नई
दिशा की जरूरत
देश
में इंजीनियरिंग को नई सोच और दिशा देने वाले महान इंजीनियर भारत रत्न मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया की जयंती 15 सितंबर
को देश में इंजीनियर्स डे (अभियंता दिवस) के रूप में मनाया जाता है। मैसूर राज्य
(वर्तमान कर्नाटक) के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले विश्वेश्वरैया अपने समय
के सबसे प्रतिभाशाली इंजीनियर थे, जिन्होंने बांध और सिंचाई
व्यवस्था के लिए नए तरीकों का ईजाद किया। उन्होंने आधुनिक भारत में नवीनतम तकनीक
पर आधारित बांध बनाए और पनबिजली परियोजनाओं के लिए जमीन तैयार की। विश्वेश्वरैया
ने कावेरी नदी पर उस समय एशिया का सबसे बड़ा जलाशय बनाया और बाढ़ बचाव प्रणाली
विकसित कर हैदराबाद पर मंडराते बाढ़ के खतरे को खत्म किया। करीब 100 साल पहले जब साधन और तकनीक इतने विकसित नहीं थे, विश्वेश्वरैया
ने आम आदमी की समस्याएं सुलझाने के लिए इंजीनियरिंग में कई तरह के इनोवेशन किए।
असल में इंजीनियर वह नहीं है जो सिर्फ मशीनों के साथ काम करे, बल्कि वह है जो किसी भी क्षेत्र में अपने मौलिक विचारों और तकनीक से
मानवता की भलाई के लिए काम करे। विश्वेश्वरैया को 1912 में
मैसूर राच्य के राजा ने अपना दीवान नियुक्तकिया और 1918 तक
इस पद पर रहते हुए उन्होंने सैकड़ों स्कूल, सिंचाई की बेहतर
सुविधा और अस्पताल बनवाने जैसे अनेक विकासोन्मुखी कार्य किए। उनके नाम पर पूरे
भारत खासकर कर्नाटक में कई शिक्षण संस्थान हैं। विश्वेश्वरैया को सर एमवी और
आधुनिक मैसूर का पितामह भी कहा जाता है। 15 सितंबर,
1861 को कर्नाटक के कोलार जिले के चक्कबल्लारपुर तलुका के
मुद्देनभल्ली गांव में उनका जन्म हुआ। गांव से प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर उच्च
शिक्षा के लिए वह बेंगलूर आए, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते
विपरीत परिस्थतियों का सामना करना पड़ा। फिर भी वह लक्ष्य से भटके नहीं। देश और समाज
के निर्माण में एक इंजीनियर की रचनात्मक भूमिका कैसी होनी चाहिए यह उनसे सीखा जा
सकता है। विश्वेश्वरैया न केवल एक कुशल इंजीनियर थे, बल्कि
देश के सर्वश्रेष्ठ योजना शिल्पी, शिक्षाविद् और
अर्थशास्त्री भी थे। तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा वर्ष 1928 में
तैयार पंचवर्षीय योजना से भी आठ वर्ष पहले 1920 में अपनी
पुस्तक रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया में उन्होंने भारत में पंचवर्षीय योजना की
परिकल्पना प्रस्तुत कर दी थी। 1935 में उनकी एक पुस्तक
प्लान्ड इकोनॉमी फॉर इंडिया देश के विकास की योजनाओं के लिहाज से महत्वपूर्ण थी। 98
वर्ष की उम्र में भी उन्होंने प्लानिंग पर एक पुस्तक लिखी। बेंगलूर
स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका रही। अगर हम एक
विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए
हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी। देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय
उद्योग के कौशल संसाधनों और प्रतिभाओं का बेहतर उपयोग करना जरूरी है। इसमें मध्यम
और लघु उद्योगों की प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण की अहम भूमिका हो सकती है। सर
विश्वेश्वरैया ने देश के भावी इंजीनियरों को संदेश दिया था कि मानवता की भलाई को
ध्यान में रखते हुए राष्ट्र निर्माण में अपना पूर्ण सहयोग दें। अपने कार्य और समय
के प्रति लगन, निष्ठा और प्रतिबद्धता उनकी सबसे बड़ी
विशेषताएं थीं। आजादी के समय हमारा इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी ढांचा न तो विकसित
देशों जैसा मजबूत था और न ही संगठित। बावजूद इसके प्रौद्योगिकी क्षेत्र में हमने
कम समय में बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। हमारा प्रयास रहा है कि विज्ञान और
प्रौद्योगिकी के जरिए आर्थिक-सामाजिक परिवर्तन भी लाया जाए, जिससे
देश के जीवन स्तर में संरचनात्मक सुधार हो सके। इस उद्देश्य को हासिल करने में हम
कुछ हद तक सफल भी रहें हैं, लेकिन इंजीनियरिंग और
प्रौद्योगिकी को आम जनमानस से पूरी तरह से जोड़ नहीं पाए हैं। आज देश को
विश्वेश्वरैया जैसे इंजीनियरों की जरूरत है, जो देश को नई
दिशा दे सकें। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) इंजीनियर्स डे पर शशांक द्विवेदी के
विचार
शशांक
द्विवेदी
दैनिक
जागरण,जनसंदेशटाइम्स और हरिभूमि में प्रकाशित
हरिभूमि |
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