Friday 14 December 2012

इंटरसेप्टर मिसाइल

डॉ. एल. एस. यादव
भारत बहुस्तरीय बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा तंत्र (मल्टी लेयर्ड बैलेस्टिक मिसाइल डिफेन्स सिस्टम)को विकसित करने की दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। पिछले दिनों ओडिशा के तट से कुछ ही दूर अभ्यास के तौर पर आवाज की रफ्तार से भी तेज अर्थात सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया। चांदीपुर के एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर ) के कॉम्प्लेक्स-3 से दोपहर 12.52 बजे पहले पृथ्वी मिसाइल को लक्ष्य की ओर प्रक्षेपित किया गया। इसके बाद चांदीपुर सेे 70 किलोमीटर दूर स्थित व्हीलर द्वीप से इंटरसेप्टर मिसाइल एएडी ने राडार से संकेत मिलते ही तकरीबन चार मिनट में ही हवा में आने वाली पृथ्वी मिसाइल को समुद्र के ऊपर आसमान में लगभग 15 किलोमीटर की उंचाई पर अपने निशाने में लेकर ध्वस्त कर दिया। इस तरह का यह सातवां परीक्षण था। यह इंटरसेप्टर पाकिस्तान की गौरी मिसाइल को हवा में ही मार गिराने में सक्षम है। यह मिसाइल पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इसकी लम्बाई साढ़े सात मीटर है। यह मिसाइल नौवहन प्रणाली, एक अत्याधुनिक कम्प्यूटर और एक इलेक्टो-मैकेनिकल एक्टिवेटर से लैस है।
भारत की अत्याधुनिक मिसाइल ताकत के मामले में 10 फरवरी 2012 का दिन ऐतिहासिक रहा। इस दिन भारतीय वैज्ञानिकों ने मिसाइल रोधी सुरक्षा प्रणाली को और अधिक सक्षम बनाते हुए इसका शानदार सफल परीक्षण किया। इस मिसाइल रोधी परीक्षण को ओडिशा के समुद्र तट पर दो स्थानों से संचालित किया गया। एकीकृत परीक्षण केन्द्र के निदेशक एस$ पी$ दास के मुताबिक परीक्षण के दौरान दुश्मन मिसाइल के रूप में पृथ्वी मिसाइल का इस्तेमाल करते हुए इसे 10 बजकर 13 मिनट पर प्रक्षेपण स्थल-3 से एक मोबाइल लांचर से दागा गया। इसके ठीक तीन मिनट बाद चांदीपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर व्हीलर द्वीप पर तैनात इंटरसेप्टर एडवांस्ड एयर डिफेन्स (ए$ ए $ डी.) मिसाइल को समुद्र तटीय रेखा के किनारे पर लगे राडारों से संकेत मिले और इसने दुश्मन मिसाइल पृथ्वी को ध्वस्त करने के लिए उड़ान भरी। इस इंटरसेप्टर मिसाइल ने समुद्र से तकरीबन 15 किलोमीटर की उंचाई पर पृथ्वी मिसाइल का रास्ता रोका और चन्द सेकंडों में उसे ध्वस्त कर दिया।
विदित हो कि शत्रु की किसी भी हमलावर मिसाइल को जमीन पर गिरने से पहले उड़ान के दौरान आसमान में ही उसे नष्ट कर देने वाली मिसाइल को इंटरसेप्टर मिसाइल कहा जाता है। दुश्मन की आक्रामक मिसाइलों के खतरे से निपटने के लिए अभेद्य कवच विकसित करने के प्रयास सन् 1999 में प्रारम्भ कर दिए गए थे। इस कवायद का परिणाम सन् 2006 में तब सामने आया जब 27 नवम्बर को इसका प्रथम सफल परीक्षण किया गया। इसे बाद 6 दिसम्बर 2007 एवं 6 मार्च 2009 को इसके सफल परीक्षण हुए। इंटरसेप्टर मिसाइल के संशोधित स्वरूप का अगला परीक्षण 14 मार्च 2010 को व्हीलर द्वीप से किया जाना था लेकिन मिसाइल की उप प्रणाली की तकनीकी खामियों के कारण इसे टाल दिया गया था। फिर 15 मार्च 2010 को परीक्षण के समय पृथ्वी मिसाइल अपने पूर्व निर्धारित पथ से भटक गई जिससे वैज्ञानिकों को अंतिम समय में परीक्षण टालना पड़ा। इसके बाद 26 जुलाई 2010 एवं 6 मार्च 2011 के पांचवें व छठे परीक्षण सफल रहे थे।
इस सुरक्षा प्रणाली सिस्टम में शत्रु की तरफ से आ रही हमलावर मिसाइल को पहले राडार या अन्य उपकरण पकड़ते हैं। इसके बाद इसके संकेत सिस्टम इंटरसेप्टर को जानकारी देते हैं। फिर इंटरसेप्टर तेज गति से आगे बढ़कर शत्रु की मिसाइल को ध्वस्त करती है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के वैज्ञानिकों के अनुसार इन परीक्षणों से विस्तृत परिणामों और इंटरसेप्टर मिसाइल के घातक प्रभावों का विश्लेषण किया जा रहा हैै। लगभग 7$5 मीटर लम्बी इंटरसेप्टर एक चरणीय ठोस रॉकेट प्रोपेल्ड निर्देशित मिसाइल है। इसमें उन्नत किस्म की इंटीरियल नैवीगेशन प्रणाली लगी है जो इसे सही दिशा देने और उसमें जरूरत के हिसाब से बदलाव करने में सक्षम है। यही प्रणाली इसकी मारक क्षमता को अचूक बनाती है। यह मिसाइल आधुनिक दिशा सूचक प्रणाली से भी सुसज्जित है। इस मिसाइल में लगे उच्च प्रौद्योगिकी से युक्त कम्प्यूटर और विद्युत यांत्रिक एक्टिवेटर पूरी तरह जमीन पर स्थित राडार से मिलने वाले निर्देशों के अनुसार कार्य करते हैं।
इस इंटरसेप्टर मिसाइल का अपना राडार व हमलावर मिसाइल का पता लगाने के लिए डाटा लिंक, आन्तरिक संचालन प्रणाली तथा सिक्योर डाटा लिंक है। यह सटीक निशाना लगाने की क्षमताओं व अत्याधुनिक राडारों जैसी विशेषताओं से लैस है। इंटरसेप्टर मिसाइल शत्रु द्वारा दागी गई किसी भी विध्वसंक मिसाइल की गति , दिशा व समय आदि की गणना करके उसे अति शीघ्र हवा में नष्ट करने की क्षमता रखती है। इसके इंफ्रारेड सेंसर व संवेदनशील कैमरे आसमान की गतिविधियों की सूचना शीघ्र देते हैं। इससे उसे निशाने में लेना आसान हो जाता है। चंकि इसे मोबाइल लांचर से भी छोड़ा जा सकता है इसलिए युद्धकाल में इस मिसाइल की क्षमता और भी बढ़ जाती है।
इस मिसाइल को द्विस्तरीय बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली (बी$ एम$ डी$) की योजना के तहत विकसित किया गया है। यह पूर्ण रूप से स्वदेश निर्मित सुपरसोनिक मिसाइल है। 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक शत्रु की मिसाइल को मार गिराने की क्षमता वाली इंटरसेप्टर मिसाइल को एंडो एटमोस्फेयर (अन्त: वायु मंडलीय) कहा जाता है। यह मिसाइल एडवांस्ड एयर डिफेन्स (ए$ ए$ डी.) होती है। इसी तरह 50 किलोमीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर दुश्मन की मिसाइल को ध्वस्त करने वाली इंटरसेप्टर मिसाइल को एक्सो एटमोस्फेयर (बाह्य वायु मंडलीय) कहा जाता है। इसकी श्रेणी पीएडी होती है। दुश्मन की हमलावर मिसाइल से अधिक तेज रफ्तार से चलने वाली एंटी बैलेस्टिक मिसाइल पीएडी हाई सुपरसोनिक है। इस इंटरसेप्टर मिसाइल का भी अपना मोबाइल लांचर तथा राडार है। यह भी तेज गति के साथ दुश्मन की मिसाइल अपने अचूक निशाने में ले लेती है। पीएडी को दुश्मन की मिसाइल चकमा नहीं दे पाती है क्योंकि यह मिसाइल शत्रु की मिसाइल का पीछा करने में अत्यन्त माहिर है। इस मिसाइल में इंटरसेप्शन के लिए सुरक्षित डाटा लिंक, होमिंग व टेकिंग के लिए राडार सुविधा उपलब्ध है। यही उन्नत तकनीक की विशेषता शत्रु की मिसाइल को मार गिराने में मदद करती है।
अभी तक मिसाइल रोधी तकनीक अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली व इस्राइल के पास है। अब भारत भी इस सूची में जुड़ गया है। भारत का स्वदेशी इंटरसेप्टर मिसाइल कार्यक्रम अन्य देशों की तुलना में काफी आधुनिक है। भारत की बैलेस्टिक मिसाइल सुरक्षा व्यवस्था (बीएमडी) आने वाले कुछ वर्षों में तैयार हो जाएगी। बीएमडी सिस्टम की एक बैटरी से 200 वर्ग किलोमीटर के आसमान की सुरक्षा सम्भव हो जाएगी। इतना बड़ा इलाका राष्टीय राजधानी क्षेत्र के बराबर होगा। बीएमडी सिस्टम अमेरिका की पैट्रियट पैक-3 मिसाइल सिस्टम से काफी बेहतर है। इसलिए ये बैलेस्टिक मिसाइलें पाकिस्तान की हत्फ श्रेणी की मिसाइलों तथा चीन की डोंगफोंग व जुलेंग मिसाइलों को नष्ट करने की क्षमता रखती हैं। बीएमडी सिस्टम के तैयार होने के बाद यदि इसे चीन व पाकिस्तान से लगने वाली सीमा पर तैनात किया गया तो इन देशों की तरफ से आने वाली हमलावर मिसाइलों को ध्वस्त करना आसान हो जाएगा। इससे भारत की आसमानी सरहद की सुरक्षा अत्यन्त मजबूत होगी।

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