Thursday 28 November 2013

लेखन में सफलता के पीछे का सच ..

आज कुछ कहने का मन है लेखन के बारे में

शशांक द्विवेदी 

  2004 में दैनिक जागरण,आगरा में प्रकाशित
पिछले 10 दिनों में विभिन्न विषयों पर देश के कई प्रमुख हिंदी अखबारों और पत्रिकाओं में मसलन दैनिक जागरण ,नवभारतटाइम्स,हिंदुस्तान ,लोकमत ,नई दुनियाँ ,राष्ट्रीय सहारा ,डेली न्यूज ,प्रभातखबर ,जनसंदेश टाइम्स , हरिभूमि ,हिमाचल दस्तक ,ट्रिब्यून ,अमर उजाला कॉम्पैक्ट ,द सी एक्सप्रेस ,कल्पतरु एक्सप्रेस ,डीएनए ,दबंग दुनियाँ ,आई नेक्स्ट ,मिड डे ,जनवाणी ,दैनिक आज के साथ सुप्रसिद्ध मैगज़ीन शुक्रवार ,इलेक्ट्रानिकी में मेरे लेख प्रकाशित हुए.. कभी –कभी ये सब सपना जैसा लगता है लेकिन हकीकत में ये सब देखकर बेहद खुशी मिलती है कि बचपन में एक स्तंभकार बनने का सपना सच हो रहा है .हर दिन खुद से ही मेरा कंपटीशन रहता है ,हर दिन बस और बेहतर ..और बेहतर लिखने की ललक रहती है .कितना भी लिख लू ,कितना भी छप जाए हर दिन एक नई चुनौती लेकर फिर आगे बढ़ने की कोशिश करता हूँ .मेरे आलोचक ही मेरे प्रेरणा स्रोत रहें है ,जब कोई मेरे लेख पढ़कर मुझे नकारने लगता है तो सोचता हूँ अगली बार इससे भी ज्यादा बेहतर करूँगा ,कोई कब तक नकारेगा ? 20 साल की उम्र से लिखना शुरू किया पहले संपादक के नाम पत्र ,फिर लेख ,इस दौरान मैंने बहुत उपेक्षा झेली ..किसी ने कहा त्योहारी लेखक हो तो किसी ने कहा कि छापामार लेखक हो ,किसी ने कहा हिंदी में विज्ञान लिखते हो कौन छापेगा तो किसी ने कहा कि ये सब छोड़कर कुछ ढंग का काम करो ..बहुत सारी बाते लोगों ने कही ,..ठेस भी पहुँची लेकिन रुका नहीं ..इतने ज्यादा आलोचकों के साथ कुछ ऐसे भी लोग मुझे बहुत कम उम्र में मिले जिन्होंने मुझे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दिया ,लिखना सिखाया ,सम्मान दिया ..ऐसे लोगों के बारे में कुछ याद करता हूँ तो सबसे पहले सुभाष राय सर (उस समय अमर उजाला आगरा में स्थानीय संपादक थे,वर्तमान में जनसंदेशटाइम्स के समूह संपादक) का नाम याद आता है जिन्होंने 2003 में (जब मै इंजीनियरिंग तृतीय वर्ष का छात्र था ) मुझे अमर उजाला के लिए एक कॉलम साइबर बाइट्स लिखने का मौका दिया ,खूब प्यार दिया ,सम्मान दिया ..उस दरम्यान मेरे सबसे बड़े अभिभावक वही थे ,आफिस में रोज कॉफी पिलाते थे.उनके पास रोज एक घंटे बैठकर मै बक –बक करता रहता था और वो ध्यान से सुनते रहते थे ..कभी कुछ कहा नहीं ,डांटा नहीं .सिर्फ सिखाया ,बताया ,समझाया .दूसरे व्यक्ति है राजीव सचान सर(वर्तमान में दैनिक जागरण ,राष्ट्रीय संस्करण के प्रमुख ) जिनसे मै कभी मिला नहीं ,पिछले 10 सालों से सिर्फ फोन पर बातें हुई लेकिन इन्होने मुझ जैसे बच्चे को भी गंभीरता से लिया .जब उनसे पहली बार बात हुई तो उसका बड़ा दिलचस्प किस्सा है ,मुझे उस समय किसी ने बताया कि अगर तुम्हारे लेख दैनिक जागरण ,अमर उजाला और जनसत्ता में छप गये तो तुम बड़े लेखक बन जाओगे ,मेरे मन में ये बात पूरी तरह से बैठ गयी थी ,अब तो सिर्फ बड़ा लेखक बनने के सपने आने लगे ,लेकिन हकीकत में बड़ा संघर्ष था आगे 
मै दैनिक जागरण के कानपुर आफ़िस में अपने लेख भेजा करता था संपादकीय विभाग के नाम ,मैंने कई लेख भेजे लेकिन वो प्रकाशित नहीं हुए तो मै मायूस हुआ ,फिर क्या था एक दिन शाम को मैंने जागरण के कानपुर आफ़िस फोन किया ,बोला कि संपादक जी से बात कराओं तो आपरेटर ने कहा कि किस सम्बंध में और क्यों बात करनी है ,
मैंने कहा कि भाई मैंने कई लेख भेजे वो छपे क्यों नहीं ? आप तो बस बात कराइए (मुझे तो बस धुन सवार थी ,उस समय छात्र जीवन में लेख कागज़ पर पेन से लिखता था ,बाजार में उसे टाइप कराता था फिर उसे रजिस्ट्री या फैक्स के जरिये भेजता था ,एक लेख भेजने में 150 रुपये का खर्च आ जाता था इसलिए लेख कहीं नहीं छपता था तो बड़ा दुःख होता था ) 
आपरेटर ने फोन राजीव सचान जी को ट्रांसफर कर दिया 
मैंने कहा शशांक बोल रहा हू ,उन्होंने कहा कौन शशांक 
मैं बोला कि मैंने आपको कई लेख भेजे आपने छापा क्यों नहीं ?
वो बोले कि तुम करते क्या हो ? 
मैंने कहा कि इंजीनियरिंग का छात्र हू 
वो बोले कि जानते हो संपादकीय पेज क्या होता है?
मैंने कहा कि जानता हूँ ,हर शहर में ये पेज समान होता है,बाकी पेज बदलते रहते है ,बड़े लेखक लोग यहीं पर लिखते है इसलिए मुझे भी यहाँ लिखना 
राजीव जी बोले तुम अभी बच्चे हो ,बहुत छोटे हो 
मैंने कहा कि कुलदीप नैय्यर,भरत झुनझुनवाला (इन्ही को मै बड़ा लेखक मानता था ) भी कभी छोटे रहें होंगे ,जन्म से नहीं लिखने लगे होंगे ,तो मुझे भी मौका मिलना चाहिए 
फिर मैंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि आपकी टेबल के पास डस्ट्विन तो होगा 
वो बोले कि हां है 
मैंने कहा कि कृपया आप मेरे लेख एक बार पढ़िए अगर आप को पसंद न आये तो इन्हें फाड़ कर डस्ट्विन में फेक देना .लेकिन एक गुजारिश है कि इन्हें पढ़िए ,अगर गुणवत्ता दिखे तब प्रकाशित करियेगा.
इस बातचीत के बात पता नहीं उन्हें क्या लगा ,लेकिन कुछ दिन के बाद ही पहली बार मेरा लेख दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ और ये सिलसिला आज तक जारी है .उस समय जनसत्ता में राजेंद्र राजन जी,अमर उजाला में कल्लोल चक्रवर्ती,दैनिक आज में शिवमूरत यादव जी ने भी मेरी बाते सुनी ,मेरे लेख पढ़े और उन्हें प्रकाशित किये .इससे मेरा आत्मविश्वास बहुत ज्यादा बढ़ गया .इन पूरे 10 सालों में मैंने सिर्फ ये महसूस किया कि सपने जरुर देखो सपने पूरे होते है ,मेहनत का कोई विकल्प नहीं .भले ही आज मेरे लेख कई जगह प्रकाशित होते हो लेकिन मै अपनी औकात नहीं भूलता .आज भी जब कोई लेख लिखता हूँ तो उतनी ही मेहनत और शिद्दत के साथ जितना पहली बार लिखा था .इस दौरान और आज भी हर दो चार दिन में किसी न किसी संपादक महोदय से मेरी बहस हो जाती है ,वो मुझे न छापने की धमकी भी देते है लेकिन मै रुका नहीं ,झुका नहीं क्योंकि आज मेरे पास खोने को कुछ नहीं है ..अगर कोई एक छापने को मना करता है तो दूसरा तैयार है मुझे छापने को ... कोई नहीं भी छापेगा तो लिखने के लिए मेरी वेबसाइट है मेरे पास .. लोग मेरी शिकायत /आलोचना करते रहते है लेकिन इन सबसे मैंने सिर्फ अपनी गलतियों को सुधारा है और कभी किसी से समझौता नहीं किया क्योंकि मुझे लगता है लेखन से समझौता नहीं किया जा सकता ..सिर्फ अपनी शर्तों पर लिखा ,लोगों की आलोचना और तारीफ़ दोनों को एक तरह से ही लिया .यहाँ तक कि अखबार में प्रकाशित अपने लेख को ५ मिनट देखने और खुश होने के बाद मै अपने अगले लेख में लग जाता हूँ .लेखन मेरे लिए गरीब की मजदूरी की तरह है जहाँ अस्तित्व बचाए रखने के लिए रोज मेहनत करनी पड़ती है .इन लाइनों को जिंदगी में हमेशा महसूस करता हूँ ..
“मै अपने फन की बुलंदी से काम ले लूँगा 
मुझे मुकाम न दो मै खुद मुकाम ले लूँगा ...”
कुलमिलाकर लेखन मेरा प्यार है और मेरी जिंदगी है .


1 comment:

  1. भाई शशांक जी नमस्कार ।
    आपने तो हमें प्रेरित कर दिया लगातार लिखने के लिए । इतना उत्साहित करने वाला आपका अनुभव निश्चित ही बहुत प्रेरणादाायी है।
    आपसे सीख लेकर आज मैं भी राजीव सचान जी से बात करने वाला हूं। हाला‍ंंकि मैंं जागरण में पहले छपता रहा हूं लेकिन वेे जागरण भोपाल और झांंसी समूह के रहे हैं, कानपुुर या राष्ट्रीय संसकरण के लिए कभी छपनेे का प्रयास नहीं किया लेकिन अब आपको पढ़कर अवश्य ही यह प्रयत्न करने वाला हूं।
    बहुत बहुत धन्यवाद ।

    ReplyDelete