दूसरी हरित
क्रांति -ब्रिंगिंग ग्रीन रिवोल्यूलशन इन ईस्टनर्न इंडिया (बीजीआरईआई)
शशांक द्विवेदी
कृषि बजट में 22 फीसदी की वृद्धि
बढ़ती आबादी के
साथ खाद्यान्न की तेज होती मांग और कृषि
उत्पादन में 4 फीसदी का इजाफा हासिल करने
का दबाव सरकार पर है। इसी वजह से इस बार के केंद्रीय बजट में कृषि
क्षेत्र को तवज्जो देने की कोशिश की गयी है .कृषि मंत्रालय को इस बार 22 फीसदी की बढ़त के साथ 27049 करोड़ रुपये दिए गए हैं।
इसमें 3415 करोड़ रुपये की राशि कृषि अनुसंधान के लिए होगी।
पूर्वी भारत में हरित क्रांति की कामयाबी को देखते हुए वित्त मंत्री पी .चिदंबरम
ने इस योजना के लिए इस बार एक हजार करोड़ रुपये का इंतजाम किया है। पंजाब और
हरियाणा जैसे राज्यों में विभिन्न तरह की फसलों को बढ़ावा देने के लिए 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया गया है।
हरित क्रांति
देश की
खाद्यान्न उत्पादकता को बढ़ाने के
उद्देश्य से सरकार ने दो साल पहले पूर्वी भारत
में ब्रिंगिंग ग्रीन रिवोल्यू शन
इन ईस्ट र्न इंडिया (बीजीआरईआई) कार्यक्रम शुरू किया था । यह कार्यक्रम सात
राज्यों्- असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तदर प्रदेश और छत्तीकसगढ़ में चलाया जा रहा है। वर्ष 2010-2011 में लागू होने के बाद से ही इस कार्यक्रम की बदौलत क्षेत्र में धान और
गेहूं की पैदावार के अच्छे नतीजे सामने आए हैं ।
देश में हरित
क्रांति की शुरुआत वर्ष 1966-67 में हुई थी.
इसकी शुरुआत दो चरणों में की गई थी, पहला चरण 1966-67 से 1995-96 और दुसरे चरण में ब्रिंगिंग ग्रीन
रिवोल्यूवशन इन ईस्टीर्न इंडिया (बीजीआरईआई) कार्यक्रम 2010-2011 में शुरू किया गया । .हरित
क्रांति से अभिप्राय देश के सिंचित और असिंचित कृषि क्षेत्रों में ज्यादा उपज वाले
संकर और बौने बीजों के इस्तेमाल के जरिये तेजी से कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी करना है
। हरित क्रांति की विशेषताओं में अधिक उपज देने वाली किस्में, उन्नत बीज, रासायनिक खाद, गहन
कृषि जिला कार्यक्रम, लघु सिंचाई, कृषि
शिक्षा, पौध संरक्षण, फसल चक्र,
भू-संरक्षण और ऋण आदि के लिए किसानों को बैंकों की सुविधाएं मुहैया
कराना शामिल है । रबी, खरीफ और जायद की फसलों पर हरित
क्रांति का अच्छा असर देखने को मिला है । किसानों को थोड़े पैसे ज्यादा खर्च करने
के बाद अच्छी आमदनी हासिल होने लगी. हरित क्रांति के चलते हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर
प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडू की उत्पादकता में जबरदस्त वृद्धि हुई । साठ के
दशक में हरियाणा और पंजाब में गेहूं के उत्पादन में 40 से 50 फीसदी तक बढ़ोतरी दर्ज की गई थी . ।
दूसरी हरित
क्रांति लाने के कार्यक्रम के ठोस नतीजे सामने आये हैं और पूर्वी भारत में 2011-12 के
खरीफ सत्र में 70 लाख टन अतिरिक्त धान का उत्पादन हुआ है।
बिहार, पश्चिम बंगाल, उडीसा, असम, छत्तीसगढ, झारखंड और
पूर्वी उत्तर प्रदेश में धान का इतना अधिक उत्पादन हुआ कि यह देश के कुल धान
उत्पादन के आधे से भी अधिक है। कृषि सचिव ने चालू वर्ष का दूसरे अग्रिम फसल
उत्पादन का अनुमान जारी करते हुए कहा कि इस वर्ष गेहूं उत्पादन 8 करोड़ 83 लाख टन और चावल का 10
करोड़ 27 लाख टन से अधिक उत्पादन होने का अनुमान है। पिछले
वर्ष चावल 9 करोड़ 59 लाख और गेहूं 8 करोड़ 38 लाख टन था।
ब्रिंगिंग ग्रीन
रिवोल्यूहशन इन ईस्टर्न इंडिया
भारत का पूर्वी
क्षेत्र देश के धान उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने को तैयार है। पूर्वी भारत
में धान की फसल प्रणालियों की उत्पाुदकता को सीमित करने वाले अवरोधों को दूर करने
के लिए बीजीआरईआई कार्यक्रम बहुत लाभप्रद रहा है। वर्ष 2010-2011 में लागू होने के बाद से ही इस कार्यक्रम की
बदौलत क्षेत्र में धान और गेहूं की पैदावार के उल्लेखनीय नतीजे सामने आए हैं। इस
कार्यक्रम के तहत बिहार और झारखंड में धान की पैदावार में भारी वृद्धि हुई है। धान
और गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार के लिए क्षेत्र के किसानों तक तकनीक और पद्धतियां
पहुंचाने के लिए राज्य सरकारों ने सकारात्मक प्रयास किये है। इस परियोजना के तहत
पूर्वी क्षेत्र का चयन उसके प्रचुर जल संसाधनों का लाभ उठाने के लिए किया गया है,
जो खाद्यान्नों की उपज
बढ़ाने के लिए आवश्याक हैं। पूर्वी क्षेत्र की मुख्य समस्या जल की उपलब्धता नहीं, बल्कि उसका प्रबंधन है। इसका आधार यह है कि जल के प्रचुर भंडार के साथ फसल
की उत्पादकता बढ़ाना तभी सम्भव होगा, जब बेहतर कृषि पद्धतियां
अपनाई जाएं, अच्छी गुणवत्ता वाले बीज डाले जाएं तथा खाद और
उर्वरक जैसे पदार्थों का इस्तेंमाल समझदारी से किया जाए। जहां एक ओर, साठ के दशक में हरित क्रांति के दौरान पंजाब, हरियाणा
और पश्चिमी उत्तार प्रदेश फले-फूले, वहीं इन तीनों राज्यों
में क्षमता से अधिक दोहण की वजह से जल संसाधन की दृष्टि से स्थिति खराब हुई है। यह
बात देश के कृषि सम्बंधी योजनाकारों के लिए बेहद चिंता का विषय है।
भारत को अपनी
बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए खाद्यान्न
उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत है। प्रत्येक भारतीय की चिंता का विषय बन
चुकी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका यही है कि घरेलू तौर पर
पर्याप्त खाद्यान्न उगाए जाएं। पूर्वी क्षेत्र में नई हरित क्रांति शुरू करने की
क्षमता है। बीजीआरईआई को केंद्र और राज्योंु की सरकारों द्वारा दी जा रही
प्राथमिकता की वजह से दुसरी हरित क्रांति की सफलता निश्चित है । इसलिए, अनेक गतिविधियां शुरू की गई हैं जिनमें गेहूं और धान
की तकनीकों का प्रखंड स्तर पर सामूहिक प्रणाली में प्रदर्शन करना, संसाधन संरक्षण तकनीक को बढ़ावा देना (गेहूं के तहत शून्य जुताई), जल प्रबंधन के लिए परिसम्पत्ति निर्माण गतिविधियां को अंजाम देना (कम गहरे
नलकूपों कुओं बोरवेल की खुदाई, पम्प सेटों का वितरण), खेती के औजारों के इस्तेेमाल
और जरूरत पर आधारित विशिष्ट गतिविधियों को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं। धान की संकर तकनीके अपनाने, श्रृंखलाबद्ध रोपाई, एसआरआई, सूक्ष्म
पोषक तत्व, आदि कुछ ऐसी कामयाब बाते हैं, जो इस क्षेत्र में राज्य प्रशासनों द्वारा की गई कड़ी मेहनत से सामने आई
हैं। लेकिन उत्पादन में स्थायित्व लाने के लिए इस क्षेत्र के प्रचुर संसाधनों का
इस्तेमाल करना होगा। उपज की प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए प्रभावशाली
विपणन प्रबंध, खरीद प्रक्रिया, बिजली
सिंचाई, गतिविधियों की श्रृंखला और ग्रामीण संरचना और ऋण आपूर्ति
के लिए संस्थासगत विकास तथा नवीन पद्धतियों को विस्तार से लागू करना, ताकि वे बड़ी संख्या में छोटे और
सीमांत किसानों की उन तक पहुंच सम्भव हो सके। इसके अलावा, किसानों
को अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए और उसके लिए किसानों ग्रेडिंग
मानकों के बारे में जागरूक बनाया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय
प्राथमिकता के रूप में चिन्हित
12वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पत्र में योजना आयोग ने इसे राष्ट्रीय
प्राथमिकता के रूप में चिन्हित किया है ताकि हरित क्रांति को पूर्वी क्षेत्र के
सभी कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों, जहां प्राकृतिक संसाधनों
के दोहन की अच्छी संभावना है, में विस्तारित किया जाए ताकि
खाद्य सुरक्षा एवं कृषि सततता को प्राप्त किया जा सके।
अब देश के समक्ष
दूसरी हरित क्रान्ति के प्रमुख तीन लक्ष्य होने चाहिए जिनमें खाद्यान आत्मनिर्भरता, उचित बफर स्टाक तथा अनाज का बड़े पैमाने पर विदेश को
निर्यात है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कृषि के क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टि
से काम करना होगा। आधुनिक तकनीकों का उपयोग तथा कृषि उत्पादों का मूल्य सवर्ध्दन
करना पड़ेगा। लगभग सभी विकसित देशों में प्रति हेक्टेयर अन्न का उत्पादन भारत के
सापेक्ष 2) से 3 गुना है अतरू इन्ही
तकनीकों का इस्तेमाल कर भारत में भी अन्न का उत्पादन इसी अनुपात में किया जा सकता
है।
निजी निवेश की जरूरत
संसद में पेश 2012-13 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है
कि बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराने के लिए खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी की
सख्त आवश्यकता है। इसके लिए कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी तथा बुनियादी
ढांचा क्षेत्र में निजी निवेश की जरूरत है. आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि
क्षेत्र की विकास दर के तय लक्ष्य 4 फीसदी को हासिल करने के लिए खेती
में तत्काल सुधार की आवश्यकता है। 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के दौरान कृषि क्षेत्र की दर 3.6 फीसदी रही जो 4 प्रतिशत के तय लक्ष्य से कम रही
है। हालांकि यह नौवीं तथा 10वीं योजना
में क्रमश: 2.5 प्रतिशत
तथा 2.4 प्रतिशत की
तुलना में अधिक है।
कृषि क्षेत्र में पिछले कुछ साल
में व्यापक सुधार हुआ है लेकिन इसके बावजूद देश ऐसी जगह पर है जहां कृषि के
क्षेत्र में सतत वृद्धि के लिए दक्षता और उत्पादकता बढ़ाने को लेकर और सुधार की
तत्काल जरूरत है। इसमें कहा गया है कि बाजार की महत्वपूर्ण भूमिका देखते हुए स्थिर
नीतियों, बुनियादी
ढांचा में निजी निवेश बढ़ाये जाने की आवश्यकता है। साथ ही, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)
आवंटन में सुधार, खाद्यान्न
की कीमतें तथा भंडारण प्रबंधन में सुधार तथा प्रत्याशित व्यापार नीति अपनाये जाने
की आवश्यकता है। कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए बेहतर शोध एवं विकास, ऋण तथा बीजों की आपूर्ति के साथ
ही कौशल विकास की दिशा में सुधार की सख्त आवश्यकता है।
देश के समक्ष बढ़ती आबादी को भोजन
उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है। इसको देखते हुए कृषि क्षेत्र की बाधाओं तथा
चुनौतियों को दूर करने की जरूरत है ताकि कृषक समुदाय को और उपज के लिए प्रेरित
किया जा सके। 12वीं
पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र के लिए 4 प्रतिशत वृद्धि दर के लक्ष्य को
हासिल करने के लिए अभी से सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।
उत्पादकता
में वृद्धि
देश
के पूर्वोत्तर राज्यों में कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी की संभावनाएं अन्य भागों की
तुलना में ज्यादा हैं। इन
राज्यों में खाद्यान्न उत्पादन खासकर के चावल उत्पादन में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप
ही देश में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन संभव हो पाया है। वर्ष 2011-12 में
देश में खाद्यान्न का 25.93 करोड़
टन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। देश के खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी का श्रेय
पूर्वी भारत के राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, उत्तर
प्रदेश और पश्चिम बंगाल को जाता है।
पूर्वोत्तर
भारत में हरित क्रांति के लिए केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2012-13 के
बजट में 400 करोड़
रुपये की बढ़ोतरी कर कुल आवंटन 1,000 करोड़
रुपये का किया था।
इन
राज्यों में प्रति हैक्टेयर उत्पादकता में और भी बढ़ोतरी की संभावनाएं है। इसीलिए
चालू वित्त वर्ष 2013-14 के
बजट में इस योजना हेतु आवंटन में १००० करोड़ रुपये की
बढ़ोतरी कर कुल आवंटन २००० करोड़
रुपये कर दिया गया है
इससे
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल में अतिरिक्त खाद्यान्न की आवश्यकता की पूर्ति करने
में भी मदद मिलेगी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं
में इस समय सालाना करीब 550 लाख
टन खाद्यान्न का आवंटन होता है जबकि खाद्य सुरक्षा बिल लागू होने के बाद 650 लाख
टन से ज्यादा खाद्यान्न की आवश्यकता होगी।
कृषि
मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2011-12 के
देश में खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन 25.93 करोड़ टन का हुआ है। इस दौरान देश में गेहूं
का रिकॉर्ड 948 लाख
टन का उत्पादन हुआ था। इसके अलावा इस दौरान चावल का भी 10.53 करोड़
टन का बंपर उत्पादन हुआ है।
हालांकि
कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी किए गए वर्ष 2012-13 के दूसरे खाद्यान्न उत्पादन में वर्ष 2011-12 की
तुलना में 3.5 फीसदी
की कमी आने का अनुमान है लेकिन तीसरे, चौथे और अंतिम अनुमान तक इसमें सुधार की संभावना है। कृषि मंत्रालय
के अनुसार दूसरे अग्रिम अनुमान में वर्ष 2012-13 में खाद्यान्न उत्पादन 25.01 करोड़
टन होने का अनुमान है।
हरित क्रांति: क्या पूर्वी भारत भी पंजाब के विनाशकारी पथ
पर?
उस विकास का क्या लाभ जो किसानों को
आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़े. हमें पंजाब से सीख लेनी चाहिए जहाँ प्रथम हरित
क्रांति के का कारण पंजाब जैसे राज्य की मिट्टी कि उर्वरक क्षमता खत्म हो गयी,
पानी जहरीला हो गया.
दुखद यह है कि अधिकांश जगहों पर इस योजना के अंतर्गत हाइब्रिड बीजों, खाशकर
चावल एवं मक्के में, एवं रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है. नई हरित क्रांति स्वागत
योग्य जरूर है क्योंकि हम पूर्वी राज्यों में हरित क्रांति के तहत निवेश कर रहे
हैं परन्तु हमें कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना होगा. हमें सावधानी बरतनी
होगी कि नई हरित क्रांति हमारे उत्पादक संसाधन को नुकसान नहीं पहुंचाए बल्कि उनमें
सुधार लाये. इस नई हरित क्रांति के फलस्वरुप अंततः किसानों को गरीब और ऋणी न बनने
दिया जाए. किसी की आत्महत्या करने की बारी न आये. हमें सजग रहना होगा. हमें
आखिरकार उन्नति देखनी है. हमें सिर्फ विशिष्ट पैदावार पर ही ध्यान केंद्रित नहीं
करना चाहिए बल्कि किसानों की शुद्ध आय पर भी पूरा ध्यान लगाना चाहिए.
भूमि क्षरण, पानी की कमी, प्रदुषण आदि हरित क्रांति के विरासत के रूप में
दिखाई दे रहे हैं. इस दौरान पंजाब के किसानो के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर
देखने को मिले हैं. और इन सबके विपरीत सच यह है कि जिन जगहों पर हरित क्रांति नहीं
शुरू की गई वहां ज्यादा प्रभावशाली वृद्धि दिख रही है. देश का पंजाब आज कैंसर कि
राजधानी बन गया है. भटिंडा से बीकानेर के लिए जो ट्रेन चलती है उसका नाम कैंसर
एक्सप्रेस रखा गया है. यह सब प्रथम हरित क्रांति के कारण हुई, जिससे हमें सीख लेनी
चाहिए.
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