Tuesday 28 August 2012

अब हिंदी की वर्तनी भी गूगल बाबा के सहारे

राकेश कुमार
हा ल ही में टीवी-अखबार पर एक खबर दिखायी दी कि नित नयी तकनीकों के आने से इनसान की दिमागी क्षमता घट रही है. मुझे यह निष्कर्ष 100 फीसदी सही लगता है. जब से फोन नंबर मोबाइल में सेव होने लगे, हाल यह है कि लोगों को अपनी बीवी तक का फोन नंबर याद नहीं रहता. कैलकुलेटर ने ऐसी आदत खराब की है कि अगर किराना का दाम भी बिना इस मशीन के जोड़ना पड़ जाये तो दिमाग चक्कर खाने लगता है. गणित में ग्रेजुएट रह चुका व्यक्ति भी प्रतिशत निकालने के लिए ‘कैलकुलेटरम् शरणम् गच्छामि’ का जाप कर रहा है.

तकनीक लोगों के भाषाई ज्ञान की जड़ों में भी मट्ठा डाल रही है. सभी भाषाओं पर इसका असर पड़ रहा है, लेकिन हिंदी पर इसकी कुछ ज्यादा ही मार पड़ रही है. अंगरेजी माध्यम से पढ.नेवाले बच्चों में वैसे भी हिंदी से कोई लगाव नहीं रहता. अंगरेजियत का नशा चढ.ाने में स्कूल से लेकर घर-परिवार के लोग जी-जान से जुटे रहते हैं. हालांकि इतनी मशक्कत के बाद भी ज्यादातर का अंगरेजी ज्ञान अधकचरा ही है. हिज्जे और व्याकरण ठीक रहे, इसके लिए बिना कंप्यूटर के उनका काम नहीं चलता. आजकल अंगरेजी माध्यम से पढ. कर जो नौजवान हिंदी की रोटी खा रहे हैं, हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में काम कर रहे हैं, वे हिंदी में भी अंगरेजी की तरह ‘स्पेल चेक’ और ‘ग्रामर चेक’ साफ्टवेयर चाहते हैं. लेकिन अफसोस कि हिंदी में ये साफ्टवेयर अभी इतने उत्रत नहीं हैं कि काम चल जाये. एक दिन मैंने ऐसे ही कुछ नौजवानों को बात करते सुना- ‘‘अच्छा बताओ कि अंगरेजी के शब्द तो कंप्यूटर और इंटरनेट के सहारे सही-सही मिल जाते हैं, लेकिन हिंदी के सही शब्दों को कहां से सीखा जा सकता है? उसमें इकार, उकार का सही-सही उपयोग समझ में नहीं आता.’’ यह सुन कर दूसरे ने तपाक से जवाब दिया - ‘‘अरे क्या सोचते हो, तुरंत गूगल में जाओ. भाषा हिंदी चुनो और उस शब्द को टाइप करो. तुम्हें सही-सही लिखा शब्द मिल जायेगा.’’ मैं आश्‍चर्य में पड़ गया कि ‘गूगल बाबा’ अब हिंदी शिक्षक हो गये हैं!

इसमें नौजवानों का भी क्या कसूर? अंगरेजी का शब्द कोश आपको हर घर में मिल जायेगा. लेकिन हिंदी शब्दों के मायने जानने के लिए कोश रखने की जहमत बहुत कम लोग उठाते हैं. ऑनलाइन शब्द कोश का इस्तेमाल गुनाह नहीं, पर हिंदी के मामले में इनकी विश्‍वसनीयता बहुत कम है. इंटरनेट पर उपलब्ध हिंदी के शब्द सही ही होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है. कंप्यूटर और इंटरनेट की दुनिया ने अभी कुछ वर्षों पहले ही हिंदी को अपनाया है. उसमें हिंदी में काम करने के लिए अंगरेजी जैसी सार्मथ्यता अब भी विकसित नहीं हो पायी है. वैसे जोखिम लेनेवालों की कमी नहीं है और वे गूगल की हिंदी का छाती ठोंक कर प्रयोग कर रहे हैं.(प्रभात खबर ,रांची)

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