मुकुल व्यास
२०१२ डी-ए १४ से हमें कोई खतरा नहीं है। यह पृथ्वी
को नहीं छुएगा और निकट भविष्य में भी इसके पृथ्वी से टकराने की कोई संभावना नहीं
है। हालांकि यह एस्टेरॉयड दूरसंचार उपग्रहों की कक्षा के अंदर उड़ान भरते किसी
उपग्रह से जरूर टकरा सकता है। इससे पहले कभी कोई एस्टेरॉयड पृथ्वी के इतने करीब
आते नहीं देखा गया है। अंतरिक्ष से एक और
एस्टेरॉयड (क्षुद्रग्रह) आज हमारी पृथ्वी के नजदीक पहुंचने वाला है। करीब ५० मीटर
चौड़े और १३०००० टन वजनी इस एस्टेरॉयड की रफ्तार २८००० किलोमीटर प्रति घंटा है। यह
एस्टेरॉयड आज पृथ्वी के बगल से गुजरेगा। अंतरिक्ष शिलाएं अक्सर पृथ्वी के नजदीक आ
जाती हैं और इसमें कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार चौंकाने वाली बात यह है कि पृथ्वी से इसकी दूरी मात्र २७६८०
किलोमीटर होगी। ब्रह्मांड के विराट फैलाव से तुलना करें तो कह सकते हैं कि यह महज
इंचभर का फासला है। एक तरह से देखें तो यह एस्टेरॉयड हमारे भू-समकालिक संचार
उपग्रहों से भी ज्यादा हमारे करीब आ जाएगा, जो करीब ३६०००
किलोमीटर ऊंची कक्षा में तैनात हैं।
२०१२ डी-ए १४ नामक इस एस्टेरॉयड का पता पिछले साल ही चला था। खगोल वैज्ञानिकों ने इसे "नियर अर्थ ऑब्जेक्ट" माना है, क्योंकि उसकी कक्षा किसी बिंदु पर पृथ्वी के लिए खतरा बन सकती है। नासा का नियर अर्थ ऑब्जेक्ट प्रोग्राम ऑफिस ऐसे एस्टेरॉयड के मार्ग पर निगरानी रखता है। नासा के पर्यवेक्षणों के आधार पर खगोल वैज्ञानिकों ने आश्वस्त किया है कि २०१२ डी-ए १४ से हमें कोई खतरा नहीं है। यह पृथ्वी को नहीं छुएगा और निकट भविष्य में भी इसके पृथ्वी से टकराने की कोई आशंका नहीं है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह एस्टेरॉयड दूरसंचार उपग्रहों की कक्षा के अंदर उड़ान भरते किसी उपग्रह से टकरा सकता है। पृथ्वी के ऊपर स्थित कक्षा में १०० से अधिक दूरसंचार और मौसम उपग्रह तैनात हैं। वैज्ञानिकों ने इससे पहले कभी इतने बड़े एस्टेरॉयड को पृथ्वी के इतने करीब आते नहीं देखा है।
कई एस्टेरॉयड पहले भी पृथ्वी के बहुत करीब से गुजरे थे, लेकिन ये आकार में छोटे थे। २०१२ डी-ए १४ जैसे एस्टेरॉयड हर चालीस साल बाद पृथ्वी के बगल से गुजरते हैं और हर १२०० साल बाद पृथ्वी से टकराते हैं। खगोल वैज्ञानिकों ने अभी तक पृथ्वी के निकट ९००० से ज्यादा एस्टेरॉयड की पहचान की है। समझा जाता है कि करीब दस लाख या उससे ज्यादा अंतरिक्ष शिलाएं पृथ्वी के इर्दगिर्द मंडरा रही हैं। यदि २०१२ डी-ए १४ पृथ्वी से टकराता तो बड़ी तबाही मचा सकता था। विचलित करने वाली बात यह है कि पृथ्वी के अगल-बगल से एस्टेरॉयड्स के गुजरने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पिछले दिसंबर में ही एक एस्टेरॉयड पृथ्वी के बहुत करीब आ गया था। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि हमारे ग्रह के नजदीक आने से सिर्फ दो दिन पहले ही खगोल वैज्ञानिकों को इसका पता चला था। २०१२ एक्स-ई ५४ नामक यह एस्टेरॉयड पृथ्वी से २२६००० किलोमीटर दूर से गुजरा था। एपोफिस नामक एक अन्य बड़े एस्टेरॉयड के १३ अप्रैल २०२९ को पृथ्वी के करीब ३६००० किलोमीटर दूर से गुजरने की भविष्यवाणी की गई है। ३०० मीटर चौड़े इस एस्टेरॉयड की खोज २००४ में हुई थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस एस्टेरॉयड के भी पृथ्वी से सीधे टकराने की कोई आशंका नहीं है, लेकिन यह वर्ष २०३८ में पुनः पृथ्वी के लिए खतरा बन सकता है। एस्टेरॉयड्स की पहचान और उनका सूचीकरण बेहद जरूरी है, क्योंकि कुछ आवारा चट्टानी शिलाएं आकार में बहुत बड़ी हैं। अतीत में हमारा ग्रह एस्टेरॉयड्स के विनाशकारी प्रभाव झेल चुका है और ऐसे प्रहार भविष्य में भी हो सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक एस्टेरॉयड के आकार को देखकर यह तय किया जा सकता है कि खतरा कितना गंभीर है।
रिसर्चरों के मुताबिक निकट भविष्य में इनसे हमारे ग्रह को कोई खतरा नहीं है, लेकिन छोटे खगोलीय पिंडों के बारे में कोई भी भविष्यवाणी करना मुश्किल है। वैज्ञानिकों को छोटे एस्टेरॉयड्स से बहुत चिंता हो रही है। एक किलोमीटर से कम चौड़े एस्टेरॉयड्स का पता लगाना मुश्किल होता है। बहुत कम समय पहले ही इनकी जानकारी मिल पाती है। नासा के वाइस स्पेस टेलीस्कोप के आकलन के मुताबिक करीब ४७०० एस्टेरॉयड करीब १०० मीटर चौड़े हैं। ये अपनी कक्षाओं में विचरण करते हुए खतरनाक ढंग से पृथ्वी के करीब आ जाते हैं। रिसर्चरों ने इनमें से करीब ३० प्रतिशत पिंडों को देखा है। यदि इस आकार का पिंड पृथ्वी से टकराता है तो किसी देश का एक पूरा राज्य तबाह हो सकता है।
पृथ्वी के नजदीक मंडराने वाली कुछ चट्टानी शिलाएं ४० मीटर चौड़ी हैं और हमें इनमें से सिर्फ एक प्रतिशत के बारे में ही जानकारी मिली है। ऐसी शिलाएं स्थानीय पैमाने पर भारी तबाही मचा सकती हैं। तुंगुस्का की घटना इसका एक उदाहरण है। १९०८ में साइबेरिया में पोद्कमेन्नाया तुंगुस्का नदी पर एक ४० मीटर चौड़ी या उससे भी छोटी शिला का विस्फोट हुआ था, जिससे २००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला जंगल धराशायी हो गया था। इस तरह की विनाशकारी टक्करें हमारे ग्रह के जीवन की एक कड़वी हकीकत हैं। विश्व की अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने व समाज को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखने वाले एस्टेरॉयड औसतन हर २०० या ३०० साल बाद पृथ्वी पर प्रहार करते हैं। करीब ६.५ करोड़ वर्ष पहले एस्टेरॉयड के विनाशकारी प्रहार से पृथ्वी से डायनोसौरों का सफाया हो गया था। ऐसा हादसा मानव जाति के साथ न हो, इसके लिए हमें अभी से सजग रहना पड़ेगा। मानव जाति के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए हमारे पास समुचित टेक्नोलोजी और ज्ञान है। लगभग १४ वर्ष पहले बनी हॉलीवुड की मशहूर डिजास्टर फिल्म "आर्मागेडोन" में एक विशाल एस्टेरॉयड को पृथ्वी की ओर बढ़ते दिखाया गया था। पृथ्वी को महाविनाश से बचाने के लिए इस एस्टेरॉयड को परमाणु विस्फोट के जरिए नष्ट करना जरूरी था और इस काम के लिए फिल्म के मुख्य पात्रों के पास सिर्फ १८ दिन का समय बचा था। अब वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि पृथ्वी को एस्टेरॉयड्स के प्रहार से बचाने के लिए दुनिया को तत्काल आर्मागेडोन जैसे उपायों के बारे में सोचना पड़ेगा।
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