आज से पांच-दस साल बाद किसी विकसित देश में जन्म लेने वाले बच्चे को
एक अनोखा टैटू मिल सकता है। यह टैटू एक इलेक्ट्रॉनिक चिप के रूप में होगा। डाक
टिकट से भी छोटी इस चिप को संभवतः सीने में प्रत्यारोपित किया जाएगा। यह चिप बच्चे
के शरीर की हर गतिविधि, उसके सोने की अवधि, उसके सांस लेने की दर, उसके शरीर के तापमान और उसके पोषण की स्थिति पर नजर रखेगी। चिप द्वारा
एकत्र किए गए सारे आंकड़े मोबाइल फोनों या टैब्लेटों को भेज दिए जाएंगे जहां ऐप्स
के जरिए अभिभावकों और डॉक्टरों को तत्काल बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में सभी
महत्वपूर्ण जानकारियां मिल जाएंगी। युनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में
कार्डियोवैस्कुलर मेडिसिन डिविजन की प्रमुख लेजली सैक्सन का कहना है कि इस तरह की
चिपों से सिर्फ बच्चों को ही फायदा नहीं होगा। भविष्य में खिलाड़ियों और सैनिकों
सहित हर व्यक्ति को इसका लाभ मिलेगा। मरीज अपने व्यक्तिगत सेंसरों द्वारा एकत्र
आंकड़ों की मदद से अपनी बीमारियों से बेहतर ढंग से निपट सकेंगे।
कुछ समय पहले टैक्सस में
एक इंटरेक्टिव कॉन्फ्रेंस में सैक्सन ने बताया कि सेंसरों द्वारा एकत्र आंकड़ों का
भंडार दवा कंपनियों और दूसरी बायोमेडिकल कंपनियों के लिए बहुमूल्य साबित होगा। हो
सकता है भविष्य में ये कंपनियां आपसे आंकड़े प्राप्त करने के लिए आपको अच्छा-खासा
भुगतान भी करें। इस तरह के व्यक्तिगत आंकड़ों के दुरुपयोग का खतरा हो सकता है और
खुद सैक्सन भी इस बात को मानती हैं। आंकड़ों के दुरुपयोग को रोकने और लोगों की
प्राइवेसी के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई निगरानी
व्यवस्था भी कायम करनी पड़ेगी। लेकिन इस तरह की चीजों से भयभीत होने के बजाय हमें
इनका सकारात्मक पक्ष देखना चाहिए। दरअसल इन स्मार्ट मशीनों से हमें अपने शरीर को
ज्यादा बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
कुछ विकसित देशों में
शरीर से बायोमीट्रिक डेटा प्राप्त करने का प्रचलन शुरू भी हो चुका है। सैक्सन के
मुताबिक करीब 27 प्रतिशत अमेरिकी बायोमीट्रिक डेटा नापने के लिए
किसी न किसी डिवाइस का प्रयोग कर रहे हैं। लोगों द्वारा प्रयुक्त किए जा रहे
उपकरणों में एक रिस्टबैंड शामिल है जो शारीरिक गतिविधि और निद्रा के समय को
रिकॉर्ड करता है। इस तरह के डिवाइस आगे चल कर ज्यादा उन्नत सेंसरों में तब्दील
होंगे। जाहिर है इनसे मनुष्य और मशीन के बीच एक नया रिश्ता बनेगा, उनमें एक नया इंटरफेस बनेगा। इस तरह के सेंसर शरीर के भीतर प्रत्यारोपित
किए जा सकेंगे और उनकी नेटवर्किंग की जा सकेगी। भविष्य में आपके शरीर के भीतर के
सेंसरों को आपकी स्मार्ट कार के साथ जोड़ा जा सकेगा। इससे ड्राइविंग का मजा बढ़
जाएगा। सैक्सन का कहना है कि इस तरह के सेंसर आपको रोड रेज या पत्नी से झगड़ा करने
से भी रोकेंगे।
पश्चिमी बाजारों में शीघ्र ही ऐसे
इंजेस्टिबल सेंसर आने वाले हैं, जिन्हें गोली के साथ निगला जा सकेगा। ये सेंसर यह देखेंगे कि मरीज ने अपनी
दवा की खुराक निर्धारित मात्रा में ली है या नहीं। वे यह भी देखेंगे कि दवा की खुराक
लेने के बाद शरीर के अंदर किस तरह की प्रतिक्रिया होती है। इससे डॉकटरों को दवा की
सही मात्रा निर्धारित करने में मदद मिलेगी। सैक्सन का कहना है कि करीब 30 से 50 प्रतिशत मरीज डॉक्टरों द्वारा निर्धरित खुराक
समुचित मात्रा में नहीं लेते। एक अमेरिकी दवा कंपनी द्वारा विकसित किए गए
इंजेस्टिबल सेंसर को एफडीए की अनुमति मिल गई है। इस सेंसर का इस्तेमाल हृदय रोग से
संबंधित एक ड्रग के साथ किया जाएगा।
सैक्सन का मानना है कि
युवाओं, खासकर बच्चों में इस तरह के सेंसरों का प्रयोग
विकासशील देशों में काफी उपयोगी साबित हो सकता है, जहां
बीमारियां फैलने का खतरा ज्यादा रहता है। इन चिपों से काफी मदद मिल सकती है। इन
सेंसरों के जरिए विकासशील देशों में कुपोषण और जन स्वास्थ्य की दूसरी समस्याओं को
बेहतर ढंग से समझने और उनका उपाय खोजने में भी मदद मिल सकती है।
conspiracy theories sach ho rahi hain
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