शेल गैस तथा उसके उत्पादन के पर्यावरणीय पहलुओं
को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. इस प्रकार के ऊर्जा संसाधन के विकास
के प्रति यूरोप का दृष्टिकोण अत्यन्त ही संदिग्ध है. लेकिन अमेरिका में शेल गैस का
उत्पादन शेल तेल की तरह ही काफी पहले से औद्योगिक मात्रा में किया जा रहा है.
नए 'शेल
हाइड्रोकार्बनों” के उत्पादन की
संभावित मात्रा की सटीक गणना नहीं की जा सकती है. अमेरिका अभी तक यह गणना नहीं कर
सका है कि वहाँ इन हाइड्रोकार्बनों का अब तक कितना उत्पादन हो चुका है. लेकिन यह
बात साफ़ है कि वहाँ हुए उत्पादन की मात्रा दुनिया के बाजार पर प्रभाव डालने के
लिये पर्याप्त है.
इन सब परिवर्तनों का असर उस क्षेत्र पर कैसा
पड़ेगा, जो अभी तक विश्व में हाइड्रोकार्बनों का सर्वप्रमुख भण्डार बना हुआ था, यानी मध्य पूर्व और फारस की खाड़ी के देशों पर? क्या इसके कारण इन क्षेत्रों का आर्थिक एवं राजनीतिक महत्त्व घट जाएगा?
यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, ऐसा हमारे समीक्षक येवगेनी येर्मलाएव का मानना है:
शेल गैस का उत्पादन शुरू करने के बादसे अमेरिका
ने मध्य पूर्व से तरलीकृत प्राकृतिक गैस का आयात कम कर दिया है. उदाहरण के तौर पर, कतार से. फलस्वरूप कतार को यूरोपीय बाजारों का रुख करना पड़ा और उन
बाजारों में यूरोपीय शर्तों पर काम करने के लिये खुद को तैयार करना पड़ा. शेल तेल
भी धीरे-धीरे एक महत्वपूर्ण कारक बनता जा रहा है. वैश्विक मांग में उल्लेखनीय
वृद्धि की आशा न करते हुए सऊदी अरब ने अगले 30 वर्षों के
लिये अपने तेल उद्योग की क्षमता में वृद्धि न करने की घोषणा की है. यह पूर्वानुमान
मुख्यतः अमेरिका में शेल तेल के उत्पादन की वृद्धि को ध्यान में रख कर किये गए
हैं.
यदि संक्षेप में कहा जाए तो शेल क्रांति के नाम
से जानी जाने वाली प्रक्रिया से मध्यपूर्व अछूता नहीं रह सका है. बेशक, परंपरागत स्रोतों से उत्पादित तेल और गैस के उपभोक्ता पूरी तरह से
उनका उपयोग बंद नहीं करेंगे. फिर भी इन स्रोतों के महत्त्व में आती कमी अभी से
देखी जा सकती है.
हाल के दशकों में पश्चिम की मध्यपूर्व नीति
मुख्य रूप से कीमती हाइड्रोकार्बन के भंडारों पर निरंकुश प्रभाव प्राप्त करने की
रही है. इसके लिये पश्चिम इस क्षेत्र के कुलीन राजनीतिक वर्ग पर कड़ा नियंत्रण
लगाने के प्रयास करता रहता है. इन कठोर उपायों में अब थोड़ी कमी आने की संभावना है.
हालांकि स्वतंत्रता के यह नए आयाम क्षेत्र के लिए कुछ नए जोखिम भी पैदा कर सकते
हैं. क्या इस बदलते परिवेश में क्षेत्र के राष्ट्रों, उदाहरण के तौर पर सऊदी अरब या कतार की राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखने
में पश्चिम वास्तव में रुचि रखेगा?
हमारे कार्यक्रम के विश्लेषक विक्टर नादेइन
रायेव्स्की का इस विषय पर दृष्टिकोण बिलकुल अलग है. वह बताते हैं:
अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की मध्य पूर्व
नीति पर शेल क्रांति के क्रांतिकारी परिवर्तन पड़ने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
शेल क्रांति होने की सूरत में इन देशों की मध्यपूर्व के तेल और गैस पर निर्भरता कम
हो जाएगी. लेकिन इस क्षेत्र के प्रति उनकी सामरिक दिलचस्पी यथापूर्व बनी रहेगी.
अमेरिका द्वारा मध्यपूर्व तेल और गैस के आयात
में कमी के कारण एशिया में उनका निर्यात बढ़ गया है. चीन, भारत और एशिया के अन्य राष्ट्रों द्वारा मध्यपूर्व से तेल और गैस का
आयात अमेरिका की शेल क्रान्ति के पहले ही बढ़ गया था. एशिया धीरे-धीरे पश्चिम की “विश्व-कार्यशाला” होने की जगह
लेता जा रहा है. लेकिन पश्चिम फिर भी दुनिया की प्रमुख राजनीतिक और सैन्य शक्ति
बना हुआ है. अमेरिका किसी भी हाल में एशिया को दुनिया का नेतृत्त्व करने की पताका
सौंपना नहीं चाहेगा और इस कारण वह मध्यपूर्व और फारस की खाड़ी पर अपना नियंत्रण
बनाए रखना चाहेगा.
यह अभी स्पष्ट नहीं है कि इन इलाकों से तेल का
निर्यात कहाँ होगा, पश्चिम के
देशों को या पूर्व के. किसी भी हाल में पश्चिम इन अत्यन्त महत्वपूर्ण इलाकों में
अपना प्रभाव बनाए रखना चाहेगा. हो सकता है अमेरिका कभी इस इलाके से निकल जाए जैसा
कि कभी ब्रिटेन ने किया था. लेकिन अभी यह इलाका अमेरिका के लिये बहुत अहम है और वह
इसपर अपना प्रभुत्व किसी भी कीमत पर बनाए रखेगा. इसके लिये वह दूसरों की मदद भी
लेगा, जो लगता है कि उसने लेनी शुरू कर दी है.
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