मत्स्येन्द्र प्रभाकर
तेरह अगस्त की रात मुम्बई के निकट कोलाबा के नेवल डॉकयार्ड में भीषण
विस्फोट के साथ हुए अग्निकांड में ˜सिन्धुरक्षक पनडुब्बी का सागर में समा जाना सामान्य दुर्घटना नहीं है। यह 1971 के बाद भारतीय नौसेना के इतिहास की सबसे बड़ी घटना है और
शान्तिकाल में नौसेना के लिए सर्वाधिक भीषण आपदा। निकट भविष्य में इसकी भरपाई के
आसार नहीं दिख रहे हैं क्योंकि हमारी लंबी सरहदों के सन्दर्भ में सिन्धुरक्षक लाने के
प्रस्तावों पर बहुत फौलादी राजनीतिक इरादा दिखाया भी गया तो अगली पनडुब्बी हासिल
करने के लिए कम से कम 2021-22 तक इंतजार
करना पड़ेगा। उल्लेख जरूरी है कि भारतीय नौसैनिक बेड़े के लिए और छह पनडुब्बियों
की खरीद का फैसला छह साल पहले लिया गया था और पिछले तीन सालों से इसके लिए टेंडर
जारी करने पर कवायद भी हुई लेकिन मामला अब तक लटका हुआ है। मुमकिन है कि भारतीय
नौसेना की शान में इस ताजा चोट के बाद सरकार की नींद खुल जाए। सिन्धुरक्षक हादसे
की तुलना अन्य आपदाओं से नहीं की जा सकती। बेशक इससे नौसेना को तगड़ा झटका लगा है
जिसमें भारत को अपने तीन अधिकारियों समेत 18 नौसैनिकों
की जान गंवानी पड़ी है और अरबों रु पयों की क्षति हुई है पर इससे अधिक चिंतनीय यह
है कि अपने वर्ग की नौवीं इस पनडुब्बी पर भारत की 7,517 किलोमीटर लम्बी सामुद्रिक सीमा की रक्षा की जिम्मेदारी थी। यह उन दस
पनडुब्बियों में प्रमुख थी जिन्हें 1996 से 2000 के बीच भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। 2003 टन की ˜किलो श्रेणी की पनडुब्बी ˜आईएनएस
सिन्धुरक्षक का निर्माण रूस में हुआ था।1997 में 24 दिसम्बर को
नौसेना में शामिल किये जाने के पहले भारत को इसकी कीमत के रूप में 115 मिलियन डॉलर (तबके हिसाब से 400 करोड़ रु पये) रूस को चुकाने पड़े थे। यह राशि मौजूदा मूल्य पर सात
अरब रु पये से अधिक बैठती है। इसे 2010-12 के दौरान
इसकी कीमत से भी ज्यादा लागत 156 मिलियन
डॉलर (मौजूदा मूल्य पर करीब 9.67 अरब रु
पये) देकर रूस में ही नवीनीकृत (मॉडिफाइ) कराया गया था। यह बात अलग है कि अपग्रेड
करने वाले रूसी शिपयार्ड ने इसे अत्याधुनिक हथियारों (अल्ट्रा मॉडर्न वेपन्स) से
लैस किया था। दरअसल, ओवरहालिंग
के नाम पर इसकी जरूरत तब इसलिए आ पड़ी थी कि 2010 की फरवरी में भी इसके बैटरी कम्पार्टमेंट में आग लग गयी थी। तब इसमें
एक नौसैनिक की जान गयी थी। लिहाजा उसी साल अगस्त में सिन्धुरक्षक को रूस भेजना
पड़ा जिसने जून 2012
में इसे उपलब्ध कराया और करीब चार
महीने पहले 29
अप्रैल को दोबारा यह नौसेना में
शामिल की गयी थी। ˜सिन्धुरक्षक का हादसा हमारी रक्षा नीति और सुरक्षा प्रबन्धों समेत समूची
इंतजामिया के लिए गम्भीर चिन्ता का विषय होना चाहिए। कारण, भारतीय नौसेना में पिछले पांच सालों में यह चौथी दुर्घटना है।
खुद इसी पनडुब्बी में हुए 2010 के हादसे
के पहले 2009 में किलो श्रेणी (नाटो के
द्वारा रूस निर्मिंत डीजल-विद्युत चालित पनडुब्बियों को दिया गया एक नाम) का एक
अन्य युद्धपोत आईएनएस सिन्धुघोष एक व्यायसायिक जहाज से टकरा गया था। उस हादसे की वजह आज तक
जाहिर नहीं हुई। इसके बाद ‘आईएनएस
विद्यागिरि एक मर्चेंट शिप से टकराने के बाद
लगभग नष्ट ही हो गया। गनीमत यह रही कि प्रमुख युद्धपोत के इस हादसे में किसी की
जान नहीं गयी।सिन्धुरक्षक त्रासदी के पीछे कारण क्या रहा, इस बारे में जांच समिति के निष्कर्ष से ही असल तौर पर कुछ पता चल
सकेगा. सम्भव है कि सिन्धुरक्षक तरह की घटनाओं में कारणों का .खुलासा न करने के पीछे कुछ
पेशेवराना दिक्कतें हों. फिर भी उनके कारणों के उभर कर न आने से कोई दबाव नहीं बन
पाता जिससे हालात और खतरनाक बनते जाते हैं. कहने की आवश्यकता नहीं कि लोकतंत्र को
सुरक्षित रखने के साथ परिष्कृत करने के लिए आज हर क्षेत्र में जन दबाव जरूरी हो
गया है. इसलिए सवाल उठाना लाजिमी हो जाता है कि जांच-पड़ताल पर पर्दा आखिर क्यों
डाला जाता है?
सिन्धुरक्षक हादसे की जांच-
पड़ताल की दिशा और नतीजे पर संशय के बादल पहले दिन से ही मंडराने लगे हैं. ईमानदार छवि के
रक्षामंत्री ए.के. एंटनी ने गत बुधवार को मुम्बई पहुंचकर जहां पनडुब्बी में किसी
तोड़फोड़ की आशंका से इनकार किया, वहीं
नौसेना प्रमुख एडमिरल डी.के. जोशी ने कहा कि दुर्घटना के पीछे किसी साज़िश की आशंका को खारिज़ नहीं किया जा सकता.
बोर्ड ऑफ़ इनक्वायरी इस घटना की हर कोण से जांच कर रहा है.
बहरहाल, पनडुब्बी
को बनाने वाले रूस के उप प्रधानमन्त्री दिमित्री रोगाजिन का कहना है कि इस
दुर्घटना की वजह सुरक्षा की अनदेखी हो सकती है। दिमित्री रोगाजिन ने पनडुब्बी में
लगाये गये किसी खास उपस्कर पर घटना की कोई जिम्मेदारी डालने से तौबा की है। मुमकिन
है कि इसके पीछे रूस की मंशा कुछ और हो। क्योंकि नवीनीकरण करने के साथ उसने
सिन्धुरक्षक की बाबत अगले साल तक की वारंटी दी है। भारतीय रक्षा सचिव आरके माथुर
इसी हफ्ते भारत-रूस रक्षा सहयोग पर बातचीत के लिए रूस जाने वाले हैं। इस दौरान
पनडुब्बी हादसे पर उनकी रूसी अधिकारियों से भी र्चचा होगी मगर इससे क्या इनकार
किया जा सकता है कि सुरक्षा-संरक्षा में कमी भी सिन्धुरक्षक के भयंकर हादसे की एक
अहम वजह हो सकती है। इसके संकेत इस आधार पर खोजे जा सकते हैं कि भारतीय नौसैनिक इस
पनडुब्बी में बैटरी के इलाके में काम कर रहे थे। उसे काफी खतरनाक माना जाता है और
उस समय सुरक्षा नियमों में जरा सी चूक भीषण आपदा की वजह बन सकती है। नौसेना समेत
सेना के सभी अंगों में अस्त्र-शस्त्र और साधनों के नियमित
परीक्षण-प्रशिक्षण-परिचालन समेत उसके समस्त साधनों के रखरखाव पर सतर्कता बेहद
जरूरी है। भारतीय सेना अब पारंपरिक नहीं रही। वह अत्याधुनिक सेना का रूप ले चुकी
है और दुनिया की सशक्त तथा विशालतम सेनाओं में शुमार है। हाल में पहली पूर्णत:
स्वदेश निर्मिंत परमाणु पनडुब्बी ˜अरिहन्त का नाभिकीय रिएक्टर चालू करने की घोषणा के साथ भारत इस क्षमता
वाले देशों- (अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और
चीन) में शामिल हो इस क्लब का छठा सदस्य हो गया है। इस बीच चीन और पाकिस्तान हमारी
सरहद पर अपनी हरकतों से तनाव बढ़ा रहे हैं। अत: यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण वक्त है।
भारत क्योंकि नाभिकीय अस्त्र सम्पन्न देश है, इसलिए
हमारे सुरक्षा प्रबन्धों में कोई चूक भयावह हो सकती है। स्थलीय ठिकानों से भिन्न
सामुद्रिक क्षेत्र में मानकों की अनदेखी व सतर्कता में कमी और चूक जल-थल-नभ सब जगह
खतरनाक हो सकती है। ध्यान रखना होगा कि भारत आज दुनिया के हर छठवें व्यक्ति का
स्थायी आवास बन चुका है। इस रूप में हमारी जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गयी हैं।
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