्रंथि नामक शुक्राणु
पुटिकाओं और बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियों से निकले तरल के
साथ मिलकर वीर्य का रूप लेते हैं. शुक्राणु पुटिकाएं एक फलशर्करा से भरपूर पीला सा गाढ़ा चिपचिपा तरल और अन्य सार पैदा करती हैं, जो मानव वीर्य का लगभग 70 फीसदी होते हैं.
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