Tuesday 28 August 2012

बोलने में अक्षम भी बात कर पायेंगे

दु निया में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं, जो पैरालिसिस के शिकार हों. इनमें से कई ऐसे हैं, जो अपनी इस बीमारी की वजह से बोल तक नहीं पाते. लेकिन, अब इन लोगों का बोलना भी मुमकिन हो सकता है. दरअसल, शोधकर्ताओं का दावा है कि पैरालिसिस से ग्रसित लोग अब बात करने में भी सक्षम हो सकते हैं. वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है कि कैसे हमारा मस्तिष्क विभित्र वर्णों को उारण करता है. गौरतलब है कि भौतिकविद मोटर न्यूरॉन नामक बीमारी से ग्रसित हैं और उन्हें अपनी कहने के लिए कंप्यूटराइज्ड डिवाइस की मदद लेनी पड़ती है. लेकिन, अब इस नये शोध के सामने आने के बाद एक मस्तिष्क में ऐसा प्रोस्थेटिक डिवाइस विकसित किया जा सकता है, जो पैरालिसिस शिकार लोगों को बातचीत करने या बोलने में मदद करेगा. वैज्ञानिकों ने अपने खोज में पाया कि हमारे मस्तिष्क में दो ऐसे भाग होते हैं, जो बातचीत करने या शब्दों के उारण में महत्वपूर्ण भूमिका निप्रभाते हैं. इन दोनों का नाम है- सुपीरियर टेंपोरल जाइरस और मेडियल फ्रंटल लोब. मेडियल फ्रंटल लोब उारण संबंधी न्यूरॉन्स के लिए जवाबदेह होता है और वर्णों के उारण में हमारी मदद करता है. वहीं, सुपीरियर टेंपोरल जाइरस में मौजूद न्यूरॉन्स ध्वनि प्रक्रिया के लिए जवाबदेह होता है. गौरतलब है कि मस्तिष्क के विभित्र भागों में मौजूद न्यूरॉन्स अलग-अलग तरह व्यवहार करते हैं. अब अपनी इस खोज के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि एकबार यदि न्यूरॉनल कोड का पता चल जाये तो उसके बाद यह संभव हो सकता है कि जो व्यक्ति शारीरिक से बोलने में अक्षम हैं, वो भी बातचीत कर सकते हैं.

मिल्की-वे की तरह आकाशगंगा
र ह्मांड की कहानी बेहद ही रोचक है और इंसान लगातार अंतरिक्ष की इन कहानियों को सामने लाने की कोशिश करता रहता है. वह इस कोशिश में कई बार सफल भी होता है. अब आकाशगंगा की दुनिया को लें, तो जह हमारे आकाशगंगा मिल्की-वे की खोज हुई थी, तो लगता था यही एकमात्र आकाशगंगा अंतरिक्ष में है. लेकिन, धीर-धीरे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने और भी आकाशगंगाओं की खोज की. अब पिछले दिनों ही उन्होंने बिल्कुल हमारी ही तरह आकाशगंगा की खोज की है. और ऐसा पहली बार है, जब हमारी आकाशगंगा यानी मिल्की-वे की तरह ही यह है. वैज्ञानिकों ने यह खोज गैलेक्सी एं.ड मास असेंबली सर्वे (गामा) की मदद से की है. इस प्रोजेक्ट के तहत छह टेलिस्कोप को मिलाकर एक थ्री-डी मैप बनाया गया और उसकी मदद से यह खोज की गयी. हालांकि, यह गैलेक्सी थोड़ा धुंधला दिखा. लेकिन, अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का कहना है कि शुरुआती शोध से उन्होंने यह पाया कि अन्य आकाशगंगाओं की ही तरह यह अधिक गर्म है. इस खोज को यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के इंटरनेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोनॉमी रिसर्च एवं यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज ने अंजाम दिया. इस खोजदल की अगुवाई करने वाले डॉ रोबोथम ने बताया कि इससे पहले हमने कभी मिल्की-वे की तरह किसी दूसरी आकाशगंगा को नहीं देखा. उन्होंने बताया कि अभी तक कुल 14 ऐसे आकाशगंगाओं की खोज की जा चुकी है, जो एक समान हैं. हालांकि, यह पहला मामला है, जब पृथ्वी की तरह की आकाशगंगा की खोज की गयी है.

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