Tuesday 9 April 2013

क्या इंसान अमर हो सकता है!


भानु प्रताप सिंह
रुसी अरबपति दमित्रि इत्सकोव चाहते हैं कि इंसान अमर हो जाए। वे अमरता-2045’ पर वर्ष 2011 से काम कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का एक समूह चरणबद्ध ढंग से इंसान को अमर बनाने में लगा हुआ है। हमें अच्छा घर चाहिए। अत्याधुनिक मोबाइल फोन चाहिए। सबसे अच्छी कार चाहिए, लेकिन जब हम मृत्यु शय्या पर होते हैं तब हम केवल और केवल जीना चाहते हैं। कोई भी व्यक्ति मृत्यु का वरण नहीं करना चाहता है। जब से मानव इस धरा पर आया है, तभी से वह अमरत्व की खोज में है। बृहदारण्यक उपनिषद् का एक श्लोक देखिएअस तो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मामृतं गमय। अर्थात्, ईश्वर हमें असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलें और मृत्यु से मुक्त कर अमरत्व प्रदान करें। अमरता प्राप्त करने की चाह कोई नई बात नहीं है।हमारे धार्मिक ग्रन्थ वेद, उपनिषद, गीता, महाभारत, भागवत में अमरत्व प्राप्त करने के अनेक साधन बताए गए हैं। आत्मा को अजर-अमर बताया गया है।
आत्मा को परमात्मा का अंश बताया गया है। आत्मा का वास हमारे शरीर में है। कहा जाता है कि यह भाव जगाएं कि मैं आत्मा हूं, यह शरीर नहीं। चूंकि आत्मा मरती नहीं है, इसलिए मैं अमर हूं। इस शरीर का क्षय होगा, जो कि मेरा नहीं है। गीता में कहा गया हैवासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृाति नरोùपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
अर्थात्, मनुष्य जैसे पुराने वस्त्रों को छोड़कर दूसरे नए वस्त्र  धारण कर लेता है, ऐसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में चली जाती है।
मतलब आत्मा कभी मरती नहीं है। गीता ज्ञानी कहते हैं कि इसी में अमरता का सूत्र भी छिपा हुआ है। यह ऐसी गूढ़ बात है, जो सामान्य जन की समझ में नहीं आती है। आत्मतत्व के ज्ञाता ही इस सत्य को समझ सकते हैं। इस आत्मा को किसने देखा है? क्या हम आत्मा को देख भी सकते हैं? हमारे अंदर आत्मा है, फिर भी हम मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। जो आत्मज्ञानी नहीं हैं, उनके लिए तो यह देह ही सब कुछ है। एक सामान्य व्यक्ति का तर्क देखें तो हमारा यह शरीर सत्त रूप से बना रहे, तभी हम अमर हैं। जब शरीर ही नहीं रहा, तो कैसी अमरता? एक ओर तो आत्मा को अमर बताया जाता है और दूसरी ओर मृत्यु को भी अवश्यंभावी कहा जाता है। तभी तो पृथ्वीलोक को मृत्युलोक की संज्ञा दी गई है। इसका सीधा सा अर्थ है कि पृथ्वी पर जो आया है, वह जाएगा। कोई भी हो।
हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार, हमारे अमर देवताओं ने कितने अवतार पृथ्वी पर लिए, लेकिन उन्हें शरीर छोड़कर जाना ही पड़ा। पृथ्वी पर सात ऐसे हैं, जिनकी मृत्यु का कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए इन्हें चिरंजीवी कहा जाता हैअश् वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमानश्च विभीषण: कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीवन: अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यास, बजरंगबली, विभीषण, कृपवर्मा, परशुराम की मृत्यु नहीं हुई। ये अमर हैं क्या? कैसे हुए अमर? हमारे धर्मग्रन्थ इस प्रश्न के उत्तर में मौन हैं।
यह कहा जाता है कि ईश्वर ने जन्म और मृत्यु को अपने हाथ में रखा है। सिवाय ईश्वर के कोई नहीं जानता है कि कौन कब पैदा होगा और कब मरेगा।
जिस दिन मृत्यु का रहस्य ज्ञात हो जाएगा, उसी दिन अमरत्व प्राप्त कर लेंगे। मृत्य पर विजय की कथा महाभारत में है। सावित्री-सत्यवान की कथा तो हम सब जानते हैं। सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। सावित्री और यमराज के बीच लम्बा संवाद हुआ। इसके बाद भी यह पता नहीं चलता है कि सावित्री ने ऐसा क्या किया कि सत्यवान फिर से जीवित हो उठा। इस प्रक्रिया के बारे में महाभारत भी मौन है। जिस दिन यह प्रक्रिया वैज्ञानिक ढंग से ज्ञात हो जाएगी, हम अमरत्व प्राप्त कर लेंगे। समुद्र मंथन में अमृत निकला। इसे प्राप्त करने के लिए देवताओं ने दानवों के साथ छल किया।
देवता अमर हो गए। यह अमृत क्या था? क्या समुद्र में वैज्ञानिक रहते थे, जिन्होंने अमृत तैयार किया। क्या समुद्र मंथन कोई ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया थी, जिसे आज हम अमरता-2045’ कह सकते हैं। समुद्र में जेलीफिश ( टय़ूल्रीटोप्सिस न्यूट्रीकुला) पाई जाती है। यह तकनीकी दृष्टि से कभी नहीं मरती है। कोई अन्य जीव जैलीफिश का भक्षण कर ले तो अलग बात है। इसी कारण इसे इम्मोर्टल जेलीफिश भी कहा जाता है। जेलीफिश बुढ़ापे से बाल्यकाल की ओर लौटने की क्षमता रखती है। यही तो अमरता है। अगर वैज्ञानिक जेलीफिश के अमरता के रहस्य को सुलझ लें, तो मानव अमर हो सकता है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि समुद्र मंथन के दौरान इसी जेलीफिश से अमृत बनाया गया हो? अमरता के अनेक खतरे भी हैं। कई साल पूर्व एक कहानी पढ़ी थी- एक राजा अमर हो जाना चाहता था।
वह कई संतों के पास गया। लम्बे प्रयास के बाद संत ने एक गुफा में बह रहे झरने का पानी पीने की सलाह दी। राजा बड़ी मुश्किल से गुफा तक पहुंचा। जैसे ही उसने पानी पीना चाहा, एक कौआ बोला- राजन, पानी पीने से पहले मेरी बात सुनो। मैंने भी यहां का पानी पीया और अमर हो गया। मैंने इस संसार का हर सुख भोग लिया। अब मैं इस संसार में रहना नहीं चाहता हूं। लाख प्रयास के बाद भी अपना जीवन समाप्त नहीं कर पा रहा हूं। जीवन में नवीनता लाने के लिए जरूरी है कि नया जीवन प्राप्त करूं। मैं वही पुराना जीवन ढोने के लिए अभिशप्त हूं। अब आप फैसला करें कि अमर होना है या नहीं। यह सुनकर राजा बिना पानी पीये चला गया। अगर अमरता- 2045 परियोजना सफल हो जाती है तो एक बार फिर से देवता और दानवों की तरह समर्थ और असमर्थ के बीच संघर्ष शुरू होगा। अंतत: विजय समर्थ को ही मिलेगी। चूंकि वे अमर हो जाएंगे, सो दौलत एकत्रित करने में ही लगे रहेंगे। अमर व्यक्ति रावण की तरह अहंकारी हो जाएगा। रावण को भी वरदान था कि उसकी मृत्यु नहीं होगी। हिरण्यकश्यप की तरह हो जाएगा अमर व्यक्ति, जो ईश्वर का नाम लेने पर अपने ही पुत्र को अग्नि में डाल देता है। दमित्रि इत्सकोव का कहना है कि अमरता-2014 परियोजना सबके लिए है। ऐसी स्थिति में जब सब अमर हो जाएंगे, तब पृथ्वी इतने लोगों का बोझ कैसे उठा पाएगी? प्राकृतिक संसाधनों का क्या होगा? 2013 में ही जनसंख्या कम करने के लिए पूरी दुनिया में अभियान चल रहा है।
2045 के बाद क्या होगा? अभी अधिकतम 100 साल के जीवन में अनेकानेक व्याधियां हैं, कष्ट हैं, अमरता प्राप्त करने पर क्या होगा? यहां यह प्रश्न विचारणीय है कि गांधी जी, शहीद चन्द्रशेखर, भगत सिंह, महर्षि वाल्मीकि, वेदव्यास, मीरा, तुलसी, कबीर, आइंस्टीन, टाटा-बिड़ला, आदि शंकराचार्य क्या अमर नहीं हैं? क्या हमारे श्रेष्ठतम कर्मों से मृत्योपरांत भी अमरता प्राप्त होती है? (लेखक द सी एक्सप्रेसमें समाचार सम्पादक हैं) 

3 comments:

  1. sahi hai sir...

    insaan apne sadguno se amar hota hai .

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  2. विज्ञानपीडिया का एक साल


    डीएनएन





    आम आदमी, छात्रों और प्रोफेशनल्स को हिंदी में विज्ञान और तकनीक से संबंधित नवीनतम जानकारी, खोज, लेख आदि उपलब्ध करने वाली वेबसाइट विज्ञानपीडिया.कॉम (विज्ञान और तकनीक की दुनिया)को एक साल पूरे हो गए हैं। राजस्थान में सेंट मार्गरेट इंजीनियरिंग कॉलेज, नीमराना के प्रोफेसर और इस वेबसाइट के संपादक शशांक द्विवेदी के अनुसार आम आदमी और छात्रों की विज्ञान में रुचि बढ़ाने के उद्देश्य से एक साल पहले इसकी शुरुआत की गई थी, जो काफी सफल रही है। हिंदी में विज्ञान और तकनीक से संबंधित गुणवत्तापूर्ण कंटेंट की काफी कमी है। जबकि ग्रामीण इलाकों के बच्चों को उनकी भाषा में ही विज्ञान कंटेंट देकर उनकी रुचि बढ़ाई जा सकती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही विज्ञानपीडिया.कॉम जैसा प्रयोग किया गया।

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  3. मेरा आलेख को आपने महत्ता प्रदान की.. आपका हृदय से शुक्रगुजार हूं
    भानु प्रताप सिंह
    पत्रकार, द सी एक्सप्रेस, आगरा

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