Sunday 18 August 2013

जी-मेल पर निजता

पीयूष पाण्डेय 
क्या दुनिया की सबसे बड़ी ईमेल सेवा जी-मेल पर आपकी निजता का ध्यान नहीं रखा जा रहा है? दरअसल, अमेरिकी कंज्यूमर वाचडॉग ने एक मुकदमे के दौरान गूगल के बयान को आधार बनाते हुए यह दावा किया है। इस मामले में गूगल पर आरोप लगाया गया था कि गूगल गैर-कानूनी तरीके से लोगों के निजी मेल खोलता, पढ़ता और उसका कंटेंट संग्रहित करता है। इस मुकदमें में दावा किया गया था कि करोड़ों लोगों की जानकारी से बाहर, नियमित तौर पर गूगल ने कई साल से लोगों के निजी संदेशों को जानबूझकर एवं दक्षतापूर्वक पढ़ने की अपनी लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया है। गूगल ने इस मामले को खारिज करने की अपील करते हुए कहा ईमेल के सभी यूजर्स को पूरी तरह यह विश्वास करना चाहिए कि उनके मेल ऑटोमेटेड प्रोसेसिंग से गुजरते हैं, लेकिन गूगल ने यह भी कह दिया कि जिस तरह अपने किसी कारोबारी साथी को खत लिखते हुए लेखक को हैरान नहीं होना चाहिए कि उसका खत कारोबारी साथी के सहायक भी पढ़ सकते हैं, उसी तरह जो लोग वेब मेल उपयोग में लाते हैं, उन्हें इस बात से हैरान नहीं होना चाहिए कि उनका मेल प्राप्तकर्ता के इलेक्ट्रानिक कम्यूनिकेशंस सर्विस प्रोवाइडर द्वारा प्रोसेस किया जाए। इस जवाब का सीधा मतलब भले कुछ न निकाला जाए, लेकिन कंज्यूमर वाचडॉग का कहना है कि अगर आप अपनी निजता को लेकर चिंतित हैं तो इसका इस्तेमाल बंद कीजिए। निश्चित रुप से यह महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या जी-मेल पर हमारे संदेश सुरक्षित नहीं है। 42 करोड़ से ज्यादा लोग आज जी-मेल का इस्तेमाल करते हैं और जी-मेल पर अपनी जिंदगी के कई पहलू संग्रहित हैं। बीते साल मार्च में गूगल ने नई प्राइवेसी पॉलिसी लागू की थी, तब भी बवाल मचा था। इस नीति पर अमल के बाद गूगल की सेवाओं का उपयोग करने वाले हर शख्स की सारी जानकारी भी एक ही जगह सहेज कर रखी जा रही है। गूगल की निजता नीति में साफ -साफ कहा गया है कि वह उपयोक्ताओं की जानकारी को किसी भी सूरत में तीसरी कंपनी को नहीं बेचेगी। पॉलिसी में यह भी कहा गया है कि उपयोक्ता गूगल से स्वयं के बारे में एकत्रित जानकारियों को डिलीट करने के लिए कह सकते हैं, लेकिन नई निजता नीति के ज्यादातर बिंदु अस्पष्ट हैं। मसलन नई निजता नीति में कहा गया है कि आप खुद से संबंधित जानकारी हटाने के लिए गूगल से आग्रह कर सकते हैं, लेकिन वाणिज्यिक या कानूनी उद्देश्यों के तहत गूगल ऐसा करने से इन्कार कर सकता है। परेशानी यह है कि इस परिभाषा के तहत लगभग हर आग्रह को ठुकराया जा सकता है। वैसे, सचाई यही है कि आप जिस भी वेबसाइट को सर्फ करते हैं, वह आपके डाटा एकत्र करती है। आप भले यह जानकारी जानबूझकर न दें, लेकिन वेबसाइट के पीछे की तकनीक कुछ खास तरह की सामग्री जुटा लेती है। मसलन, आप कहां हैं? आप किस ब्राउजर का इस्तेमाल कर रहे हैं? किस ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं और आपने वेबसाइट पर क्या देखा-पढ़ा आदि। अब जी-मेल के संदेशों पर स्कैनर की बात ने नया बवाल खड़ा कर दिया है। सवाल है कि क्या इस खुलासे से यूजर्स जी-मेल का इस्तेमाल बंद कर देंगे? जी-मेल न केवल एक नि:शुल्क ईमेल सेवा है, बल्कि तकनीकी रूप से सबसे बेहतरीन भी। दरअसल, गूगल का मूलमंत्र रहा है डोंट बी डेविल यानी राक्षस मत बनो, लेकिन विस्तार की महत्वाकांक्षाओं के बीच गूगल की हर कवायद आशंका खड़े करती है। ताजा बवाल भी इसी का हिस्सा है। वैसे, इंटरनेट उपयोक्ताओं की वैयक्तिक जानकारियां जुटाने के मामले में गूगल कोई इकलौती कंपनी नहीं है। फेसबुक समेत कई कंपनियां इसी र्ढे पर हैं। हाल में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी द्वारा नौ बड़ी इंटरनेट कंपनियों के डाटा पर निगरानी रखने का खुलासा हुआ था और इसक बाद से सभी कंपनियों पर भारी दबाव है कि वे अपना-अपना रुख साफ करें, लेकिन जी-मेल द्वारा डाटा इकट्ठा करने संबंधी खुलासे के बाद गूगल की मुश्किल और बढ़ गई है।

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