पिछले दिनों उच्च शिक्षा के क्षेत्र में रैंकिंग बताने वाली क्यूएस
वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की ताजा सूची में आईआईटी सहित भारत के किसी भी संस्थान
या विश्वविद्यालय को दुनिया के शीर्ष दो सौ संस्थानों में भी जगह नहीं मिली है।
देश में अपनी गुणवत्ता के लिए विख्यात आईआईटी की भी साख विश्व स्तर पर धूमिल होती जा रही है । विश्व के
सात सौ संस्थानों पर किए गए इस सर्वे में भारतीय संस्थानों की रैंकिंग लगातार
नीचे ही गिर रही हैं। आईआईटी, दिल्ली 202 से
गिरकर अब 218वें स्थान पर है और आईआईटी, मुंबई 187 से 225 वें स्थान पर। इस
सूची में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले अमेरिकी मैसाच्युसेट इंस्टीट्यूट ऑफ
टेक्नॉलाजी (एमआईटी) से आईआईटी की तुलना ही नहीं की जा सकती है। दोनों में शिक्षा,
शोध
और फैकल्टी के मामले में जमीन-आसमान का अंतर है। इसका प्रमाण तो यही है कि एमआईटी
की फैकल्टी में 77 नोबल पुरस्कार विजेता संबद्ध हैं।
देश में अनुसंधान की स्तिथि,गुणवत्ता और अंतरराष्ट्रीयकरण के
पैमाने पर भी आईआईटी कमतर ही साबित हुए हैं । पिछले सालों में भारत ने रूस ,ब्राजील,
चीन
और दक्षिण आफ्रीका के साथ मिलकर ब्रिक्स के जरिये दुनिया के आर्थिक मंचों पर अपनी
उपस्थिति दर्ज कराई है। मगर इस सूची में तकनीकी और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में
ब्रिक्स के बाकी देशों के आगे हम कहीं नहीं ठहरते। सिर्फ उच्च शिक्षा ही नहीं
बल्कि स्कूली शिक्षा के मामले में भी
हमारी स्तिथि बहुत खराब है । इसी वजह से पीसा (प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट
एसेसमेंट) की रैंकिंग में हमें जगह नहीं मिली थी। पीसा ने जहां स्कूली शिक्षा में
हमारी दयनीय हालत को उजागर किया है, वहीं क्यएस रैंकिंग ने यह सोचने पर मजबूर किया
है कि हमारे आईआईटी इनोवेशन क्यों नहीं कर
पा रहे हैं।
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