फलों की जीन संशोधित फसल
आनुवंशिक परिवर्तनों के जरिये पौधे की कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न
कुदरती पदार्थो की मात्र को घटाया -बढ़ाया जा सकता है
जीनों के संपादन की
नई तकनीकें उपलब्ध होने के बाद फल-सब्जियों और दूसरे कृषि उत्पादों में आनुवंशिक
परिवर्तन करना संभव हो जाएगा। इसके लिए उनमें बाहरी जीन प्रविष्ट करने की जरूरत
नहीं पड़ेगी। रिसर्चरों का कहना है कि जीन संपादन जीन संशोधन से एकदम भिन्न जैव
तकनीक है। जीन संशोधित फसलों पर पूरी दुनिया में चल रहे विवाद को देखते हुए समाज
में जीन संपादित फल-सब्जियों की स्वीकार्यता अधिक हो सकती है। जीन संपादन तकनीक से
लाभान्वित होने वाले फलों में विटामिन ए वाले केले और कुछ खास ढंग के सेब शामिल
हैं जो काटे जाने पर भूरे नहीं होंगे। आनी वाले दिनों में यूरोपीय बाजारों में इस
तरह के फल दिख सकते हैं। इटली में सेन माइकेल कृषि संस्थान के वैज्ञानिक चिदानंद
नागमंगला कांचीस्वामी का कहना है कि बाहरी जीनों के प्रविष्ट कराने के बाद उगाई गई
फसलों की तुलना में बाहरी जीनों के बिना तैयार की गईं जीन संपादित फसलें ज्यादा
कुदरती हैं। सिर्फ कुछ मामूली आनुवंशिक हेरफेर से फलों के गुणों में परिवर्तन किया
जा सकता है। इन आनुवंशिक परिवर्तनों के जरिये पौधे की कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न
कुदरती पदार्थो की मात्र को घटाया -बढ़ाया जा सकता है।
फलों के जीन समूहों
के बारे में लगातार नई जानकारियां मिलने के बाद जीन संपादन के लिए क्रिस्पर और
टॉलेन जैसी तकनीकें विकसित हो चुकी हैं। इनसे किसी भी फल का जीन संपादन करना आसान
हो गया है। अभी तक फलों की जीन संशोधित फसलों पर जीन संपादन की नई तकनीक नहीं
आजमाई गई थी। इस समय विकसित की गई फलों की अधिकांश फसलों में बाहरी जीन डालने के
लिए वानस्पतिक बैक्टीरिया का प्रयोग किया गया है। यूरोपीय यूनियन के कठोर नियमों
के कारण इन फलों में से सिर्फ पपीते का ही आंशिक व्यावसायिक इस्तेमाल हो पाया है।
रिसर्चरों का कहना है कि जीनों की काट-छांट वाली फसलों को यूरोपीय यूनियन जीन
असंशोधित श्रेणी में रखने पर विचार कर सकती है। कांचीस्वामी और उनके सहयोगियों के
मुताबिक जीन संपादन तकनीक से उच्च गुणों वाली बेहतर फसलों के विकास में मदद मिलेगी
और ऐसी फसलों का उन देशों में भी व्यवसायीकरण किया जा सकेगा जहां आनुवंशिक रूप से
संशोधित फसलों को लेकर तीव्र विवाद है। इस बीच आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने एक ऐसा
जीन संशोधित केला तैयार किया है जो बच्चों के कुपोषण की समस्या के हल में मदद कर
सकता है। विटामिन ए की कमी से दुनिया में हर साल सात लाख बच्चो की मौत होती है और
तीन लाख बच्चे दृष्टिहीनता के शिकार हो जाते हैं। रिसर्चरों का दावा है कि
आनुवंशिक सुधारों के फलस्वरूप पूर्वी अफ्रीका में उगने वाली केले की किस्म में
विटामिन ए की मात्र बढ़ गई है। ब्रिस्बेन में क्वींसलैंड युनिवर्सिटी में केला
परियोजना पर काम कर रहे प्रमुख वैज्ञानिक जेम्स डेल का कहना है कि पूर्वी अफ्रीका
में प्रमुख खाद्य वस्तु के रूप में उगाए जाने वाले केले में लौह तत्व और बीटा
केरोटीन की मात्र अपेक्षित स्तर पर नहीं होती जिस वजह से बच्चों को भरपूर पोषक
तत्व नहीं मिल पाते। केले की नई किस्म में बीटा केरोटीन की मात्र बढ़ाने के लिए
कुछ खास जीन शामिल किए गए हैं।
बीटा केरोटीन की
उच्च मात्र की वजह से यह केला अंदर से संतरी रंग का है। बीटा केरोटीन शरीर के अंदर
जाकर विटामिन ए में परिवर्तित होता है। आस्ट्रेलियाई रिसर्चरों ने बिल एंड मेलिंडा
गेट्स फाउंडेशन से प्राप्त एक करोड़ डॉलर की वित्तीय मदद से युगांडा में परीक्षण
के तौर पर जीन संशोधित केले की कुछ किस्में उगाई हैं। युगांडा में करीब 70 प्रतिशत आबादी अपनी अधिकांश पौष्टिक खुराक के लिए केले पर निर्भर है।
युगांडा में उगाया गया केला मानव परीक्षणों के लिए अमेरिका भेजा गया है। इसके
नतीजे इस वर्ष के अंत तक प्राप्त हो जाएंगे। युगांडा के सांसद इस समय जीन संशोधित
केले से संबंधित विधेयक पर विचार कर रहे हैं।
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