रोहित कौशिक
यह
दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि एक बार फिर स्वाइन फ्लू ने देश के विभिन्न हिस्सों में
अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। 2010 में
करीब बीस हजार लोग इस बीमारी की चपेट में आए थे। स्वाइन फ्लू सुअरों का श्वसन
संबंधी रोग है जो टाइप ए इन्फ्लूएंजा वायरस एच1एन1 द्वारा होता है। यह सुअरों में गंभीर रोग उत्पन्न करता है, लेकिन इस पशु में स्वाइन फ्लू से होने वाली मत्युदर अधिक नहीं है। टाइप ए
इन्फ्लूएंजा वायरस एच1एन1 सबसे पहले 1930
में एक सुअर में पाया गया था। सभी इन्फ्लूएंजा विषाणुओं की तरह
स्वाइन फ्लू वायरस भी लगातार रूपांतरित होता रहता है। एविएशन इन्फ्लूएंजा तथा
हयूमन इन्फ्लूएंजा वायरस के साथ-साथ स्वाइन इन्फ्लूएंजा वायरस से सुअर संक्रमित हो
सकते हैं। जब विभिन्न वगरें से संबंधित इन्फ्लूएंजा वायरस सुअरों को संक्रमित करते
हैं तो वायरस पुन: वर्गीकृत हो सकते हैं और स्वाइन, ह्यूमन तथा
एविएशन इन्फ्लूएंजा वायरस के मिश्रण से नए वायरस पैदा हो सकते हैं। पिछले वर्षों
में स्वाइन फ्लू वायरस के विभिन्न रूपांतरण हो चुके हैं। इस रोग के माध्यम से
सुअरों में बुखार, अवसाद, खांसी,
नाक तथा आंख से श्चाव, छींक, आंखों में लाली तथा श्वसन संबंधी रोग हो सकते हैं। एच1एन1 वायरस के अलावा एच1एन2,
एच3एन2 तथा एच3एन1 वायरस भी स्वाइन फ्लू का संक्रमण करते हैं।
सामान्यत: यह वायरस मनुष्य को संक्रमित नहीं करता, लेकिन
कभी-कभी मनुष्यों में भी इसका संरमण पाया जाता है। सुअरों मे इस रोग का संक्रमण कम
करने के लिए कुछ टीके लगाए जाते हैं, लेकिन मनुष्यों में
इसकी रोकथाम के लिए कोई कारगर टीका उपलब्ध नहीं है। हालांकि साधारण इन्फ्लूएंजा के
टीके एच3एन2 वायरस के संक्रमण को कम
करने में मदद करते हैं, लेकिन एव1एन1
वायरस के संक्रमण में इन टीकों से अधिक फायदा नहीं होता है। इसके
साथ ही मनुष्यों में स्वाइन फ्लू के संक्रमण को कम करने के लिए कुछ विषाणुरोधी
दवाइयां दी जाती हैं।
भारत के गांवों मे अनेक समितियों और ग्राम पंचायतों के सहयोग
से एक वृहद स्वास्थ्य सेवा का ताना-बाना बुना गया है। भौतिक विस्तार की दृष्टि से
स्वास्थ्य सेवाओं का यह ढांचा दुनिया में सबसे बड़ा माना जाता है, लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की वास्तविकता यह है कि यहां डॉक्टर
केंद्रों पर रहते ही नहीं हैं। इसके साथ ही इन केंद्रों पर आने वाली सरकारी
दवाइयां भी या तो क्षेत्र के प्रभावशाली लोगो को दे दी जाती हैं या फिर उन्हें
बाजार के हवाले कर दिया जाता है। अधिकांश केंद्रों पर मौजूद विभिन्न मशीनें भी
ज्यादातर खराब ही रहती है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्तर पर देश के मात्र छह
प्रतिशत गांवों में ही पंजीकृत निजी डॉक्टर मौजूद हैं। अक्सर गांवों में मौजूद ये
पंजीकृत डॉक्टर एक ढर्रे से इलाज करने के कारण ग्रामीणों की बीमारियो का पूर्ण एवं
सही आकलन नहीं कर पाते। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता के
प्रसार के लिए सरकारी स्तर पर अनेक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित एवं तैनात किया
जाता है, लेकिन वहां अनुकूल वातातरण न मिल पाने के कारण स्वास्थ्य
संबंधी जागरूकता के प्रसार में इनकी गतिविधियां उपयोगी साबित नहीं होतीं। स्वच्छ
पेयजल का अभाव, गंदगी, इधर-उधर फैला
हुआ कूड़ा, घरों का सीलनयुक्त एवं हवादार न होना तथा कुपोषण
जैसी अनेक स्थितियां है जो लोगों को अनेक घातक बीमारियो से ग्रस्त कर देती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण
ही है कि स्वाइल फ्लू से अनेक लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन
सरकार ने इस बीमारी का संक्रमण रोकने हेतु अभी तक भी कोई जागरूकता अभियान शुरू
नहीं किया है। अब समय आ गया है कि सरकार इस गंभीर बीमारी से निपटने के लिए कोई ठोस
योजना बनाएं।
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