Monday 13 August 2012

एक भूली-बिसरी त्रासदी


जापान पर हुए परमाणु हमले को याद कर रहे हैं शशांक द्विवेदी
दैनिक जागरण (राष्ट्रीय) में १२ /०८/२०१२ को प्रकाशित 
आज से 67 वर्ष पूर्व अमेरिकी परमाणु हमले में जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पूरी तरह तहस नहस हो गए थे। उस परमाणु हमले की विभीषिका आज भी रोंगटे खड़े कर देने वाली है, ऐसा लगता है कि अब अगर परमाणु युद्ध हुए तो पूरी दुनिया ही तबाह हो सकती है। हिरोशिमा और नागासाकी दुनिया केपहले ऐसे शहर हैं जहां अमेरिका ने परमाणु बम गिराया था। इस बमबारी के बाद हिरोशिमा में 1 लाख 40 हजार और नागासाकी में 74 हजार लोग मारे गए थे। जापान परमाणु हमले की त्रासदी झेलने वाला दुनिया का अकेला देश है। वास्तव में यह परमाणु हमला मानवता के नाम पर सबसे बड़ा कलंक है। इस परमाणु हमले ने इंसानी बर्बरता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे, बच्चों और औरतों की हजारों लाशें, शहरों की बर्बादी ने मानवता को शर्मशार कर दिया था। वास्तव में इस बर्बरता को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है। कई देशों द्वारा अमेरिका की इस हरकत पर कडे़ शब्दों में उसकी निंदा की गई थी। आज इस हमले को 67 वर्ष हो गए हैं, लेकिन जापान का यह हिस्सा आज भी उस हमले से प्रभावित है। आज भी यहां पैदा हो रही संतानों पर इस हमले का असर साफ देखा जा सकता है। जापान पर परमाणु हमले के 67 साल बीतने पर एक प्रश्न हमेशा उठता है कि अमेरिका ने परमाणु हमले क्यों किए जबकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उस समय तक उसकी जीत सुनिश्चित हो गई थी। वास्तव में अमेरिका ने परमाणु बम का इस्तेमाल वैश्विक राजनीति में अपना दबदबा कायम करने के लिए किया था, क्योंकि इस दौरान जापान की हार निश्चित हो गई थी, लेकिन फिर भी अमेरिका ने जानबूझकर परमाणु बम का इस्तेमाल किया। इस परमाणु हमले से छह महीने पहले तक अमेरिका ने जापान के 60 शहरों पर भीषण बमबारी की थी। जहां 67 साल पहले 1945 की गर्मियों के अंतिम महीने में पॉट्सडैम शांति सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इस बात का ऐलान किया कि अमेरिका के पास एक नया सुपर हथियार है। कहा जा रहा था कि हैरी ट्रूमन इस जुमले को कहकर सोवियत नेता स्टालिन की आंखों में डर और खौफ को देखना चाहते थे, लेकिन उनकी बातों से स्टालिन में कोई खौफ पैदा नहीं हुआ और इसके कुछ ही दिनों बाद हिरोशिमा और नागासाकी की त्रासदी ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया, जबकि इस परमाणु बमबारी का कोई सैन्य महत्व नहीं था। इन शहरों में हथियार बनाने वाले कारखाने मौजूद नहीं थे। न ही वहां कोई बड़ा सैन्य जमाव था। दरअसल अमेरिका रूस को यह दिखाना चाहता था कि युद्ध के बाद दुनिया के भाग्य का फैसला कौन करेगा और इसके लिए उसने लाखों जापानी नागरिकों के जीवन बलिदान कर दिए। अमेरिका ने सिर्फ दुनिया को अपनी धौंस दिखाने और वर्चस्व स्थापित करने के लिए ये हमले किए। जापान पर परमाणु हमला इंसानी इतिहास में परमाणु हथियारों का सबसे पहला प्रयोग था। अफसोस की बात यह है कि ये परमाणु बम सैन्य ठिकानों पर नहीं, बल्कि मासूम लोगों और कस्बों पर गिराए गए थे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रसिद्ध सर्जन लियोनिद रॉशाल ने कहा था-हर इंसान को अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार हिरोशिमा और नागासाकी की यात्रा करनी चाहिए ताकि इस त्रासदी की भयानकता को महसूस किया जा सके। इस घटना के 67 साल बीत जाने के बाद जापान ने आज आश्चर्यजनक रूप से प्रगति की है। जापान ने अपने आप को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा किया है। परमाणु हमले के बाद जापान ने जान लिया है कि शांति का रास्ता ही सबसे अच्छा और मानवीय है, लेकिन इस परमाणु हमले की विभीषिका को जानने के बाद भी अमेरिका सहित विश्व के अधिकांश देश परमाणु हथियारों की होड़ में शामिल हैं। हमें अब यह समझना होगा कि अगर तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो उसमें स्वाभाविक तौर पर परमाणु बम से हमले होंगे जिससे संपूर्ण मानवता को खतरा है। इसलिए सभी देशों को सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में परमाणु हमले न होने पाएं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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