Thursday 4 July 2013

भारी पड़ेगा भारतीय प्रफेशनल्स का विरोध

शशांक द्विवेदी॥
नवभारत टाइम्स(NBT) में प्रकाशित
पिछले दिनों अमेरिका में पेशेवर इंजीनियरों की सबसे बड़ी संस्था (आईईईई-यूएसए) ने सीनेट की न्यायिक समिति से आग्रह किया कि वह कॉम्प्रिहेंसिव इमिग्रेशन बिल एच-1 बी अस्थायी वीजा से संबंधित नियमों को और कठोर करे। संस्था ने सांसदों से आग्रह किया है कि वे इंडियन प्रफेशनल्स में लोकप्रिय एच-1 बी वीजा का सालाना कोटा बढ़ाए जाने की पहल को खारिज कर दें। संस्था ने इस वीजा के विस्तार का विरोध करते हुए कहा कि इससे अमेरिकी नौकरियां विदेशियों के हाथ में चली जाती हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है।

भारत के औद्योगिक संगठन नैसकॉम ने अमेरिका के प्रस्तावित इमीग्रेशन बिल को भेदभाव वाला बताते हुए इस पर चिंता जताई है। नैसकॉम के अनुसार इस बिल में वीजा पर निर्भर कंपनियों और इस पर निर्भर नहीं रहने वाली कंपनियों के बीच भेदभाव किया गया है। अमेरिका ने अपने यहां के आईटी प्रोफेशनल को ज्यादा मौके देने के इरादे से यह बिल तैयार किया है। इस वजह से वित्त वर्ष 2014 में भारत के लिए एच-1बी वीजा रिजेक्शन रेट अभी के 45 फीसदी से बढ़कर 60 फीसदी हो सकता है।
प्रतिभा पलायन के फायदे
1990 से लेकर 2007 तक अमेरिका ने दुनिया भर से लोगों को बुला कर अपनी कंपनियों को फायदा पहुंचाया। इन सत्रह सालों में अमेरिकी वर्कफोर्स में विदेशी कर्मचारियों का प्रतिशत 9.3 से बढकर 15.7 हो गया। कई कंपनियों की सफलता में भारतीय प्रफेशनल्स का विशेष योगदान रहा है । सस्ते दामों पर भारत से प्रतिभा का पलायन कराकर अमेरिकी कंपनियों ने जमकर मुनाफा कमाया। आज अमेरिका में मंदी वहां की कंपनियों को अपनी गिरफ्त में ले चुकी है। बेरोजगारी चरम पर है और सरकार इसका दबाव झेल रही है। असल में अमेरिका अपने नागरिकों की बेरोजगारी के लावा भारतीय प्रफेशनल्स की सफलता से भी घबराया हुआ है। अमेरिका के आईटी सेक्टर में बेरोजगारी की दर 6 फीसदी है और सामान्य बेरोजगारी दर 8 प्रतिशत है। इस वक्त अमेरिका में लगभग 20 लाख भारतीय प्रफेशनल्स रह रहे है, जिनमें ज्यादातर बैचलर या हायर डिग्री होल्डर है। पीएचडी डिग्री धारकों में भी भारतीयों की खासी तादाद है।

मंदी से निकली दलीलें
कठिन वीजा नियमों के कारण भारतीय इंजीनियरों का अमेरिका जाना कम हो जाएगा। इसका फायदा अमेरिकी इंजीनियरों को मिलेगा क्योंकि भारतीय इंजीनियरों से उन्हें प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ेगी। अमेरिका में काम कर रही इनफोसिस और विप्रो जैसी भारतीय कंपनियों को अमेरिकी इंजीनियरों से ही काम चलाना होगा। इन परिस्थितियों को देखकर अब भारतीय आईटी कंपनियां एच-1 बी वीजा के विकल्प तलाश कर रही हैं। ज्यादातर कंपनियों ने अमेरिका में ही भर्तियां करनी शुरू कर दी हैं। इस तरह बढ़ती बेरोजगारी से निपटने के लिए अमेरिका ने अपनी खुले व्यापार की नीति को त्यागकर संरक्षण की नीति अपनाई है। कठिन वीजा नियमों के कारण यह स्थिति एकबारगी भारत के लिए हानिकारक और अमेरिका के लिए लाभप्रद दिखती है। लेकिन इसके दूरगामी फायदे भारत को ही होंगे।

भारतीय कर्मियों के लिए अमेरिका में रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे तो अमेरिकी इंजीनियरों के लिए रोजगार के अवसर कुछ बढ़ जाएंगे, परंतु दीर्घकाल में विपरीत प्रभाव पड़ेगा। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका द्वारा पेटेंट कराई गई तकनीकों में 40 प्रतिशत अप्रवासियों द्वारा ईजाद की गई है। अप्रवासियों द्वारा स्थापित कंपनियों ने साढ़े चार लाख रोजगार अमेरिका में उत्पन्न किए गए हैं। वर्ष 2011 के दौरान वहां शुरू की गई कंपनियों में से लगभग 30 फीसदी के संस्थापक प्रवासी नागरिक हैं।

आप्रवासी आधारित व्यापार से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को हर साल सैकड़ों अरब डॉलर से ज्यादा का राजस्व प्राप्त होता है। इन कड़े नियमों के बाद राजस्व में भी कमी आएगी। पूरा विश्व भारतीय प्रफेशनल्स की क्षमता और योग्यता का कायल है। माइक्रोसॉफ्ट प्रमुख बिल गेट्स कहते रहे हैं कि एच-1 बी वीजा की संख्या को बढ़ाया जाए ताकि उनकी कंपनी को निपुण और प्रतिभावान भारतीय इंजीनियरों की सेवा प्राप्त हो सके। अंतरराष्ट्रीय बाजार में आईआईटी के छात्रों के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहे जनरल वेसले क्लार्क ने कहा था कि अगर किसी व्यक्ति के पास आईआईटी की डिग्री हो तो उसे तुरंत अमेरिकी नागरिकता मिल जाएगी। बिल गेट्स का ही कथन है कि बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर आईआईटियन उनकी पहली पसंद हैं।

अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया परिषद (एनआईसी) द्वारा हाल में प्रकाशित रिपोर्ट ग्लोबल ट्रेंड 2030 के अनुसार भारत 2030 तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनकर उभर सकता है और उसे ऐसा बनाने में भारतीय प्रतिभाओं प्रफेशनल्स की अहम भूमिका होगी। वैश्विक महत्व की इस अमेरिकन रिपोर्ट के साथ ही कई सर्वेक्षण भारत में समृद्धि का नया परिदृश्य रेखांकित करते दिख रहे हैं।

बुद्धि की उत्पादन लागत
कठिन वीजा नियमों के बावजूद अमेरिकी कंपनियों द्वारा भारतीय कंपनियों को सॉफ्टवेयर के ठेके मिलते रहेंगे क्योंकि भारतीय इंजीनियर कम वेतन पर अच्छा काम करते हैं। मूल अंतर यह होगा कि अभी तक भारतीय कंपनियां आधा काम अमेरिका और आधा भारत में कराती थीं। अब वे पूरे काम को भारत में ही कराने का प्रयास करेंगी। इससे अमेरिका को दोहरा नुकसान होगा। भारतीय इंजीनियर अपने देश में रहकर अपनी समझ और प्रतिभा का उपयोग कर सकेंगे, जिससे नई तकनीकों का आविष्कार भारत में ही होने लगेगा। इसका सीधा लाभ भारत को मिलेगा। भारतीय कंपनियों को अमेरिका के बढ़ते संरक्षणवाद का लाभ आउटसोर्सिंग के माध्यम से उठाने के लिए तैयार होना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि इस स्थिति में अंतिम तथ्य बुद्धि की उत्पादन लागत से तय होगा। यदि सॉफ्टवेयर बनाने की बौद्धिक क्षमता का उत्पादन भारत में दस लाख रुपये में हो जाता है और अमेरिका में उसी क्षमता के उत्पादन की लागत 50 लाख आती है तो भारत को फायदा होना ही है। ठीक उसी तरह, जैसे प्रखर भारतीय बुद्धि को बाहर रखने से अमेरिका का नुकसान होना
निश्चित है ।  
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http://navbharattimes.indiatimes.com/thoughts-platform/viewpoint/the-u-s-has-a-huge-deficit-of-indian-professionals/articleshow/20859528.cms?fb_action_ids=469482216479969&fb_action_types=og.recommends&fb_source=aggregation&fb_aggregation_id=288381481237582
 

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