
इसरो ने देश में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के जरिये रॉकेट जीएसएलवी डी- 5 का सफल प्रक्षेपण कर अंतरिक्ष के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाकर नया इतिहास रच दिया। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित 49.13 मीटर लंबा यह रॉकेट 1,982 किलोग्राम वजनी संचार उपग्रह जीसेट-14 को उसकी वांछित कक्षा में स्थापित करने में कामयाब रहा। 365 करोड़ रुपये की लागत वाले रॉकेट जीएसएलवी डी-5 के इस सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत विश्व का ऐसा छठा देश बन गया, जिसके पास अपना देसी क्रायोजेनिक इंजन है। अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के पास पहले से ही यह तकनीक है। क्रायोजेनिक इंजन तकनीक से लैस चुनिंदा राष्ट्रों के क्लब में शामिल होने के बाद भारत को अपने उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इतना ही नहीं अब वह दूसरे देशों के उपग्रहों का प्रक्षेपण कर विदेशी मुद्रा अर्जित करने की स्थिति में भी आ गया है।
तीन नाकामियों के बाद देसी क्रायोजेनिक इंजन के साथ 414.75 टन
वजनी जीएसएलवी डी-5 रॉकेट के सफल प्रक्षेपण से भारतीय
वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड़ गयी . प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस उपलब्धि पर
इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है।वाकई में ये एक बड़ी कामयाबी है क्योंकि इस मिशन के लिए जैसे मानक तय किए गए थे,
उस पर भारतीय क्रायोजेनिक इंजन सौ फीसद खरा उतरते हुए जीसेट-14
को सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया । अभी तक भारत दूसरे देशों की मदत
से अपने 3.5 टन के संचार उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए 500
करोड़ की फीस चुकाया करता था । जबकि जीएसएलवी यह काम 220 करोड़ में करेगा। जीसेट-14 के प्रक्षेपण पर 145
करोड़ का खर्च आया है। क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने में बीस वर्षो
की मेहनत रंग लाई है । भारत के लिए यह ऐतिहासिक दिन है।
जीएसएलवी प्रक्षेपण की चुनौती
![]() |
दैनिक जागरण |
असल
में जीएसएलवी में प्रयुक्त होने वाला
द्रव्य ईंधन इंजन में बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए
ऐसे इंजन क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक
ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस
इंजन में हाइड्रोजन और ईंधन क्रमश ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन
की अपेक्षा यह कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट देते हैं।
विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है।
क्रायोजेनिक
इंजन के थ्रस्ट में तापमान बहुत ऊंचा (2000 डिग्री सेल्सियस से अधिक) होता है। अत
ऐसे में सर्वाधिक प्राथमिक कार्य अत्यंत विपरीत तापमानों पर इंजन व्यवस्था बनाए
रखने की क्षमता अर्जित करना होता है। क्रायोजेनिक इंजनों में -253 डिग्री सेल्सियस
से लेकर 2000 डिग्री सेल्सियस तक का उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए
थ्रस्ट चैंबरों, टर्बाइनों और ईंधन के सिलेंडरों के लिए कुछ
विशेष प्रकार की मिश्र-धातु की आवश्यकता होती है।
फिलहाल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बहुत कम तापमान को आसानी
से झेल सकने वाली मिश्रधातु विकसित कर ली है।
अन्य
द्रव्य प्रणोदकों की तुलना में क्रायोजेनिक द्रव्य प्रणोदकों का प्रयोग कठिन होता
है। इसकी मुख्य कठिनाई यह है कि ये बहुत जल्दी वाष्प बन जाते हैं। इन्हें अन्य
द्रव प्रणोदकों की तरह रॉकेट खंडों में नहीं भरा जा सकता। क्रायोजेनिक इंजन के
टरबाइन और पंप जो ईंधन और ऑक्सीकारक दोनों को दहन कक्ष में पहुंचाते हैं, को भी
खास किस्म के मिश्रधातु से बनाया जाता है।, द्रव हाइड्रोजन
और द्रव ऑक्सीजन को दहन कक्ष तक पहुंचाने में जरा सी भी गलती होने पर कई करोड़ रुपए
की लागत से बना जीएसएलवी रॉकेट रास्ते में जल सकता है। इसके अलावा दहन के पूर्व
गैसों (हाइड्रोजन और ऑक्सीजन) को सही अनुपात में मिश्रित करना, सही समय पर दहन प्रारंभ करना, उनके दबावों को
नियंत्रित करना, पूरे तंत्र को गर्म होने से रोकना जरूरी है
।
जीएसएलवी ऐसा मल्टीस्टेज रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक वजनी उपग्रह
को पृथ्वी से 36000 किमी. की ऊंचाई पर भू स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो
विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा के ऊपर होता है। ये अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते
हैं। इनके आखिरी यानी तीसरे चरण में सबसे अधिक बल की जरूरत पड़ती है। रॉकेट की यह
जरूरत केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बगैर क्रायोजेनिक इंजन के
जीएसएलवी रॉकेट बनाया जा सकना मुश्किल होता है।
दो टन से अधिक वजनी उपग्रह ही हमारे लिए ज्यादा काम के होते हैं इसलिए
दुनिया भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी
रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर 36000 किमी.
की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही जीएसएलवी रॉकेट की प्रमुख
विशेषता है।
देश का 23वां संचार उपग्रह है जीसेट-14
देसी क्रायोजेनिक इंजन के साथ सफलतापूर्वक प्रक्षेपित रॉकेट जीएसएलवी
डी5 द्वारा वांछित कक्षा में स्थापित जीसेट-14 दरअसल
भारत का 23वां भूस्थैतिक संचार उपग्रह है।

जीएसएलवी
के पूर्व अभियान
जीएसएलवी-एफ
06 ने 25 दिसंबर, 2010 को जीसैट-5पी का प्रक्षेपण किया जो असफल रहा।
जीएसएलवी-डी
3 ने 15 अप्रैल, 2010 को जीसैट-4
का प्रक्षेपण किया जो असफल रहा।
जीएसएलवी-एफ
04 ने 2 सितंबर, 2007 को इन्सेट-4
सीआर का सफल प्रक्षेपण किया गया।
जीएसएलवी-एफ02 ने 10
जुलाई, 2006 को इन्सेट-4 सी का प्रक्षेपण किया गया लेकिन यह असफल रहा।
जीएसएलवी-एफ
01 ने 20 सितंबर, 2004 को एडुसैट
(जीसैट-3) का सफल प्रक्षेपण किया गया।
जीएसएलवी-डी
2 ने 8 मई, 2003 को जीसैट-2
का सफल प्रक्षेपण किया गया।
जीएसएलवी-डी
1 ने 18 अप्रैल, 2001 को जीसैट-1
का सफल प्रक्षेपण किया गया।
जीएसएलवी डी-5 मिशन के मकसद
इसरो के अनुसार जीएसएलवी डी-5 मिशन के दो मकसद रहे। पहला देसी क्रायोजेनिक
इंजन का परीक्षण और दूसरा संचार उपग्रह को उसकी कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित
करना था। दोनों ही मिशन में कामयाबी हाथ लगी। इसरो प्रमुख राधाकृष्णन के अनुसार,
'हम जीएसएलवी डी-5 के जरिये जीसेट-6,7ए और 9 का प्रक्षेपण करेंगे। हम इस रॉकेट का
इस्तेमाल अपने दूसरे चंद्रयान मिशन और जीआइसेट की लांचिंग में भी करेंगे।' इसरो की इस कामयाबी पर विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के निदेशक एस
रामाकृष्णन ने खुशी का इजहार करते हुए कहा कि 'इसरो में हम
जीएसएलवी को शैतान बच्चा कहा करते थे, लेकिन आज वह नटखट बहुत
ज्यादा आज्ञाकारी बालक बन गया है।'
जीएसएलवी का प्रक्षेपण इसरो के लिए
बेहद अहम है क्योंकि दूर संचार उपग्रहों, मानव युक्त अंतरिक्ष अभियानों या दूसरा चंद्र मिशन
जीएसएलवी के विकास के बिना संभव नहीं है। इस प्रक्षेपण में सफलता इसरो के लिए
संभावनाओं के नए द्वार खोलने वाली है ..
article link
http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/09-jan-2014-edition-National-page_9-5155-107859584-262.html
article link
http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/09-jan-2014-edition-National-page_9-5155-107859584-262.html
No comments:
Post a Comment