Monday 22 September 2014

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत इतिहास रचने के करीब

मंगल पर “विजय” की तैयारी
लिक्विड इंजन का परीक्षण सफल
शशांक द्विवेदी 
पिछले कई सालों से  यह जानने की कोशिशें चलती रही हैं कि पृथ्वी के बाहर जीवन है या नहीं । इस  दौरान कई खोजों से ये अंदेशा हुआ कि शायद मंगल ग्रह पर जीवन है । लाल ग्रह यानी मंगल पर जीवन की संभावनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ही नहीं, आम आदमी की भी उत्सुकता लंबे अरसे से रही है । पृथ्वी से लाल रंग के दिखाई देने वाले ग्रह पर अब सभी की निगाहें टिकी हैं। आखिर मंगल की सच्चाई क्या है? ऐसे कई सारे सवाल हैं, जिनके जवाब तलाशने के लिए दूसरे देशों के  कई अभियान मंगल ग्रह पर भेजे भी गये । जिनमें लगभग एक तिहाई सफल रहें बाकी असफल रहें लेकिन इस बार लेकिन इस बार भारत का मार्स आर्बिटर मिशन अपने पहले ही मंगल अभियान पर सफलता के करीब है ।
अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत इतिहास रचने जा रहा है ।आगामी 24 सितंबर को भारतीय मंगलयान के लाल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने से पहले इसरो ने अंतरिक्ष यान के प्रमुख लिक्विड इंजन का सफलता पूर्वक  परीक्षण कर लिया . मंगलयान के इस इंजन को आज (सोमवार )2 बजकर 30 मिनट पर 4 सेकेंड के लिए टेस्ट फायर किया किया और अब 24 सितंबर को इंजन को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए 24 मिनट के लिए फायर किया जाएगा। इसरो ने ट्विटर के जरिए इस सफलता की जानकारी दी। 440 न्यूटन लिक्विड अपोजी मोटर (एलएएम) इंजन पिछले 300 दिनों से सुप्तावस्था (आइडल मोड) में था । इंजन का प्रायोगिक परीक्षण लगभग 0.567 किग्रा ईधन की खपत के साथ 3.968 सेकेंड के लिए 2.142 मीटर प्रति सेकेंड की गति से किया गया ।
इंजन का सफल परीक्षण इसलिए अहम है क्योंकि ये इंजन पिछले 300 दिनों से बंद है और कई तरह के रेडियेशन से गुजरा है . आर्बिटर इंजन के सफल परीक्षण से मंगल मिशन के पूरी तरह से कामयाब होने की संभावना काफी बढ़ गई है अब भारत अपनी सबसे बड़ी वैज्ञानिक कामयबी से सिर्फ कुछ घंटे ही दूर है मंगलयान के इंजन को पिछले साल 5 नवंबर को मंगल की कक्षा के लिए छोड़ा गया था। 
वैज्ञानिक आज के इस परीक्षण से इंजन की वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगाना चाहते थे, जोकि दो दिन बाद होने वाले निर्णायक फायर के लिए बहुत जरूरी था। इसरो के चेयरमैन के. राधाकृष्णन का कहना है कि आज ये चार सेकेंड हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती थे ।जिसमे हम सफल रहें है , हमने इंजन पर हर तरह के परिक्षण के बाद ही इसे लॉन्च किया था। 10 महीने अंतरिक्ष में गुजार चुका इंजन इस वक्त बिल्कुल ठीक काम कर रहा है। 
24 सितंबर को मंगलयान के इंजन का असली इम्तिहान होगा. 24 सितंबर को इंजन को 24 मिनट तक फायर किया जाएगा, ताकि मार्स ऑर्बिटर मिशन(MOM) यानी मंगलयान की गति कम की जा सके.  मंगल की कक्षा में स्थापित करने के लिए गति को धीमा करना जरूरी है. यान की मौजूदा रफ्तार 22 किमी प्रति सेकंड है और मंगल की कक्षा में प्रवेश के लिए इसे घटाकर 1.6 किमी प्रति सेकंड़ करना जरूरी है।
फिलहाल मंगलयान मंगल के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है और उसके मार्ग को भी सही दिशा दी जा रही है । मंगलयान को इससे पहले तीन बार सही दिशा में लाया गया है। मंगलयान जब मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा तो उस समय वह इस ग्रह की छाया में होगा और उसे सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाएगी। इस कारण से उसके सौर पैनल बेकार होंगे और यान को बैटरी से मिलने वाली ऊर्जा के सहारे मंगल की कक्षा में प्रवेश करना होगा।
इससे पहले मंगलयान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए कमांड अपलोड करने का काम पूरा हो गया और 24 सितंबर को इसे सूर्य की कक्षा से मंगल की कक्षा में स्थानांतरित किया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक सचिव वी. कोटेश्वर राव के अनुसार मंगलयान में कमांड अपलोड करने और इन्हें जांचने में करीब 13 घंटे का समय लगा। मंगलयान को अपने गंतव्य तक पहुंचने में कुल 22.4 करोड़ किलोमीटर की यात्रा  करनी है जिसमें से वह 21.5 करोड़ किलोमीटर यानी 98 प्रतिशत दूरी तय कर चुका है।

भारत के इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपए है जो कि अमेरिका के मंगल मिशन से 10 गुना  कम है। पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत का यह मिशन हॉलिवुड की फिल्म 'ग्रैविटी' के खर्च से भी कम में लॉन्च हुआ है। मंगल की कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद मंगलयान इसके वायुमंडल, खनिजों और संरचना का अध्ययन करेगा। मंगल के वैज्ञानिक अध्ययन के अलावा यह मिशन इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह भारत के लिए दूसरे ग्रहों की जांच करने के सफल अभियानों की शुरुआत करेगा।



इस मंगलयान में पांच अहम उपकरण मौजूद हैं जो मंगल ग्रह के बारे में अहम जानकारियां जुटाने का काम करेंगे।
इन उपकरणों में मंगल के वायुमंडल में जीवन की निशानी और मीथेन गैस का पता लगाने वाले सेंसर, एक रंगीन कैमरा और ग्रह की सतह और खनिज संपदा का पता लगाने वाला थर्मल इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर जैसे उपकरण शामिल हैं।

भारत का प्रथम मंगल अभियान
मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन), भारत का प्रथम मंगल अभियान है और यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक महत्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत 5 नवम्बर 2013 को 2 बजकर 38 मिनट पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) सी-25 द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया था। इसके साथ ही भारत भी अब उन देशों में शामिल हो गया जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं लेकिन अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए एक तिहाई अभियान असफल ही रहे हैं। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। किसी भी देश का प्रक्षेपित यान पहली ही बार में मंगल ग्रह पर नहीं पहुंच सका है लेकिन अगर मंगलयान ऐसा कर पाता है तो भारत दुनिया का पहला ऐसा देश होगा जिसके पहले ही यान ने मंगल ग्रह पर पहुंचने में सफलता हासिल की होगी।   यह एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन परियोजना है जिसका लक्ष्य अन्तरग्रहीय अन्तरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक डिजाइन, नियोजन, प्रबन्धन तथा क्रियान्वयन का विकास करना है। 19 अप्रैल 1975 में स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्टके प्रक्षेपण के साथ अपने अंतरिक्ष सफर की शुरूआत  करने वाले इसरो की यह सफलता भारत की अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है ।  ये सफलता इसलिए खास है क्योंकि भारतीय प्रक्षेपण राकेटों की विकास लागत ऐसे ही विदेशी  प्रक्षेपण राकेटों की विकास लागत का एक-तिहाई है ।
स्वर्णिम सफलता का इंतजार
भारत 24 सितंबर की सुबह का इंतजार बेसब्री से कर रहा है। उस दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने मंगलयान को मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित करने जा रहा है। यदि ऐसा हुआ तो वह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के इतिहास में स्वार्णाक्षरों में लिखा जाने वाला दिन होगा। इसरो की इस सफलता के लिए देश के वैज्ञानिक समुदाय और आम भारतीय काफी उत्साहित हैं।
करीब   36 घंटे बाद मंगलयान जब मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करेगा तो भारत मिशन के बीच यान को मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचाने वाला पहला देश होगा। साथ ही मंगल ग्रह पर यान भेजने वाला भारत पहला एशियाई देश होगा और इसरो चौथी अंतरिक्ष एजेंसी। अमेरिका यूरोप और रूस की अंतरिक्ष एजेंसियां कई कोशिश के बाद मंगल ग्रह की कक्षा में अपने उपग्रह भेज चुकी हैं। अपने मंगल अभियान की सफलता को लेकर इसरो के वैज्ञानिक आश्वस्त हैं।
यान कैसे काम करेगा
कई शोधों से यह साबित हो चुका है कि  मंगल ग्रह ने धरती पर जीवन के क्रमिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है इसलिए यह अभियान देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण है । पृथ्वी की कक्षा को छोड़ने के बाद यान मंगल ग्रह के दीर्घवृताकार पथ में प्रवेश करेगा जो मंगल ग्रह से जुड़े रहस्यों का पता लगायेगा। मार्स आर्बिटर मिशन (एमओएम) का मुख्य ध्येय यह पता लगाना है कि लाल ग्रह पर मिथेन है या नहीं, जिसे जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण रसायन माना जाता है। भारत के मंगल अभियान में अंतरिक्ष यान में पांच पेलोड जुड़े हैं जिसमें से एक मिथेन सेंसर शामिल है और यह मंगल ग्रह पर मिथेन की उपलब्धता का पता लगायेगा, साथ ही अन्य प्रयोग भी करेगा।
यान के साथ 15 किलो का पेलोड भेजा गया है इनमें कैमरे और सेंसर जैसे उपकरण शामिल हैं, जो मंगल के वायुमंडल और उसकी दूसरी विशिष्टताओं का अध्ययन करेंगे। मंगल की कक्षा में स्थापित होने के बाद यान मंगल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां हमें भेजेगा। मंगलयान का मुख्य फोकस संभावित जीवन, ग्रह की उत्पत्ति, भौगोलिक संरचनाओं और जलवायु आदि पर रहेगा। यान यह पता लगाने की भी कोशिश करेगा कि क्या लाल ग्रह के मौजूदा वातावरण में जीवन पनप सकता है। मंगल की परिक्रमा करते हुए ग्रह से उसकी न्यूनतम दूरी 350 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 8000 किलोमीटर रहेगी।
मंगलयान मंगलग्रह परिक्रमा करते हुए ग्रह की जलवायु ,आन्तरिक बनावट, वहां जीवन की उपस्थिति, ग्रह की उत्पति, विकास आदि के विषय में बहुत सी जानकारी जुटा कर पृथ्वी पर भेजेगा। वैज्ञानिक जानकारी को जुटाने हेतु मंगलयान पर कैमरा, मिथेन संवेदक, उष्मा संवेदी अवरक्त वर्ण विश्लेषक, परमाणुविक हाइड्रोजन संवेदक, वायु विश्लेषक आदि पांच प्रकार के उपकरण लगाए गये हैं। इन उपकरणों का वजन लगभग 15 किलोग्राम के लगभग होगा। मेथेन की उत्पत्ति जैविक है या रसायनिक यह सूचना मंगल पर जीवन की उपस्थिति का पता लगाने में सहायक होगी। मंगलयान में ऊर्जा की आपूर्ती हेतु 760 वॉट विद्युत उत्पादन करने वाले सौर पेनेल लगे है .
इससे पहले के मंगल अभियानों में भी इस ग्रह के वायुमंडल में मीथेन का पता चला था, लेकिन इस खोज की पुष्टि की जानी अभी बाकी है। ऐसा माना जाता है कि कुछ तरह के जीवाणु अपनी पाचन प्रक्रिया के तहत मीथेन गैस मुक्त करते हैं।  लाल ग्रह यानी मंगल पर जीवन की संभावनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ही नहीं, आम आदमी की भी उत्सुकता लंबे अरसे से रही है । इस जिज्ञासा के जवाब को तलाशने के लिए कई अभियान मंगल ग्रह पर भेजे भी गये । इसका मुख्य काम यह पता करना है कि क्या कभी मंगल ग्रह पर जीवन था । इस अभियान का उद्देश्य यह पता लगाना है कि वहां सूक्ष्म जीवों के जीवन के लिए स्थितियां हैं या नहीं और अतीत में क्या कभी यहां जीवन रहा है।
दुनियाँ  की उम्मीदें
भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन से दुनियाँ  को बहुत उम्मीदें है  । मंगल की कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद मंगलयान इसके वायुमंडल, खनिजों और संरचना का गहन अध्ययन करेगा। मंगल के वैज्ञानिक अध्ययन के अलावा यह मिशन इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह भारत के लिए दूसरे ग्रहों की जांच करने के सफल अभियानों का आगाज़ करेगा। इस मिशन में उन तकनीकों को शामिल किया गया है, जो आगे चल कर मंगल से नमूने लाने में मदद करेगी और अंतत वहां मनुष्य के मिशन को सुगम बनाएगी।

मंगल अभियान की सफलता से इसरो के लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी और जीएसएलवी की साख बढ़ेगी और कम लागत पर अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए अन्य देशों में इनकी लोकप्रियता बढ़ेगी। मंगल ग्रह की कक्षा में उपग्रह भेजने के इसरो के इस अभियान की लागत 7.4 करोड़ डॉलर है जो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मंगल अभियान मावेन की लागत का दसवां हिस्सा है। जाने माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल इसे प्रौद्योगिकी क्षमता की दृष्टि से देश के लिए महत्वपूर्ण पहल मानते हैं। प्रो.  यशपाल ने कहा, ‘‘मंगलयान देश में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास के लिहाज से महत्वपूर्ण पहल है। अभी तक हमने एक ही ग्रह पृथ्वी को देखा है। सभी लोगों की इच्छा होती है कि नये नये विषयों के बारे में जाने समझे। हमें एक मौका मिला कि हम मंगल ग्रह को जाने।’’

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