एक शोध रिपोर्ट
दिलचस्प बात है कि जिस इंटरनेट को हमारे निजी और सामाजिक जीवन की कई गंभीर समस्याओं का इलाज माना जा रहा था, वही अब एक समस्या बनकर हमारे सामने आ रहा है। इंटरनेट यूज करने की आदत कैसे एक लत का रूप लेती जा रही है, इस बारे में हुई ताजा स्टडी की रिपोर्ट गौर करने लायक है।
हॉन्ग कॉन्ग यूनिवर्सिटी की सिसीलिया चेंग और एंजिल यी-लाम ली के नेतृत्व में हुई इस स्टडी के मुताबिक दुनिया में 6 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्हें इंटरनेट की लत का शिकार कहा जा सकता है। स्टडी बताती है कि उत्तरी और पश्चिमी यूरोप में ऐसे लोग महज 2.6 फीसदी पाए गए, लेकिन मध्य यूरोप में यह आंकड़ा 10.9 फीसदी तक चला गया। एक बात और जिसे स्टडी में खास तौर पर रेखांकित किया गया वह यह कि इंटरनेट ऐक्सेसिबिलिटी से इसका सीधा नाता नहीं है। यानी जिन इलाकों में इंटरनेट की पैठ ज्यादा है, उन क्षेत्रों के लोगों में ही इंटरनेट की लत ज्यादा पाई जाए ऐसा जरूरी नहीं है।स्टडी में यह देखा गया है कि यूजर इंटरनेट इस्तेमाल करने की अपनी इच्छा पर जिंदगी की दूसरी जरूरतों के मद्देनजर कंट्रोल रख पाता है या नहीं। इस इच्छा पर नियंत्रण रखने में नाकामी को उसकी लत के रूप में लिया गया है और यह देखा गया है कि इसका उसकी दैनिक जिंदगी पर अक्सर बड़ा बुरा असर पड़ता है। इस स्टडी में 31 देशों के 89000 लोगों को शामिल किया गया है। इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि इस स्टडी का रेंज कम था, लेकिन फिर भी इस तरह की स्टडीज की बढ़ती संख्या और इनके निष्कर्षों में अक्सर दिखने वाले परस्परविरोध के मद्देनजर जरूरी है कि इन निष्कर्षों को बगैर परखे स्वीकार न किया जाए।
उदाहरण के तौर पर इस स्टडी के बारे में आई शुरुआती रिपोर्टों से यह साफ नहीं है कि इंटरनेट की लत को परिभाषित करते हुए क्या पैमाना रखा गया है। इसे मेडिकल टर्म के रूप में इस्तेमाल किया गया है या पारंपरिक अर्थ में। क्या इंटरनेट अडिक्ट को ड्रग अडिक्ट के रूप में लिया जाना चाहिए जिन्हें लत से मुक्त कराने के लिए बाकायदा इलाज कराना पड़ता है और दवाएं खानी पड़ती हैं या ये बस एक आदत है जिसे काउंसिलिंग के जरिए छुड़ाया जा सकता है?इसमें शक नहीं कि यह नए दौर की एक बड़ी समस्या है और निकट भविष्य में यह समस्या और गंभीर रूप लेने वाली है। इसलिए भी यह ज्यादा जरूरी है कि इन स्टडीज को सीरियसली लिया जाए। एक प्रॉजेक्ट के तौर पर इस मसले को उठाने, कथित रिसर्च के बाद उसके निष्कर्षों पर हौवा खड़ा करने और फिर इन सबको भूल कर अगले प्रॉजेक्ट की फंडिंग में जुट जाने का ट्रेंड इस मामले में कारगर नहीं होगा। जरूरत इस बात की है कि इस विषय को महत्वपूर्ण मान इस पर काम करने वाली टीम इसे सचमुच गंभीरता से ले और इसके तमाम पहलुओं पर गौर करते हुए उसका हल भी सुझाए।(ref-nbt)
हॉन्ग कॉन्ग यूनिवर्सिटी की सिसीलिया चेंग और एंजिल यी-लाम ली के नेतृत्व में हुई इस स्टडी के मुताबिक दुनिया में 6 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्हें इंटरनेट की लत का शिकार कहा जा सकता है। स्टडी बताती है कि उत्तरी और पश्चिमी यूरोप में ऐसे लोग महज 2.6 फीसदी पाए गए, लेकिन मध्य यूरोप में यह आंकड़ा 10.9 फीसदी तक चला गया। एक बात और जिसे स्टडी में खास तौर पर रेखांकित किया गया वह यह कि इंटरनेट ऐक्सेसिबिलिटी से इसका सीधा नाता नहीं है। यानी जिन इलाकों में इंटरनेट की पैठ ज्यादा है, उन क्षेत्रों के लोगों में ही इंटरनेट की लत ज्यादा पाई जाए ऐसा जरूरी नहीं है।स्टडी में यह देखा गया है कि यूजर इंटरनेट इस्तेमाल करने की अपनी इच्छा पर जिंदगी की दूसरी जरूरतों के मद्देनजर कंट्रोल रख पाता है या नहीं। इस इच्छा पर नियंत्रण रखने में नाकामी को उसकी लत के रूप में लिया गया है और यह देखा गया है कि इसका उसकी दैनिक जिंदगी पर अक्सर बड़ा बुरा असर पड़ता है। इस स्टडी में 31 देशों के 89000 लोगों को शामिल किया गया है। इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि इस स्टडी का रेंज कम था, लेकिन फिर भी इस तरह की स्टडीज की बढ़ती संख्या और इनके निष्कर्षों में अक्सर दिखने वाले परस्परविरोध के मद्देनजर जरूरी है कि इन निष्कर्षों को बगैर परखे स्वीकार न किया जाए।
उदाहरण के तौर पर इस स्टडी के बारे में आई शुरुआती रिपोर्टों से यह साफ नहीं है कि इंटरनेट की लत को परिभाषित करते हुए क्या पैमाना रखा गया है। इसे मेडिकल टर्म के रूप में इस्तेमाल किया गया है या पारंपरिक अर्थ में। क्या इंटरनेट अडिक्ट को ड्रग अडिक्ट के रूप में लिया जाना चाहिए जिन्हें लत से मुक्त कराने के लिए बाकायदा इलाज कराना पड़ता है और दवाएं खानी पड़ती हैं या ये बस एक आदत है जिसे काउंसिलिंग के जरिए छुड़ाया जा सकता है?इसमें शक नहीं कि यह नए दौर की एक बड़ी समस्या है और निकट भविष्य में यह समस्या और गंभीर रूप लेने वाली है। इसलिए भी यह ज्यादा जरूरी है कि इन स्टडीज को सीरियसली लिया जाए। एक प्रॉजेक्ट के तौर पर इस मसले को उठाने, कथित रिसर्च के बाद उसके निष्कर्षों पर हौवा खड़ा करने और फिर इन सबको भूल कर अगले प्रॉजेक्ट की फंडिंग में जुट जाने का ट्रेंड इस मामले में कारगर नहीं होगा। जरूरत इस बात की है कि इस विषय को महत्वपूर्ण मान इस पर काम करने वाली टीम इसे सचमुच गंभीरता से ले और इसके तमाम पहलुओं पर गौर करते हुए उसका हल भी सुझाए।(ref-nbt)
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