Sunday 14 October 2012

स्टेम सेल के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि


मेडिसिन के लिए सन् 2012 का नोबेल पुरस्कार पाने वाले जापान के शिनाया यामांका और ब्रिटेन के जॉन बी गर्डन ने यह साबित कर दिखाया है कि कैसे एक मच्योर सेल यानी एक परिपक्व कोशिका महज त्वचा, मस्तिष्क या शरीर के किसी अंग विशेष के लिए ही काम नहीं करती, बल्कि इसे फिर से स्टेम सेल की तरह समर्थ बनाया जा सकता है। इससे यह शरीर के किसी दूसरे हिस्से में भी काम आ सकता है। नए स्टेम सेल के बनने का तरीका सामने लाने और मच्योर सेल को फिर उसी रूप में वापस ले आने से चिकित्सा के क्षेत्र में जबर्दस्त बदलाव आया है।
इससे कई तरह के उपचार में मदद मिल सकेगी। गर्डन ने 1962 में ही अपनी यह खोज कर ली थी। उन्होंने एक नए स्टेम सेल के न्यूक्लियस को एक मच्योर सेल के न्यूक्लियस से बदल दिया। यह काम उन्होंने मेंढक के एग सेल में किया। और वह एक सामान्य टेडपोल में बदल गया। मच्योर सेल के डीएनए में पाया गया कि उसमें मेंढक के लिए जरूरी सभी सेल विकसित करने की क्षमता है। यामांका का काम इसके ठीक 40 बरस बाद 2006 में पूरा हुआ। एक तरह से उन्होंने गर्डन के काम को और आगे बढ़ाया। उन्होंने दिखाया कि कैसे मच्योर सेल को इतना समर्थ बनाया जा सकता है कि वह शरीर में हर तरह के सेल पैदा कर सके। इस खोज ने पुरानी अवधारणाओं में परिवर्तन किया।
दुनिया यह समझ गई कि मच्योर सेल की सामर्थ्य भी हमेशा के लिए सीमित नहीं हो जाती। मानव कोशिकाओं को रीप्रड्यूस करने वाले अपने इन प्रयोगों के साथ ही इन वैज्ञानिकों ने बीमारियों के अध्ययन की दिशा ही बदल दी है। इससे डायग्नोसिस और थेरपी के तरीकों में भी बदलाव आया है। दरअसल हम सभी फर्टिलाइज्ड एग सेल्स से विकसित हुए हैं। गर्भाधान के पहले ही दिन से भ्रूण की प्रारंभिक अवस्था में नए स्टेम सेल होते हैं। इनमें यह सामर्थ्य होती है कि वे जीव में बदल सकें। ये प्लुटिपोटेंट सेल कहलाते हैं। जीवन के विकास के साथ ही ये नर्व सेल, लीवर सेल या किसी अन्य तरह के सेल में बदल सकते हैं। ये सभी एक पूरे शरीर के बनने में सहयोगी होते हैं।
लेकिन इस खोज से पहले यह माना जाता था कि इस यात्रा में इमच्योर से स्पेशलाइज्ड सेल बनने की प्रक्रिया में मच्योर सेल सीमित हो जाते हैं। लेकिन गर्डन की खोज के बाद यह सवाल उठा कि क्या यह संभव हो सकेगा कि किसी सुरक्षित सेल को प्लुटिपोटेंट स्टेम सेल में बदला जा सके? यामांका ने इसका उत्तर दिया। उनकी खोज अविकसित स्टेम सेल पर आधारित थी। ये वे सेल हैं जो भ्रूण से अलग हो जाते हैं। इनकी पहचान करने के बाद यामांका ने यह जानने की कोशिश की कि क्या इन्हें रिप्रोग्रैम किया जा सकता है ताकि ये प्लुटिपोटेंट सेल बन सकें। इस काम में उन्हें सफलता हाथ लगी। यह एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इसे भी अंतिम मान लेना भूल होगी। यह जरूर है कि इससे किसी और बड़े काम में मदद मिल सकती है।(ref-nbt)

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