शशांक द्विवेदी
एड्स के नाम पर घोटालानवभारतटाइम्स(NBT) |
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएड्स की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में एड्स के संक्रमण में 57 फीसद की कमी आई है। जबकि दुनियाभर के अधिक प्रभावित लगभग 25 देशों में एचआइवी के मामलों में 50 प्रतिशत तक कमी आई है। पिछले एक दशक ं में इससे मरने वालों की संख्या में भी भारी कमी देखी गई है। जिस तरह से एड्स के आंकड़ों के मामले में पिछले वर्षों में कुछ गैरसरकारी संगठनों ने विदेशी फंडिंग हासिल करने के लिए एड्स संक्रमित लोगों के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए, उसे देखते हुए किसी भी आंकड़े पर सहज विश्वास करना मुश्किल लगता है। लेकिन यह आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किया गया है, इसलिए इस पर विश्वास किया जा सकता है। कुछ लोग के लिए एड्स जानलेवा बीमारी हो सकती है लेकिन ज्यादातर लोग इसके नाम पर अपनी जेबे भर रहे है ।
कुछ साल पहले भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने संसद में कहा था कि ‘इन अवर कंट्री पीपल आर नाँट लिविंग विद एड्स , दे आर लिविंग आँन एड्स ‘अर्थात हमारे देश में लोग एड्स के साथ नहीं जी रहे हैं , बल्कि एड्स से अपनी रोजी-रोटी कमा रहें हैं । वाकई, आज देश एड्स माफिया के चंगुल में है । एड्स के नाम पर पैसे की बरसात हो रही है । एड्स को लेकर पूरी दुनिया में जितना शोर है उतने तो इसके मरीज भी नहीं है फिर भी दुनिया भर के स्वास्थ्य के एजेंडे में एड्स मुख्य मुद्दा बना हुआ है । और इसकी रोकथाम के लिए करांेडों डालर की धनराशि को पानी की तरह बहाया जा रहा है ।यही नहीं अब तो अधिकांश गैरसरकारी संगठन भी जन सेवा के अन्य कार्यक्रमों को छोड़कर एड्स नियत्रंण अभियानों को चलाने में रूचि दिखा रहे है। क्योंकि इसके लिए उनको आसानी से अनुदान मिल जाता है और इससे नाम और पैसा आराम से कमाया जा सकता है । कुछ विशेषज्ञों के अनुसार एड्स के हौवे की आड़ में कंडोम बनाने वाली कम्पनियाँ भारी मुनाफा कमाने के लिए ही इन अभियानों को हवा दे रही हैं । तभी तो एड्स से बचाव के लिए सुरक्षित यौन संबंधों की सलाह तो खूब दी जाती है, पर संयम रखने या व्यभिचार न करने की बात बिल्कुल नहीं की जाती है । यानि कि खूब यौनाचार करो पर कंडोम के साथ ।
पिछले दिनों एड्स से बचाने के लिए बनाने गए कॉन्डम वेंडिंग मशीन योजना में भी घोटाले की बात सामने आई। सीएजी ने सरकार के कॉन्डम वेंडिंग मशीनों पर किए गए खर्च पर सवाल करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय और नाको की खिंचाई की है। रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने एड्स जैसे संक्रमित रोग की रोकथाम के लिए देश भर में 22 हजार कॉन्डम वेंडिंग मशीनों लगाने के लिए 21 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन इनमें से 10 हजार मशीनें गायब हैं और करीब 1100 मशीनें काम नहीं कर रही हैं। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने इस योजना के पहले चरण की प्रगति के बारे में जाने बिना ही दूसरे चरण के लिए पैसा जारी कर दिया । इस घपलेबाजी के बाद कैग ने नैशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन पर भी सवाल खड़े किए है। दरअसल नाको ने 2005 में देश में एड्स की रोकथाम के लिए सार्वजनिक जगहों मसलन रेलवे स्टेशनों, रेड लाइट एरिया, बस स्टैंड ,विश्वविद्यालयों के आस पास ,बैंकों और डाकघरों आदि में ऐसी मशीनें लगाने का प्रस्ताव रखा था । । केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की मंजूरी मिलने पर इस योजना को शुरू कर दिया गया था । लेकिन अब इस योजना में बड़े पैमाने पर धाँधली सामने आयी है ।
दूसरी खतरनाक बीमारियों की उपेक्षा
हिमाचल दस्तक |
आज पूरी दुनिया में एड्स को लेकर जिस तरह का भय व्याप्त है और इसकी रोकथाम व उन्मूलन के लिए जिस तरह के जोरदार अभियान चलाये जा रहे हैं , उससे कैंसर, हार्टडिजीज, टी.बी. और डायबिटीज जैसी खतरनाक बीमारियां लगातार उपेक्षित हो रही हैं । और बेलगाम होकर लोगों पर अपना जानलेवा कहर बरपा रहीं है । पूरी दुनिया के आॅकडों की माने तो हर साल एड्स से मरने वालों की संख्या जहाँ हजारेां में होती है, वहीं दूसरी घातक बीमारियों की चपेट में आकर लाखों लोग अकाल ही मौत के मुंह में समा जाते हैं ।
देश में हर साल कैंसर के 7 से 9 लाख मामले सामने आते हैं और हर साल कैंसर के कारण चार लाख मौतें होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन मानता है कि देश में एक साल में मलेरिया 16000 से अधिक लोगों की जान ले लेता है। भारत में विभिन्न रोगों से होने वाली मृत्य के दस सबसे प्रमुख कारणों में एड्स नहीं है। लेकिन केंद्र सरकार के स्वास्थ्य बजट का सबसे बड़ा हिस्सा इसमें चला जाता है।
एड्स पर सरकार और दुनियाँ मेहरबान
सरकार ने अगले पांच साल के लिए तैयार किए गए राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम-4 (एनएसीपी-4) के तहत कुल 11394 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई गई है। जिसमें विदेशी संस्थानों से 2762 करोड़ रुपये मिलेगें । इसके साथ ही भारत और विश्व बैंक ने एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के लिए 255 मिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए । पिछले दिनों दिल्ल्ली में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने विश्व बैंक से सहायता प्राप्त राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण परियोजना भी प्रारंभ की। उनके अनुसार एचआइवी से बचाव भारत सरकार की उच्च प्रथमिकता है। आर्थिक मामलों से संबंधित कैबिनेट समिति ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण परियोजना को मंजूरी दे दी है। इस परियोजना पर 2550 करोड़ रुपये की राशि खर्च होगी। भारत की 99.5 प्रतिशत से अधिक आबादी अब एचआइवी से मुक्त है। फिर भी सरकार एड्स उन्मूलन और रोकथाम के नाम पर हजारों करोड़ के कार्यक्रम चला रही है जिसमें सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएँ बड़े पैमाने पर वित्तीय धाँधली कर रहें है ।
इस वर्ष के इकोनॉमिक सर्वे पर नजर डालें तो यह बात साफ हो जाती है कि देश में जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में जितना पैसा खर्च किया जाना चाहिए उतना या उससे ज्यादा सिर्फ एक बीमारी के लिए खर्च किया जा रहा है।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सेक्स, कण्डोम, एड्स के बारे में बात करने पर आज भी लोग काफी असहज महसूस करते हैं । इस सम्बन्ध में टीवी पर अगर कोई विज्ञापन भी प्रसारित हेाता है तो देखने वाले चैनल बदल देते हैं । फिर प्रश्न उठता है कि एड्स निवारण के नाम पर जो करोड़ो का फंड आता हे वो जाता कहाॅं है ? क्योंकि न तो इसके ज्यादा मरीज हैं, और जो मरीज हैं भी उन्हें भी सुनिश्चित दवा और सहायता उपलब्ध नहीं कराई जाती । वित्तीय अनियमितता अपने चरम पर है । एड्स नियत्रंण कार्यक्रम सिर्फ नोट कमाने का जरिया बनकर रह गये है वहीं एड्स की कीमत पर अन्य बीमारियों के लिए सरकार समुचित फंड और सुविधायें उपलब्ध नहीं करा पा रही है ।
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