भारत ने आज सफलतापूर्वक इसरो के पीएसएलवी
सी-26 के जरिए
आईआरएनएसएस उपग्रह को लांच कर दिया. उपग्रह को यहां तड़के एक बजकर 32 मिनट पर लांच किया
गया और इस सफलता से माना जा रहा है कि भारत अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम की
बराबरी पर आकर देश का खुद का नेवीगेशन सिस्टम स्थापित करने की दिशा में और एक कदम
आगे बढ़ गया है.
आईआरएनएसएस 1 सी इसरो द्वारा लांच किए जाने वाले सात उपग्रहों की श्रृंखला
में तीसरा उपग्रह है. यहां ठीक एक बजकर 32 मिनट पर फर्स्ट लांच पैड से राकेट ने उपर की ओर उठना शुरू किया
और रात के अंधेरे में उससे निकलने वाली लपटें किसी सुनहरी तरंगों जैसी लग रही थी
और देखने वालों के लिए यह एक अद्भुत नजारा था. लांच के 20 मिनट बाद लांच यान
ने सफलतापूर्वक 1425.4 किलोग्राम वजनी उपग्रह को लक्षित कक्षा में स्थापित
कर दिया. इसरो
ने इस उपग्रह को 17.86 डिग्री
के झुकाव के साथ पृथ्वी से सबसे नजदीक की दूरी 284 किलोमीटर और पृथ्वी से सबसे ज्यादा दूरी 20,650 किलोमीटर पर सब जियोसिंक्रोनस
ट्रांसफर ऑर्बिट (सब जीटीओ) में स्थापित करने का लक्ष्य रखा था. इसरो के अध्यक्ष
के राधाकृष्णन ने लांच के बाद कहा, ‘‘भारत
ने सफलतापूर्वक आईआरएनएसएस-1 (सी)
को लांच कर दिया है. इसरो की पूरी टीम इसके लिए बधाई की पात्र है.’’ उन्होंने इसके साथ ही उपग्रह के सफल
लांच के लिए योगदान देने वाले पूरे दल को भी बधाई दी.
यह सातवां मौका है जब
इसरो ने अपने अभियानों के लिए पीएसएलवी के एक्सएल एडीशन का इस्तेमाल किया है. 1425.4 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह का
जीवनकाल दस साल है. आईआरएनएसएस-1 (सी)
के साथ पीएसएलवी-26 को
वास्तव में दस अक्तूबर को लांच किया जाना था लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से इसके लांच
को स्थगित कर दिया गया. पूरी तरह से विकसित आईआरएनएसएस सिस्टम में पृथ्वी से 36 हजार किलोमीटर की उंचाई पर जीईओ
स्थतिक कक्षा में तीन उपग्रह होंगे और चार उपग्रह भूस्थतिक कक्षा में होंगे.
नेवीगेशनल सिस्टम से दो
प्रकार की सेवाएं प्राप्त होंगी...एक होगी स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सर्विस जो सभी
यूजर्स को उपलब्ध करायी जाती है और दूसरी होगी...रिसट्रिक्टिड सर्विस जो केवल
अधिकृत यूजर्स को ही प्रदान की जाती है. आईआरएनएसएस सिस्टम में अंतत: सात उपग्रह
शामिल होंगे और इसे 1420 करोड़
रूपये की लागत से साल 2015 तक
पूरा किए जाने का लक्ष्य रखा गया है.
इस श्रंखला के पहले दो
उपग्रहों,
आईआरएनएसएस-1 (ए) और 1 (बी) को क्रमश: पिछले साल जुलाई और
इस साल अप्रैल में प्रक्षेपित किया गया था. चूंकि इन्हें भारत द्वारा विकसित किया
जा रहा है इसलिए आईआरएनएसएस को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि ये देश और इसकी
सीमा से 1500
किलोमीटर के क्षेत्रीय
दायरे में यूजर्स को सटीक स्थतिक सूचना सेवा मुहैया कराएंगे.
आईआरएनएसएस की विशेषताओं
में क्षेत्रीय और जहाजरानी नौवहन, आपदा
प्रबंधन, वाहनों का पता लगाना, बेड़ा प्रबंधन, पर्वतारोहियों और यात्रियों को
यात्रा मार्ग में मदद करना और चालकों को नौवहन में मदद करना है. भारत अपना
नेवीगेशन सिस्टम विकसित कर रहा है और कुछ चुनिंदा देशों के समूह भी अपने खुद के
नेवीगेशन सिस्टम को विकसित कर चुके हैं जिनमें रूस का ग्लेबल आर्बटिंग नेवीगेशन
सेटेलाइट सिस्टम, अमेरिका
का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, यूरोपीय
संघ का गैलेलियो, चीन
का बीदयू सेटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम और क्वासी जेनिथ सेटेलाइट सिस्टम शामिल है.
क्या
है जीपीएस?
जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम एक ऐसी
प्रणाली है जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट नेविगेशन के जरिए किसी भी मौसम में लोकेशन
तथा समय की जानकारी देता है।
भारत
की तकनीक
आइआरएनएसएस के तहत भारत अपने भौगोलिक प्रदेशों तथा अपने आसपास के कुछ
क्षेत्रों तक नेविगेशन की सुविधा रख पाएगा। इसके तहत भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा
कुल 7 नेविगेशन सैटेलाइट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए जाने
है, जोकि 36000 किमी की दूरी पर पृथ्वी
की कक्षा का चक्कर लगाएंगे। यह भारत तथा इसके आसपास के 1500 किलोमीटर
के दायरे में चक्कर लगाएंगे। जरूरत पड़ने पर उपग्रहों की संख्या बढ़ाकर नेविगेशन
क्षेत्र में और विस्तार किया जा सकता है।
कैसे
काम करता है आइआरएनएसएस?
आइआरएनएसएस दो माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी बैंड, जो एल 5 और एस के नाम से जाने जाते हैं, पर सिग्नल देते हैं। यह 'स्टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्विस'
तथा 'रिस्ट्रिक्टेड सर्विस' की सुविधा प्रदान करेगा। इसकी 'स्टैंडर्ड पोजीशनिंग
सर्विस' सुविधा जहां भारत में किसी भी क्षेत्र में किसी भी
आदमी की स्थिति बताएगा, वहीं 'रिस्ट्रिक्टेड
सर्विस' सेना तथा महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों के लिए
सुविधाएं प्रदान करेगा।
जीपीएस
से बेहतर आइआरएनएसएस
यह अमेरिकन नेविगेशन सिस्टम जीपीएस से कहीं अधिक बेहतर है। मात्र 7 सैटेलाइट के जरिए यह अभी 20 मीटर के रेंज में
नेविगेशन की सुविधा दे सकता है, जबकि उम्मीद की जा रही है कि
यह इससे भी बेहतर 15 मीटर रेंज में भी यह सुविधा देगा।
जीपीएस की इस कार्यक्षमता के लिए 24 सैटेलाइट काम करते हैं,
जबकि आईआरएनएसएस के मात्र सात।
आइआरएनएसएस
की विशेषताएं
आइआरएनएसएस सुरक्षा की दृष्टि से हर प्रकार से लाभकारी है। खासकर
सुरक्षा एजेंसियों और सेना के लिए। ये प्रणाली देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की
सूचना देगी। यह इसका प्राथमिक सेवा क्षेत्र भी है। नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस के
अनुप्रयोगों में नक्शा तैयार करना, जियोडेटिक आंकड़े जुटाना,
समय का बिल्कुल सही पता लगाना, चालकों के लिए
दृश्य और ध्वनि के जरिये नौवहन की जानकारी, मोबाइल फोनों के
साथ एकीकरण, भूभागीय हवाई तथा समुद्री नौवहन तथा यात्रियों
तथा लंबी यात्रा करने वालों को भूभागीय नौवहन की जानकारी देना आदि शामिल हैं।
आईआरएनएसएस के सात उपग्रहों की यह श्रृंखला स्पेस सेगमेंट और ग्राउंड
सेगमेंट दोनों के लिए है। आईआरएनएसएस के तीन उपग्रह भूस्थिर कक्षा [जियोस्टेशनरी
ऑर्बिट] के लिए और चार उपग्रह भूस्थैतिक कक्षा [जियोसिन्क्रोनस ऑर्बिट] के लिए
हैं। यह श्रृंखला वर्ष 2015 से पहले पूरी होनी है।
सातों उपग्रह वर्ष 2015 तक कक्षा में स्थापित कर दिए
जाएंगे और तब आईआरएनएसएस प्रणाली शुरू हो जाएगी।
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