Thursday 7 November 2013

मंगल पर जीवन की तलाश

भारत के मंगल अभियान पर विशेष 
इसरों की ऊँची उड़ान
देश की सबसे बड़ी कामयाबी 


भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतिहास रचते हुए  अपने मंगल मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और पीएसएलवी सी25  रॉकेट  के माध्यम से मार्स आर्बिटर यान को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर दिया । मंगलयान को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सैटलाइट लॉन्च वेहिकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से छोड़ा गया । यह देश के लिए बहुत बड़ी कामयाबी है । इस सफलता के साथ ही भारत विश्व के उन चार देशों में शामिल हो गया जिन्होंने मंगल पर सफलता पूर्वक अपने यान भेजे है । भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अमरीका, रूस और और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) यूरोपीय यूनियन की अंतरिक्ष एजेंसी के बाद चैथी ऐसी एजेंसी बन गयी जिसने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है । चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं।19 अप्रैल 1975 में स्वदेश निर्मित उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के प्रक्षेपण के साथ अपने अंतरिक्ष सफर की शुरूआत  करने वाले इसरो की यह सफलता भारत की अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है ।  ये सफलता इसलिए खास है क्योंकि भारतीय प्रक्षेपण राकेटों की विकास लागत ऐसे ही विदेशी  प्रक्षेपण राकेटों की विकास लागत का एक-तिहाई है । 
लोकमत 
देश का मंगल अभियान पूर्णतया स्वदेशी तकनीक पर आधारित है और इस पूरे अभियान पर  450 करोड़ रुपये खर्च हुए । जिसमें प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी 25 की लागत 110 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा है और इसका वजन 1350 किलो है। मंगलयान को छोड़े जाने के बाद यह पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर करीब 10 महीने तक अंतरिक्ष में भ्रमण करता रहेगा। सितंबर 2014 में यह मंगल की कक्षा के पास पहुंचेगा। मंगल ग्रह की कक्षा 327 गुणा 80000 किलोमीटर की है। पृथ्वी की कक्षा को पार करने के लिए मंगलयान की गति 11 किलोमीटर प्रति सेकंड रखी गयी है लेकिन  मंगल की कक्षा में प्रवेश करने के लिए इस गति को कम किया जाएगा। यान की गति कम करते समय ही कई मंगल मिशन असफल हुए है इसलिए मंगल की कक्षा में प्रवेश करते समय विशेष सावधानी रखी गयी है ।
दैनिक जागरण 
पिछले कई सालों से  यह जानने की कोशिशें चलती रही हैं कि पृथ्वी के बाहर जीवन है या नहीं । इस  दौरान कई खोजों से ये अंदेशा हुआ कि शायद मंगल ग्रह पर जीवन है । लाल ग्रह यानी मंगल पर जीवन की संभावनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ही नहीं, आम आदमी की भी उत्सुकता लंबे अरसे से रही है । पृथ्वी से लाल रंग के दिखाई देने वाले ग्रह पर अब सभी की निगाहें टिकी हैं। आखिर मंगल की सच्चाई क्या है? ऐसे कई सारे सवाल हैं, जिनके जवाब तलाशने के लिए दूसरे देशों के  कई अभियान मंगल ग्रह पर भेजे भी गये । जिनमें लगभग आधे सफल रहें बाकी असफल रहें लेकिन इस बार लेकिन इस बार भारत ने मंगल पर जीवन की तलाश के लिए अपना मार्स आर्बिटर सफलता पूर्वक भेज दिया । 
हरिभूमि
कई शोधों से यह साबित हो चुका है कि  मंगल ग्रह ने धरती पर जीवन के क्रमिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है इसलिए यह अभियान देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण है । पृथ्वी की कक्षा को छोड़ने के बाद यान मंगल ग्रह के दीर्घवृताकार पथ में प्रवेश करेगा जो मंगल ग्रह से जुड़े रहस्यों का पता लगायेगा। मार्स आर्बिटर मिशन (एमओएम) का मुख्य ध्येय यह पता लगाना है कि लाल ग्रह पर मिथेन है या नहीं, जिसे जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण रसायन माना जाता है। भारत के मंगल अभियान में अंतरिक्ष यान में पांच पेलोड जुड़े हैं जिसमें से एक मिथेन सेंसर शामिल है और यह मंगल ग्रह पर मिथेन की उपलब्धता का पता लगायेगा, साथ ही अन्य प्रयोग भी करेगा।
यान के साथ 15 किलो का पेलोड भेजा गया है इनमें कैमरे और सेंसर जैसे उपकरण शामिल हैं, जो मंगल के वायुमंडल और उसकी दूसरी विशिष्टताओं का अध्ययन करेंगे। मंगल की कक्षा में स्थापित होने के बाद यान मंगल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां हमें भेजेगा। मंगलयान का मुख्य फोकस संभावित जीवन, ग्रह की उत्पत्ति, भौगोलिक संरचनाओं और जलवायु आदि पर रहेगा। यान यह पता लगाने की भी कोशिश करेगा कि क्या लाल ग्रह के मौजूदा वातावरण में जीवन पनप सकता है। मंगल की परिक्रमा करते हुए ग्रह से उसकी न्यूनतम दूरी 500 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 8000 किलोमीटर रहेगी। 
दबंग दुनियां 
हमारे अपने जीवन में भी मंगल ग्रह को लेकर अनगिनत कहानियां जुड़ी हैं। लेकिन कुछ खास तथ्य इस गुलाबी ग्रह का कौतूहल बढ़ा देते हैं। मंगल सौरमंडल में सूर्य से चैथा ग्रह है। पृथ्वी से लाल दिखाई देने की वजह से ही इसको लाल ग्रह का नाम दिया गया। मंगल के दो चंद्रमा, फोबोस और डिमोज हैं। माना जाता है कि यह यह 5261 यूरेका के समान एक क्षुद्रग्रह हैं जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहां फंस गए हैं। मंगल पर 1965 में भेजे गए मेरिनर 4 यान की उड़ान के समय तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था मे जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था। दूर से देखने में यहां पर विशालकाय नदियां और नाले दिखाई देते हैं। सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। पूर्ववर्ती अभियानों द्वारा जुटाए गए भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इशारा करते हैं कि मंगल ग्रह पर कभी बडे पैमाने में पानी मौजूद था। फिलहाल इस पर गहन शोध चल रहा है । मंगल एक स्थलीय ग्रह है जो सिलिकॉन और ऑक्सीजन युक्त खनिज, धातु और अन्य तत्वों से बना है जो आम तौर पर उपरी चट्टान बनाते हैं। मंगल ग्रह की सतह मुख्यत थोलेईटिक बेसाल्ट की बनी है। हालाकि यह हिस्से प्रारूपिक बेसाल्ट से अधिक सिलिका-संपन्न हैं और पृथ्वी पर मौजूद एंडेसिटीक चट्टानों या सिलिका ग्लास के समान हैं। मंगल की अधिकतर सतह लौह आक्साइड धूल के बारीक कणों से गहराई तक ढकी हुई है। मंगल की मिट्टी में मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम और क्लोराइड जैसे तत्व शामिल हैं। यह तत्व पृथ्वी पर भी मिट्टी में पाए जाते हैं जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक हैं।
मंगलयान मंगलग्रह परिक्रमा करते हुए ग्रह की जलवायु ,आन्तरिक बनावट, वहां जीवन की उपस्थिति, ग्रह की उत्पति, विकास आदि के विषय में बहुत सी जानकारी जुटा कर पृथ्वी पर भेजेगा। वैज्ञानिक जानकारी को जुटाने हेतु मंगलयान पर कैमरा, मिथेन संवेदक, उष्मा संवेदी अवरक्त वर्ण विश्लेषक, परमाणुविक हाइड्रोजन संवेदक, वायु विश्लेषक आदि पांच प्रकार के उपकरण लगाए गये हैं। इन उपकरणों का वजन लगभग 15 किलोग्राम के लगभग होगा। मेथेन की उत्पत्ति जैविक है या रसायनिक यह सूचना मंगल पर जीवन की उपस्थिति का पता लगाने में सहायक होगी। मंगलयान में ऊर्जा की आपूर्ती हेतु 760 वॉट विद्युत उत्पादन करने वाले सौर पेनेल लगे होगें।
इससे पहले के मंगल अभियानों में भी इस ग्रह के वायुमंडल में मिथेन का पता चला था, लेकिन इस खोज की पुष्टि की जानी अभी बाकी है। ऐसा माना जाता है कि कुछ तरह के जीवाणु अपनी पाचन प्रक्रिया के तहत मिथेन गैस मुक्त करते हैं।  लाल ग्रह यानी मंगल पर जीवन की संभावनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ही नहीं, आम आदमी की भी उत्सुकता लंबे अरसे से रही है । इस जिज्ञासा के जवाब को तलाशने के लिए कई अभियान मंगल ग्रह पर भेजे भी गये । इसका मुख्य काम यह पता करना है कि क्या कभी मंगल ग्रह पर जीवन था । मंगलयान ग्रह की मिट्टी के नमूनों को इकट्ठा कर यह पता लगायेगा कि क्या कभी मंगल पर जीवन था या नहीं? इस अभियान का उद्देश्य यह पता लगाना है कि वहां सूक्ष्म जीवों के जीवन के लिए स्थितियां हैं या नहीं और अतीत में क्या कभी यहां जीवन रहा है।
भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन से दुनियाँ  को बहुत उम्मीदें है  । इसके  जिनके जरिए ग्रह की चट्टानों, मिट्टी और वायुमंडल का विश्लेषण किया जा सकता है। जिससे  दुनियाँ को  मंगल के अतीत के बारे महत्वपूर्ण जानकारी  मिल सकती  हैं साथ में  यह पता चल सकता है कि अतीत में मंगल पर कितना पानी था, क्यां वहां की परिस्थितियां जीवन के अनुकूल थीं और ऐसे क्या कारण थे, जिनकी वजह से यह ग्रह आज एक बंजर लाल रेगिस्तान में तब्दील हो गया। इस मिशन में उन तकनीकों को शामिल किया गया है, जो आगे चल कर मंगल से नमूने लाने में मदद करेगी और अंतत वहां मनुष्य के मिशन को सुगम बनाएगी।

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