भारत
ने नौसेना के स्वदेश निर्मित पहले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत के निर्माण के
लिये जरूरी खूबियों वाला इस्पात बनाने के बाद अब परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण के
लिये जरूरी दुनिया का सबसे ताकतवर स्टील विकसित कर लिया है. ये इस्पात तैयार किया
है. भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) ने और इसका फार्मूला ईजाद किया है. रक्षा
अनुसंधान एवं विकास संगठन की इकाई रक्षा धातु अनुसंधान प्रयोगशाला हैदराबाद ने.
हालांकि
इस स्टील के बारे में सेल और नौसेना आधिकारिक रूप से कुछ भी बोलने को तैयार नहीं
है, लेकिन सूत्रों
के अनुसार पनडुब्बी के निर्माण के लिये जरूरी स्टील विकास एवं परीक्षण के लगभग के
सभी चरणों को पार करके प्रमाणन हासिल करने की प्रक्रिया में है. भारत ने इस डीएमआर
292 स्टील के लिये पेटेंट अधिकार हासिल करने के लिये आवेदन
दाखिल किया है. सूत्रों के अनुसार ये दुनिया का सबसे ताकतवर इस्पात होगा, जो परमाणु पनडुब्बी, सैन्य एवं असैन्य परमाणु
संयंत्रों में भी इस्तेमाल हो सकेगा.
एक
बार औपचारिक प्रमाणन हासिल करने के बाद देश सैन्य इस्पात के लिये घोषित तौर पर
पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो जायेगा. राउरकेला इस्पात संयंत्र के स्पेशल स्टील
प्लांट में डीएमआर 292
ए को अंतिम रूप दिया जा रहा है. इसी जगह भारत के प्रथम स्वदेश
निर्मित विमानवाहक पोत आई एन एस विक्रांत के लिये डीएमआर 249 ए, डीएमआर 249 बी और डीएमआर 249
ए, जेड 25, किस्मों की 20
मिलीमीटर मोटी प्लेटों को अंतिम रूप दिया गया है. इससे पतली प्लेटें
भिलाई संयंत्र में तैयार की गई हैं. सेल के अधिकारी डीएमआर 249 श्रेणी के बारे में बताते हैं कि यह स्टील आम स्टील से बहुत अलग है. यह
जितना कठोर है उतना ही लचीला भी. यह शून्य से 60 डिग्री
सेल्शियस कम तापमान पर भी 80 जूल की ताकत का प्रहार सह सकता
है.
जबकि
आम स्टील इस तापमान पर मामूली से झटके में ही शीशे की तरह बिखर जाता है. लेकिन यह
इतना लचीला भी है कि 180 अंश तक बिना कोई चटक पड़े, मोड़ा
भी जा सकता है. इस इस्पात की खासियत के बारे में धातुविज्ञानियों ने बताया कि
इसमें मैगनीज, कार्बन और सल्फर की मात्रा कम करके निकल की
मात्रा बढ़ाई गई तथा नियोबियम, वेनेडियम, मोलिब्डेनम, क्रोमिनयम जैसे तत्व मिलाये गये तथा फिर
उसकी प्लेट तैयार करके हीट ट्रीटमेंट किया गया, जिसमें प्लेट
को 950 डिग्री सेंटीग्रेड पर रक्ततप्त करके पानी और तेल में
ठण्डा किया जाता है और फिर हल्का गर्म करके टैम्परिंग की जाती है. इससे धातु के
वांछित गुण प्राप्त हो गये. नौसेना के अधिकारियों के मुताबिक इसका वजन कम होने से
विमानवाहक पोत में ज्यादा से ज्यादा हथियार एवं रणनीतिक उपकरण लगाये जा सकते हैं.
सेल
के इंजीनियरों, रक्षा वैज्ञानिकों और नौसेना के अधिकारियों के मुताबिक भारत करीब 15
साल के अंदर उन चंद देशों में शामिल हो गया है, जो स्टील के मामले में आत्मनिर्भर हैं. अमेरिका, रूस
और नाटो के कुछ देशों के पास ही इस तरह की तकनीक और उत्पादन क्षमता है. लेकिन रूस
को छोड़ कर कोई अन्य देश भारत को निर्यात नहीं करता था. रूस भी स्टील या उसकी
प्रौद्योगिकी देने की बजाय युद्धपोत का सौदा करने का ज्यादा इच्छुक था. वर्ष 1999
में डीआरडीओ ने सेल से यह स्टील बनाने का प्रस्ताव किया तो सेल
सहर्ष तैयार हो गया और 2002 में तैयार करके दिखा दिया. सेल
के अधिकारियों के मुताबिक इस फार्मूले पर स्टील का निर्माण हैवी इंजीनियरिंग
कारपोरेशन रांची, दुर्गापुर इस्पात संयंत्र स्थित एलॉय स्टील
प्लांट और राउरकेला के स्पेशल स्टील प्लांट में किया गया. भिलाई इस्पात संयंत्र
में 20 मिलीमीटर से पतली प्लेट तैयार की गई है.
नौसेना
के कोचीन शिपयार्ड को विमानवाहक पोत बनाने के लिये 2004-05 में डीएमआर 249 ए की आपूर्ति शुरू हुई. विमानवाहक पोत के डेक पर विमानों की लैण्डिंग और
टेक ऑफ से होने वाले झटकों को सहन करने के लिये डीएमआर 249 बी
का विकास किया गया. प्लेट की मोटाई की दिशा में दबाव झेलने की क्षमता के लिये
डीएमआर 249 ए, जेड25, स्टील का विकास किया गया. सेल के अध्यक्ष चंद्रशेखर वर्मा का कहना है कि
यह नौसेना के लिये राहत और आत्मनिर्भरता की बात तो है ही लेकिन सेल और देश के लिये
एक बहुत बड़े राष्ट्रीय गौरव की बात है. वर्मा ने बताया कि 37500 टन वजनी इस विमानवाहक पोत के लिये 28 हजार टन से
ज्यादा लोहे की जरूरत थी, जिसमें करीब करीब पूरा स्टील सेल
ने दिया है. इसके अलावा अन्य शिपयार्डों को मिला लिया जाये तो नौसेना को 40
हजार टन से ज्यादा डीएमआर 249 श्रेणी के सैन्य
इस्पात की आपूर्ति की जा चुकी है.
वर्मा
के मुताबिक राउरकेला के स्पेशल प्लेट प्लांट की क्षमता पांच गुनी की जा रही है.
वहां 4.3 मीटर चौड़ी प्लेट तैयार करने के लिये एक नयी प्लेट मिल भी बन कर तैयार हो
गई है. राउरकेला संयंत्र की क्षमता दोगुनी बढायी जा रही है. नौसेना के वास्तु
निदेशालय के प्रमुख निदेशक कोमोडोर ए के दत्ता. डी आरडीओ के चीफ कंट्रोलर जी
मलकोंडैय्या ने सेल की इस उपलब्धि को देश के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि बताते हुए
कहा कि इससे देश में नौसैनिक बेड़े की कमी पूरी करने के लिये युद्धपोत निर्माण को
बल मिलेगा और नौसेना को समुद्र में रणनीतिक बढ़त हासिल होगी.
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