दुनिया का सबसे बड़ा अनुत्तरित सवाल
प्रमोद जोशी
अमेरिका से एक साप्ताहिक पत्रिका निकलती थी ‘वीकली वर्ल्ड न्यूज।’इस पत्रिका की खासियत थी ऊल-जलूल, रहस्यमय, रोमांचकारी और
मज़ाकिया खबरें। इन खबरों को वड़ी संजीदगी से छापा जाता था। यह पत्रिका सन 2007
में बंद हो गई, पर आज भी यह एक टुकड़ी के रूप में लोकप्रिय
टेब्लॉयड ‘सन’ के
इंसर्ट के रूप में वितरित होती है। अलबत्ता इसकी वैबसाइट लगातार सक्रिय रहती है।
इस अखबार की ताजा लीड खबर है ‘एलियन
स्पेसशिप टु अटैक अर्थ इन डेसेम्बर’दिसम्बर में धरती पर हमला
करेंगे अंतरिक्ष यान। खबर के अनुसार सेटी (सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल
इंटेलिजेंस) के वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि सुदूर अंतरिक्ष से तीन यान धरती की
ओर बढ़ रहे हैं, जो
दिसम्बर तक धरती के पास पहुँच जाएंगे। इनमें सबसे बड़ा यान तकरीबन 200 मील चौड़ा
है। बाकी दो कुछ छोटे हैं। इस वक्त तीनों वृहस्पति के नजदीक से गुजर रहे हैं और
अक्टूबर तक धरती से नजर आने लगेंगे। यह खबर कोरी गप्प है, पर
इसके भी पाठक हैं। पश्चिमी देशों में अंतरिक्ष के ज़ीबा और गूटान ग्रहों की
कहानियाँ अक्सर खबरों में आती रहतीं हैं, जहाँ इनसान से कहीं
ज्यादा बुद्धिमान प्राणी निवास करते हैं। अनेक वैबसाइटें दावा करती हैं कि दुनिया
के देशों की सरकारें इस तथ्य को छिपा रही हैं कि अंतरिक्ष के प्राणी धरती पर आते
हैं। आधुनिक शिक्षा के बावजूद दुनिया में जीवन और अंतरिक्ष विज्ञान को लेकर
अंधविश्वास और रहस्य ज्यादा है, वैज्ञानिक जानकारी कम।
अंतरिक्ष में जीवन
आपने फिल्म ईटी देखी होगी। नहीं तो टीवी सीरियल देखे होंगे जिनमें
सुदूर अंतरिक्ष में रहने वाले जीवों की कल्पना की गई है। एलियन सीरीज़ की फिल्में, स्टार ट्रैक, द प्लेनेट ऑफ द एप्स, 2010: द ईयर वी मेक कांटैक्ट, 2001
स्पेस ओडिसी और एलियन वर्सेज प्रिडेटर जैसी तमाम फिल्में बन चुकी हैं या बन रही
हैं। अंतरिक्ष के परग्रही प्राणियों से मुलाकात की कल्पना हमारे समाज, लेखकों, फिल्मकारों
और पत्रकारों को रोमांचित करते रही है। अखबारो मे, टीवी में उड़नतश्तरियों की खबरें अक्सर दिखाई पड़ती हैं। हॉलीवुड से
बॉलीवुड तक फिल्में बनी हैं। ‘इंडिपेंडेंस डे’ के हमलावर, ’एम आई बी’ के आंतकी या ’ईटी’ और ’कोई मिल गया’ के
दोस्त अंतरिक्ष से आते हैं!
एचजी वेल्स के उपन्यास ‘वॉर ऑफ द वर्ल्ड्स’ मे
पृथ्वी पर मंगल के निवासियों का हमला दिखाया गया था। 30 अक्टूबर 1938 को सीबीएस
रेडियो पर अनाउंसर आर्सन वेलेस ने घोषणा की कि धरती पर मंगलग्रह के निवासियों ने
हमला बोल दिया है। इसे सुनते ही हड़कम्प मच गया है। इसी तरह सन 1950 में कुछ लोगों
ने मंगल ग्रह पर अंग्रेजी का विशाल ‘एम’ बना
देखा। उनके अनुसार यह पृथ्वी के लोगों के लिए मंगलवासियो का संदेश था। अंग्रेजी का
एम मार्स शब्द का पहला अक्षर था। नकारात्मक सोच वालों के लिए यह एम नहीं डब्ल्यू
था यानी वॉर। शायद मंगल पर आई धूल भरी आँधी ने यह ने सतह को ढक लिया था। ज्वालामुखियों
के चार शिखर इससे ढक नही पाए थे। ये चारो शिखर एम जैसी आकृति बना रहे थे।
गलतफहमी
पिछले दो साल से लद्धाख में आकाश में हर रोज होने वाली एक घटना पर
सुरक्षा सेनाओं ने ध्यान दिया। भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी)
की यूनिटों ने जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में उडऩे वाली अनजान वस्तुओं
(यूएफओ) के देखे जाने की खबर दी। पैंगांग झील के करीब थाकुंग में तैनात आइटीबीपी
की यूनिट ने पिछले साल 1 अगस्त से 15 अक्तूबर के बीच कम-से-कम 100 बार प्रकाशमान
वस्तुओं के देखे जाने की रिपोर्ट भेजी है। सितंबर में दिल्ली मुख्यालय और
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भेजी अपनी रिपोर्ट में उन्होंने दिन और रात में
वहां यूएफओ के देखे जाने की बात कही है। पीले से दिखने वाले ये प्रकाशीय पिंड चीन
की ओर क्षितिज से उठते हैं और तीन से पांच घंटे तक आकाश में उडऩे के बाद कहीं गायब
हो जाते हैं।
आइटीबीपी की धुंधली तस्वीरों के अध्ययन के बाद भारतीय सैन्य
अधिकारियों का मानना था कि ये गोले न तो मानवरहित हवाई उपकरण (यूएवी) हैं और न ही
ड्रोन या कोई छोटे उपग्रह हैं। ड्रोन पहचान में आ जाता है और इनका अलग रिकॉर्ड रखा
जाता है। पहले भी लद्दाख में ऐसे प्रकाश पुंज देखे गए हैं। इस साल लगातार ऐसे
प्रकाश पुंज देखे जाने की खबर से हलचल मच गई थी। बाद में अंतरिक्ष अनुसंधान विभाग
की टीम ने बताया कि यह वृहस्पति ग्रह है जो इस इलाके के करीब होने के कारण चमकदार
नजर आता है। यों ऐसा कोई दिन नहीं होता जब धरती के किसी इलाके में आकाश पर उड़ती
रहस्यमय वस्तुओं की सूचना दर्ज कराई न जाती हो। दुनिया भर से अंतरिक्ष के
प्राणियों के लाशें मिलने की खबरें मिलती हैं। पर वैज्ञानिक मानते हैं कि ज्यादातर
मामले गलतफहमी के होते हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा अनुत्तरित सवाल है कि क्या धरती के बाहर
अंतरिक्ष में कोई रहता है? कैसे लोग हैं वे? कहाँ
रहते हैं? इन दिनों मंगल ग्रह में पानी मिलने की चर्चा होने
के साथ-साथ वहाँ जीवन होने की संभावनाओं पर भी चर्चा हो रही है। लगता नहीं कि वहाँ
ऐसे जीवधारी रहते हैं, जो हमले कर सकें। शायद जीवन हो, भले ही बैक्टीरिया की शक्ल में हो। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ ने मंगल ग्रह पर मीथेन गैस की मौजूदगी से इनकार
करते हुए कहा है कि मंगल ग्रह पर किसी प्रकार का जीवन नहीं है। नासा का ‘क्यूरियोसिटी’ यान पिछले साल मंगल ग्रह की
पथरीली जमीन पर जीवन के नमूनों की खोज करने के लिए भेजा गया था। यह यान अपनी एक
खास लेजर रोशनी की सहायता से मंगल ग्रह पर ग्रीनहाउस गैस की खोज में जुटा है।
पिछले एक साल में यह मंगल ग्रह पर तकरीबन एक मील का सफर तय कर चुका है। अभी तक इसे
जीवन के बारे में पुख्ता जानकारी हासिल नहीं हो पाई है। भारत का मंगलयान इन दिनों
अपना रास्ता तय कर रहा है। उसका उद्देश्य भी वहाँ मीथेन की खोज करना है। पर जीवन
की सम्भावना का सवाल मंगल ग्रह को लेकर ही नहीं है। उसकी तो हमे समूचे अंतरिक्ष
में तलाश है। और केवल जीवन की तलाश ही नहीं बुद्धि-सम्पन्न प्राणी की तलाश।
वह दोस्त है या दुश्मन?
हम अपने आस-पास देखें। ज़िन्दा और गैर-ज़िन्दा दोनों तरह की चीजें
दिखाई पड़ेंगी। कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी,साँप, मछलियों से लेकर घास-काई, पेड़-पौधे
तमाम तरह की जीवित चीजें नज़र आएंगी। इनसान इन सबसे अलग है। वह बुद्धि सम्पन्न है।
उसने अपनी बुद्धि के सहारे अपने रहन-सहन के तरीके को बदला। जानकारी को बढ़ाते हुए
वह सुदूर अंतरिक्ष की तलाश कर रहा है। क्या कहीं और जीवन है? कैसा भी जीवन चाहे काई की शक्ल में हो या बैक्टीरिया की। और अगर
हमारे जैसा बुद्धि सम्पन्न हो तब भी। जब हम बुद्धि सम्पन्न प्राणी के बारे में
सोचते हैं तो यह भी सोचना पड़ता है कि कितना बुद्धि सम्पन्न? वह हमसे हजारों साल पीछे भी हो सकता है और लाखों-करोड़ों साल आगे भी।
हमारी आदत है, जब किसी से मिलते हैं पहले देखते हैं कि इसका
बर्ताव दोस्ताना है या नहीं। समूचा प्राणि-जगत एक-दूसरे की मदद करता है और
एक-दूसरे को निगलता भी है। मनुष्य के भीतर अपनी सुरक्षा का भाव सबसे गहरा है। वह
अपरिचित को कड़ी निगाह से देखता है। फिल्म ‘ईटी’ में
अंतरिक्ष से आए प्राणी की रक्षा धरती के छोटे बच्चे करते हैं। पर क्या अंतरिक्ष से
आए सभी प्राणी निरीह होंगे? प्रसिद्ध
वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने चेताया है कि वह खतरनाक भी हो सकता है। डिस्कवरी चैनल
पर ‘इन टु द युनिवर्स विद
स्टीफन हॉकिंग’ श्रृंखला में हॉकिंग ने कहा
है कि मान लो वह प्राणी बुद्धि सम्पन्न है और प्रकृति के साधनों का दोहन करना
जानता है। उसके ऊर्जा स्रोत खत्म हो रहे हैं। उसने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है
जिससे वह कहीं से भी ऊर्जा ला सकता है। हो सकता है वह हमारे सौर मंडल से ऊर्जा
खींच ले जाना चाहे। तब वह हमारे अस्तित्व का संकट खड़ा कर देगा। यह एक कल्पना है, पर अविश्वसनीय नहीं है। हम भी तो अंतरिक्ष में इसीलिए जा रहे हैं कि
अंतरिक्ष से साधन लाए जाएं। हमारी खोज पहला चरण है। दूसरा चरण तो साधनों के दोहन
का होगा। धरती पर भी उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की यात्राएं किस लिए हैं?
क्या वहाँ जीवन है?
कोई वैज्ञानिक विश्वास के साथ नहीं कह सकता कि अंतरिक्ष में जीवन है।
किसी के पास प्रमाण नहीं है। पर कार्ल सागां जैसे अमेरिकी वैज्ञानिक मानते रहे हैं
कि अंतरिक्ष की विशालता और इनसान की जानकारी की सीमाओं को देखते हुए यह भी नहीं
कहा जा सकता कि जीवन नहीं है। जीवन कहीं अंतरिक्ष में ही उपजा और करोड़ों साल पहले
किसी तरह पृथ्वी पर उसके बीज गिरे और यहाँ वह विकसित हुआ। कार्ल सागां का अनुमान
था कि हमारे पूरे सौर मंडल में बैक्टीरिया हैं। यह अनुमान ही है, किसी के पास बैक्टीरिया का नमूना नहीं है। आने वाले कुछ वर्षों में
मंगल या चंद्रमा के नमूनों में बैक्टीरिया मिल जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
मंगल पर मिले रासायनिक तत्वों में जीवन के दस्तखत मिले हैं। उनकी पुष्टि में कुछ
साल लगेंगे। हाल में चंद्रमा में पानी मिलने की पुष्टि हुई है। पानी जीवन का
महत्वपूर्ण वाहक है।
अभी हम अपने सौरमंडल में खोज कर रहे हैं। सुदूर अंतरिक्ष में ऐसे कुछ
ग्रहों के होने की जानकारी मिली है, जिनकी
संरचना हमारी धरती से मिलती-जुलती है। जब धरती पर जीवन है तो क्या वहाँ नहीं होगा?अभी हमारी पहुँच का दायरा बहुत छोटा है। दूसरे हम एक महत्वपूर्ण
भौतिक तत्व डार्क मैटर के बारे में कुछ नहीं जानते। सिर्फ इतना जानते हैं कि वह है, पर वह किसी भी रूप में हमारे भौतिक तत्वों से सम्पर्क नहीं करता।
सृष्टि के इस महत्वपूर्ण अंग के बारे में जब हमें कुछ और पता लगेगा तब शायद हमारा
ज्ञान बढ़े।
कहाँ तक पहुँचा है इनसान?
साठ के दशक में जब इनसान ने अपने यान धरती की कक्षा में पहुँचा दिए
तब आसमान की खिड़की को और खोलने का मौका मिला। अमेरिका और रूस की आपस में
प्रतियोगिता चल रही थी, पर दोनों देशों के दो वैज्ञानिकों ने मिलकर एक काम
किया। कार्ल सागां और रूसी वैज्ञानिक आयसिफ श्क्लोवस्की ने मिलकर एक किताब लिखी
इंटेलिजेंट लाइफ इन युनिवर्स। उसके पहले 1961 में सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल
इंटेलिजेंस (सेटी) का पहला सम्मेलन हो चुका था। वैज्ञानिकों का निश्चय था कि दूर
कोई है और समझदार भी है तो वह या तो हमें संकेत देगा या हमारा संकेत पकड़ेगा। कई
जगह रेडियो टेलिस्कोप लगाए गए। इस दौरान दुनिया भर से उड़न तश्तरियों के आने और
आकाश में अजब सी गतिविधियोँ होने की खबरें मिलती रहतीं थी।
हम लगातार अपने रेडियो टेलिस्कोपों से अंतरिक्ष को देखते हैं तो
अक्सर कुछ होता है जिससे लगता है कि कोई हमसे बात करना चाहता है। अमेरिका की मशहूर
विज्ञान पत्रिका ‘न्यू साइंटिस्ट’ ने सितम्बर 2006 मे 10 ऐसी
बातें गिनाईं जो इशारा करती हैं कि खोज जारी रखें तो
अंतरिक्ष में जीवन होने के पक्के सुबूत भी मिल जाएंगे, बल्कि जीवन भी मिल जाएगा। पहले आप इन 10 बातों पर गौर फरमाएं:-
1.सन 1976 में नासा के वाइकिंग लैंडर ने मंगल ग्रह से जो मिट्टी भेजी
उसमें जीवन के संकेत मिले। इस मिट्टी को रेडियो एक्टिव पोषक तत्वों के साथ मिलाया
गया तो उससे मीथेन गैस निकली। इससे लगा कि मिट्टी में कोई चीज़ है जो पोषक तत्वों
के साथ मेटाबोलाइज़ कर गैस बना रही है। इसके अलावा बाकी किसी नमूने का परिणाम
पॉज़िटिव नहीं निकला, इसलिए इस प्रयोग को गलत य फॉल्ज़ मान लिया गया। यों
मंगल के नमूनों पर आज भी काम ज़ारी है।
2.अगस्त 1977 में अमेरिका की ओहायो स्टेट युनिवर्सिटी के रेडियो
टेलिस्कोप ने धनु तारामंडल (सैजिटेरियस कांस्टिलेशन) के पास से असाधारण रेडियो
एक्टिव लहर दर्ज की। 31 सेकंड का वह सिग्नल इतना ज़बर्दस्त था कि उसे दर्ज़ करने
वाले वैज्ञानिक ने टेलिस्कोप के प्रिंट आउट पर किनारे लिखा ‘वाव’(WOW)। यह संकेत आज भी रहस्य है।
3.सन 1996 में नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि अंटार्कटिक में आलू
की शक्ल के कुछ पत्थर मिले हैं, जो मंगलग्रह से किसी वक्त हुए विस्फोट से टूटे
होंगे और करीब डेढ़ करोड़ साल अंतरिक्ष में विचरने के बाद धरती पर गिरे होंगे। इन
पत्थरों की सतह पर जैविक कण मिले हैं। बाद में वैज्ञानिकों ने कहा कि सम्भव है ये
कण धरती पर ही प्रयोगशाला में उपजे हों।
4.सन 1961 में अमेरिका के रेडियो विज्ञानी फ्रैंक ड्रेक ने प्राप्त
तथ्यों के आधार पर यह अनुमान लगाने की कोशिश की कि कितने ग्रहों में बुद्धिसम्पन्न
प्राणी होने की सम्भावना है। उन्होंने सूर्य, पृथ्वी
और अन्य ग्रहों के निर्माण की गति वगैरह को लेकर अनुमान लगाया कि हमारी आकाशगंगा
के ही करीब 10,000
ग्रहों में जीवन सम्भव है। इसे ड्रेक समीकरण कहते हैं। उस समीकरण के 40 साल बाद
2001 में ड्रेक की पद्धति को और कठोर करके वैज्ञानिकों ने फिर से समीकरण बनाया तो
वह कहता है कि लाखों ग्रहों में जीवन सम्भव है।
5.सन 2001 में वैज्ञानिकों ने कहा कि वृहस्पति के चन्द्रमा यूरोपा की
लालिमा के पीछे जीवाणु या फ्रोज़न बैक्टीरिया हो सकते हैं। यूरोपा की सतह पर बर्फ
है। जब उसपर इन्फ्रा रेड रेडिएशन होता है तो उसका परावर्तन(रिफ्लेक्शन) अजीब ढंग
से होता है। लगता है कोई चीज़, शायद मैगनीशियम सॉल्ट इस बर्फ में है। इस वजह से
इसका रंग हल्का लाल भी है।
6.सन 2002 में रूसी वैज्ञानिकों ने दावा किया कि मंगल की सतह पर
ज़बर्दस्त रेडिएशन के बावज़ूद ऐसे जीवाणु हो सकते हैं, जिनमें
उस रेडिएशन को सहन करने की क्षमता विकसित हो चुकी हो। इन वैज्ञानिकों ने अपने
प्रयोगों में कुछ जीवाणुओं पर रेडिएशन का इतना बॉम्बार्डमेंट किया कि इनमें से कुछ
बच जाएं। करीब 44 राउंड के बाद बचे जीवाणुओं के अंदर रेडिएशन को सहन करने की इतनी
क्षमता पैदा हो गई कि उन्हें खत्म करने के लिए मूल डोज़ का पचास गुना ज़्यादा
रेडिएशन करना पड़ा। इससे निष्कर्ष निकलता है कि करोड़ों साल के बॉम्बार्डमेंट से वे
जीवाणु बहुत जीवट हो चुके होगे। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मंगल के इन जीवाणुओं
के पूर्वड उल्काओं के माध्यम से पृथ्वी पर गिरे थे।
7.शुक्र के अध्ययन के लिए गए प्रोब भी रासायनिक संकेत देते हैं कि
उसके बादलों में जीवाणु हो सकते हैं। टैक्सस युनिवर्सिटी के बैज्ञानिकों ने 2002
में ऐसे निष्कर्ष निकाले। इन्होंने नासा के पायनियर और मैगलन प्रोब से प्राप्त
डेटा के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला। सोलर रेडिएशन से शुक्र पर कार्बन मोनोक्साइड
मौज़ूद है। हाइड्रोज़न सल्फाइड और सल्फर डाइऑक्साइड दोनों मौज़ूद हैं। इन दोनों की
आपस में प्रतिक्रिया होती है। आंतौर पर दोनों गैसें एक साथ तब तक मौज़ूद नहीं होतीं, जब तक किसी प्रक्रिया से वे लगातार बन न रहीं हों। सबसे रहस्यमय है
कार्बोनाइल सल्फाइड की उपस्थिति। धरती पर इसे जीवाणु ही तैयार करते हैं, कोई अन्य जैविक प्रक्रिया नहीं। लगता है कि शुक्र पर कोई जीवाणु है।
8.सन 2003 में इटैलियन वैज्ञानिकों ने अधारणा बनाई कि वृहस्पति के
चन्द्रमा युरोपा पर मिले गंधक के अंश भी जीवन के लक्षण हो सकते हैं। धरती पर
अंटार्कटिका में मिले बैक्टीरिया के वेस्ट प्रोडक्ट के रूप में प्राप्त गंधक भी
ऐसी है। यह बैक्टीरिया गहरे पानी में जीवित रह सकता है और युरोपा की सतह पर भी।
9.सन 2004 में पृथ्वी से टेलिस्कोप के सहारे मंगल का अध्ययन कर रहे
तीन ग्रुपों का कहना था कि मंगल के वायुमंडल में मीथेन है। इसके अलावा युरोपियन
स्पेस एजेंसी के मंगल के चारों ओर घूम रहे प्रोब मार्स एक्सप्रेस ने भी मीथेन की
पुष्टि की। पृथ्वी के वायुमंडल में मीथेन बैक्टीरिया और अन्य जीवाणु पैदा करते
हैं।
10.फरवरी 2003 में सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्टीरियल इंटेलिजेंस
(सेटी) प्रोजेक्ट के वैज्ञानिकों ने प्यूर्ते रिको में एक विशाल टेलिस्कोप से आकाश
के उन 200 हिस्सों का सघन अध्ययन किया जहाँ से अतीत में रहस्यमय रेडियो संकेत मिले
थे। इनमे से एक को छोड़कर सारे सिग्नल खत्म हो गए। यह अकेला सिग्नल पहले की तुलना
में और ताकतवर होता गया। और कम से कम तीन बार मिला। यह संकेत मीन और मेष राशियों
के तारामंडल की दिशा से आया था, जहाँ कोई नक्षत्र या ग्रह नहीं हैं। शायद इस
सिग्नल में कोई संकेत छिपा हो। यह भी हो सकता है कि यह सिग्नल किसी अंतिरिक्षीय
घटना का संकेत हो।
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन भारत का सबसे गरीब मुख्यमंत्री और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteSpace se adrashya kiran aati hui bahut dino pahle maine kuch samay ke liye mehsoos ki. Isske baad mujhe pata chala ki ye kiran lagataar mere upar aati rahti hai lekin mehsoos nahi hoti hai. Aur pata chala ki ye kiran makan, bus, train aadi ke aar-paar chali jatee hai aur insaan ke mind me bhi pravesh kar jatee hai. Ye kiran dharti par bahut si jagaho par aa rahi hai. Isski sahayata se koi ( Shayad Alien ) vah padh rahe hai jo hum apne mind me soch-samajh rahe hai aur hamari soch-samajh me badlaav bhi kar rahe hai. Isse logo ke saath bura ho jaa raha hai. Main bilkul sach bata raha hoon. Koi chahe to mera lie-detecter test kara le. Isske allava iss baat ka aur koi suboot prapt nahi kiya jaa sakta hai kyonki ve uss jagah par apni adrashya kiran nahi dalenge jahan unhe pakda jaa sakta hai. Issi liye hum log Alien nahi khoj pate hai.
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