आइआइटी और
केंद्रीय इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश को लेकर आम राय से जो फार्मूला बना है वह
देश में कोचिंग उद्योग को और भी ज्यादा बढ़ावा देने वाला है। प्रवेश परीक्षा के नए
फार्मूले में अगले साल से बोर्ड परीक्षाओं के 20 प्रतिशत
सर्वाधिक पर्सेटाइल अर्जित करने वाले छात्रों को आइआइटी प्रवेश परीक्षा के पहले
चरण यानी कॉमन इंट्रेंस एग्जाम में शामिल होने की अनुमति होगी। इसके बाद एकल
प्रवेश प्रक्रिया में शामिल परीक्षार्थियों में से डेढ़ लाख ऐसे छात्रों को चुना
जाएगा जो आइआइटी की अग्रिम परीक्षा में शामिल हो सकेंगे। इस नए फार्मूले से कोचिंग
मालिकों की पौ बारह हो गई है, क्योंकि अब छात्र तीन
परीक्षाओं यानी 12वीं में अच्छे नंबर लाने के लिए, इंजीनियरिंग की एकल प्रवेश प्रक्रिया की तैयारी के लिए और आइआइटी की
अग्रिम परीक्षा के लिए मजबूरी में कोचिंग करेंगे। ग्रामीण और सुविधाहीन छात्रों के
लिए मुश्किलें बहुत बढ़ेंगी, क्योंकि सरकारी स्कूलों की
स्थिति बहुत दयनीय है। सरकारी शिक्षा का बुनियादी ढांचा इतना कमजोर है कि वहां आप
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उम्मीद ही नहीं कर सकते। ऐसे में गरीब छात्र भी कोचिंग के
लिए मजबूर होंगे। निजी और सरकारी विद्यालयों के बीच एक बड़ी खाई है। सरकार का यह
फैसला गरीब विद्यार्थियों के खिलाफ जाता है। यह फैसला वर्तमान सत्र में आइआइटी की
तैयारी में जुटे छात्रों को भी हतोत्साहित करेगा और अब उन्हें त्रिस्तरीय परीक्षा
तैयारी करनी होगी जिस वजह से उन पर दबाव बढ़ेगा। शिक्षा व्यवस्था में सुधार और
कोचिंग से मुक्ति के लिए हमें देश में माध्यमिक शिक्षा के ढांचे को मजबूत करने की
आवश्यकता है। एक देश, एक प्रवेश परीक्षा प्रणाली को कारगर
बनाने के लिए पहले देश भर में 12वीं में एक समान पाठ्यक्रम
और मूल्यांकन की व्यवस्था करने की जरूरत है। देश में 44 राज्य
परीक्षा बोर्ड हैं और सबकी अलग मूल्यांकन प्रक्रिया है। पिछले दिनों देश भर में एक
जैसी माध्यमिक शिक्षा प्रदान किए जाने की दिशा में योजना आयोग की विशेषज्ञ समिति
ने 12वीं कक्षा तक समान पाठयक्रम लागू करने की सिफारिश की
है। 12वीं पंचवर्षीय योजना में शिक्षा की मौजूदा प्रणाली
गड़बड़ है। इसके पीछे विचार यह है कि स्टूडेंट्स किस ट्रेड में जाना चाहते हैं वह
दसवीं से ही तय हो जाए और तभी से उसी के अनुरूप पढ़ाई शुरू हो जाए। मेडिकल,
इंजीनियरिंग, लॉ आदि सभी व्यावसायिक विषयों को
इस व्यवस्था में लाने की कोशिश की जा रही है। इस व्यवस्था को 2017 तक लागू करने की तैयारी है। वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा को हर राज्य अपने
तरीके से चलाता है। देश भर में एक जैसी माध्यमिक शिक्षा प्रदान किए जाने की योजना
काफी अच्छी है, लेकिन यह कार्यरूप में क्रियान्वित हो पाती
है या नहीं यह तो भविष्य ही बताएगा? ग्रामीण विद्यालयों में
अब भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है तथा शिक्षकों की गुणवता में कमी है। ऐसे में
वहां के छात्रों को आइआइटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करना आसान नहीं होगा।
राच्य के बोर्डो के परिणाम हमेशा छात्रों की प्रतिभा को प्रतिबिंबित नहीं कर पाता
है। अगर निजी, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षा प्रणाली
एक समान हो तो यह फैसला समझ में आ सकता था, परंतु दुर्भाग्य
से देश में ऐसा नहीं है। देश की सरकारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो गई है कि देश में
स्कूल तो हैं पर योग्य शिक्ष नहीं हैं। ऐसे में किस तरह हम देश के नवनिर्माण की
कल्पना कर सकते हैं? भारत में 14 से 18
आयुवर्ग के समूह का अनुपात भारत की कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत है। राष्ट्रीय शैक्षिक सांख्यिकी प्रतिवेदन के अनुसार देश में
माध्यमिक विद्यालयों की संख्या 10,6084 तथा उच्च माध्यमिक विद्यालयों
की संख्या 53,619 है। इनमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों की कुल
संख्या लगभग चार करोड़ है। राष्ट्र के समग्र उत्थान के लिए पहले माध्यमिक शिक्षा
को मजबूत करना होगा, क्योंकि इसकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका
है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) इंजीनियरिंग की नई परीक्षा प्रणाली पर शशांक
द्विवेदी के विचार आइआइटी पर आम राय(दैनिक जागरण में १/०७/२०१२ को प्रकाशित )
Article link
No comments:
Post a Comment