अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतिहास रचते
हुए भारत ने आज अपने सौवें अंतरिक्ष मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और पीएसएलवी
सी21 के माध्यम से दो विदेशी उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित किया।
चेन्नई से करीब 110 किलोमीटर दूर स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी 21 सुबह नौ बज कर 53 मिनट पर रवाना हुआ। यह पूरी तरह वाणिज्यिक उड़ान थी और पीएसएलवी अपने साथ कोई भारतीय उपग्रह नहीं ले गया था। उसके साथ गए दो उपग्रह फ्रांस तथा जापान के थे। प्रक्षेपण के 18 मिनट बाद 44 मीटर लंबे पीएसएलवी सी21 ने फ्रांसीसी एसपीओटी 6 को और जापान के माइक्रो उपग्रह प्रोइटेरेस को उनकी कक्षा में स्थापित कर दिया। अंतरिक्ष के मलबे की टक्कर से बचने के लिए 51 घंटे की उल्टी गिनती के बाद प्रक्षेपण में दो मिनट का विलंब किया गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के मिशन नियंत्रण कक्ष से प्रक्षेपण का सिलसिलेवार पूरा घटनाक्रम देखा।
इस सफलता से प्रसन्न इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन ने आज संवाददाताओं से कहा कि सफल मिशन के साथ ही एजेंसी ने 62 उपग्रह, एक स्पेस रिकवरी मॉड्यूल और 37 रॉकेटों का प्रक्षेपण कर लिया तथा इनकी कुल संख्या 100 होती है। प्रत्येक भारतीय रॉकेट के प्रक्षेपण को और प्रत्येक भारतीय उपग्रह को कक्षा में स्थापित किए जाने को एक-एक मिशन माना जाता है।
पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल (पीएसएलवी) सुबह नौ बज कर 53 मिनट पर तेज आवाज के साथ फ्रांसीसी उपग्रह को लेकर अपनी 22 वींं उड़ान पर रवाना हुआ। कुल 712 किलोग्राम वजन वाला यह फ्रांसीसी उपग्रह भारत द्वारा किसी विदेशी ग्राहक के लिए प्रक्षेपित सर्वाधिक वजन वाला उपग्रह है। जापानी माइक्रो अंतरिक्ष यान का वजन 15 किग्रा है। उल्लेखनीय है कि इसरो ने 19 अप्रैल 1975 में स्वदेश निर्मित उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के प्रक्षेपण के साथ अपने अंतरिक्ष सफर की शुरूआत की थी।भारत के सौवें अंतरिक्ष मिशन को शानदार सफलता करार देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि यह भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की वाणिज्यिक प्रतिस्पर्धा की श्रेष्ठता का गवाह है।
चेन्नई से करीब 110 किलोमीटर दूर स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी 21 सुबह नौ बज कर 53 मिनट पर रवाना हुआ। यह पूरी तरह वाणिज्यिक उड़ान थी और पीएसएलवी अपने साथ कोई भारतीय उपग्रह नहीं ले गया था। उसके साथ गए दो उपग्रह फ्रांस तथा जापान के थे। प्रक्षेपण के 18 मिनट बाद 44 मीटर लंबे पीएसएलवी सी21 ने फ्रांसीसी एसपीओटी 6 को और जापान के माइक्रो उपग्रह प्रोइटेरेस को उनकी कक्षा में स्थापित कर दिया। अंतरिक्ष के मलबे की टक्कर से बचने के लिए 51 घंटे की उल्टी गिनती के बाद प्रक्षेपण में दो मिनट का विलंब किया गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के मिशन नियंत्रण कक्ष से प्रक्षेपण का सिलसिलेवार पूरा घटनाक्रम देखा।
इस सफलता से प्रसन्न इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन ने आज संवाददाताओं से कहा कि सफल मिशन के साथ ही एजेंसी ने 62 उपग्रह, एक स्पेस रिकवरी मॉड्यूल और 37 रॉकेटों का प्रक्षेपण कर लिया तथा इनकी कुल संख्या 100 होती है। प्रत्येक भारतीय रॉकेट के प्रक्षेपण को और प्रत्येक भारतीय उपग्रह को कक्षा में स्थापित किए जाने को एक-एक मिशन माना जाता है।
पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल (पीएसएलवी) सुबह नौ बज कर 53 मिनट पर तेज आवाज के साथ फ्रांसीसी उपग्रह को लेकर अपनी 22 वींं उड़ान पर रवाना हुआ। कुल 712 किलोग्राम वजन वाला यह फ्रांसीसी उपग्रह भारत द्वारा किसी विदेशी ग्राहक के लिए प्रक्षेपित सर्वाधिक वजन वाला उपग्रह है। जापानी माइक्रो अंतरिक्ष यान का वजन 15 किग्रा है। उल्लेखनीय है कि इसरो ने 19 अप्रैल 1975 में स्वदेश निर्मित उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के प्रक्षेपण के साथ अपने अंतरिक्ष सफर की शुरूआत की थी।भारत के सौवें अंतरिक्ष मिशन को शानदार सफलता करार देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि यह भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की वाणिज्यिक प्रतिस्पर्धा की श्रेष्ठता का गवाह है।
मिशन नियंत्रण केंद्र से सिंह ने आज
पीएसएलवी-सी21 को अपने साथ दो विदेशी उपग्रहों को लेकर जाते देखा। उन्होंने कहा
इसरो के सौवें मिशन के साथ ही आज का प्रक्षेपण हमारे देश की अंतरिक्ष क्षमताओं के
लिए मील का एक पत्थर है। ‘भारतीय प्रक्षेपक वाहन से इन उपग्रहों का प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष
उद्योग की उत्कृष्टता का गवाह है और यह देश के नवोन्मेष तथा कौशल को समर्पित है।’
उन्होंने फ्रांस के ईएडीएस एस्ट्रियम और जापान के ओसाका इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी को बधाई दी जिनके उपग्रह क्रमश: एसपीओटी 6 तथा प्रोइटेरेस को इसरो के पीएसएलवी ने अपनी अपनी कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया। सफल मिशन के तत्काल बाद सिंह ने वैज्ञानिकों को हाथ मिला कर बधाई दी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कॉसमॉस के चंद्रमा के लिए संयुक्त मानव रहित इसरो अभियान चंद्रयान-2 मिशन रूस के नीतिगत निर्णय की प्रतीक्षा में अटक गया है। इसरो के अध्यक्ष के.राधाकृष्णन ने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के 100 वां अंतरिक्ष मिशन पूरा होने के अवसर पर आज एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि चीन के साथ साझा मिशन विफल हो जाने के मद्देनजर रूस अपने अंतरग्रही मिशनों की समीक्षा कर रहा है। इस कारण भारत के साथ उसके संयुक्त चंद्रयान-2 मिशन को लेकर निर्णय भी अटका हुआ है। इस समय रूस चीन के साथ संयुक्त मिशन की विफलता के बाद अंतरग्रही मिशनों की समीक्षा कर रहा है। रूस ने कहा है कि वे समीक्षा पूरी करने के बाद इस संबंध में नीतिगत निर्णय लेंगे और फिर भारत से संपर्क करेंगें। चंद्रयान-2 मिशन 2014 में प्रस्तावित हैं तथा इसे भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) एम के 2 से प्रक्षेपित किया जाएगा। इसकी तैयारियां जोरों पर हैं। डा राधाकृष्णन ने चीन के साथ अंतरिक्ष में किसी तरह की प्रतिस्पर्धा होने की बात से इनकार करते हुए कहा कि उसके मंगल मिशन का उद्देश्य वैज्ञानिक समुदाय के तौर पर और अधिक मूल्यवान चीजें सीखना है।
उन्होंने फ्रांस के ईएडीएस एस्ट्रियम और जापान के ओसाका इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी को बधाई दी जिनके उपग्रह क्रमश: एसपीओटी 6 तथा प्रोइटेरेस को इसरो के पीएसएलवी ने अपनी अपनी कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया। सफल मिशन के तत्काल बाद सिंह ने वैज्ञानिकों को हाथ मिला कर बधाई दी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कॉसमॉस के चंद्रमा के लिए संयुक्त मानव रहित इसरो अभियान चंद्रयान-2 मिशन रूस के नीतिगत निर्णय की प्रतीक्षा में अटक गया है। इसरो के अध्यक्ष के.राधाकृष्णन ने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के 100 वां अंतरिक्ष मिशन पूरा होने के अवसर पर आज एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि चीन के साथ साझा मिशन विफल हो जाने के मद्देनजर रूस अपने अंतरग्रही मिशनों की समीक्षा कर रहा है। इस कारण भारत के साथ उसके संयुक्त चंद्रयान-2 मिशन को लेकर निर्णय भी अटका हुआ है। इस समय रूस चीन के साथ संयुक्त मिशन की विफलता के बाद अंतरग्रही मिशनों की समीक्षा कर रहा है। रूस ने कहा है कि वे समीक्षा पूरी करने के बाद इस संबंध में नीतिगत निर्णय लेंगे और फिर भारत से संपर्क करेंगें। चंद्रयान-2 मिशन 2014 में प्रस्तावित हैं तथा इसे भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) एम के 2 से प्रक्षेपित किया जाएगा। इसकी तैयारियां जोरों पर हैं। डा राधाकृष्णन ने चीन के साथ अंतरिक्ष में किसी तरह की प्रतिस्पर्धा होने की बात से इनकार करते हुए कहा कि उसके मंगल मिशन का उद्देश्य वैज्ञानिक समुदाय के तौर पर और अधिक मूल्यवान चीजें सीखना है।
well explained....
ReplyDeletethanks for ur response....
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