पिछले दिनों कोलकाता में भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसियेशन के 100वें स्थापना दिवस
समारोह में एसोसियेशन के प्रधान अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री का भाषण
भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसियेशन के
100वें स्थापना दिवस समारोह में
एसोसियेशन के प्रधान अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा
दिये गए भाषण का विवरण इस प्रकार है:-
"मुझे भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसियेशन
के शताब्दी वर्ष के शुभारंभ की औपचारिक घोषणा करने के लिए इस समारोह में आकर बहुत
प्रसन्नता हो रही है।
भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसियेशन की
परिषद के सदस्यों ने जब पिछले वर्ष मुझे इस संस्था के शताब्दी वर्ष के समारोह
के लिए प्रधान अध्यक्ष चुना, तो मैं उनके इस भाव
प्रदर्शन से बहुत प्रभावित हुआ।
लेकिन मैं यह भी समझता था कि एक
साधारण व्यक्ति के नाते विज्ञान जैसे जटिल क्षेत्र में एसोसियेशन को नेतृत्व
प्रदान करने की मेरी योग्यता सीमित होगी। अंतत: मैंने पूरी विनम्रता और सच्चाई
के साथ यह सोचकर इस विशिष्ट एसोसियेशन की गतिविधियों में शामिल होने का फैसला
लिया कि इस भारी जिम्मेदारी को स्वीकार कर के मैं भारतीय विज्ञान के प्रति सरकार
के पूरे समर्थन और प्रतिबद्धता का संकेत दूंगा, जबकि वह नवीनीकरण के एक बहुत ही कठिन दशक से गुजर रही है।
इस अवसर पर मैं कलकत्ता विश्व
विद्यालय के इतिहास प्रसिद्ध कुलपति श्री आशुतोष मुखर्जी के शब्दों को दोहराना
चाहूंगा। उन्होंने एक बार कहा था -
"......यहां तक कि कभी-कभी
सजग सरकारों को भी सार्वजनिक धन में विज्ञान के हिस्से की पूरी दावेदारी के बारे
में याद दिलाने की आवश्यकता पड़ती है।"
यह बहुत ही उपयुक्त है कि हम शताब्दी
वर्ष के समारोह के लिए कलकत्ता विश्व विद्यालय के प्रतिष्ठित परिसर में एकत्र
हुए हैं। इसी स्थान पर भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसियेशन की श्री आशुतोष मुखर्जी
के नेतृत्व में शुरूआत हुई थी। कई नज़रियों से भारत में आधुनिक ज्ञान का पोषण इसी
नगर में हुआ। मैं शिक्षा के माहौल को सुदृढ़ता प्रदान करने और देश को कई
प्रतिभाशाली वैज्ञानिक, गणितशास्त्री और अर्थशास्त्री देने
के लिए कोलकाता नगर को बधाई देता हूं, जिनमें से कई नोबल पुरस्कार विजेता हैं।
इससे पहले आज मुझे बोस संस्थान के
संयुक्त परिसर की आधारशिला रखने का सुअवसर मिला। इस संस्थान का नाम पिछली शताब्दी
के महान भारतीय वैज्ञानिकों में से एक जगदीश चन्द्र बोस के नाम पर रखा गया है।
आधुनिक भारतीय विज्ञान के इन संस्थापकों
ने औपनिवेशिक पराधीनता के बोझ को वैज्ञानिक उत्कृष्टता के रास्ते के आड़े नहीं
आने दिया। उन्होंने अपनी सोच, हिम्मत और देश
भक्ति से भरपूर उत्साह के साथ अपनी उत्कृष्ट वैज्ञानिक प्रतिभाओं से भारतीय
विज्ञान के गौरवमय अध्याय को लिखा।
मेरा प्रस्ताव है कि जनवरी, 2013 में कोलकाता में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के तकनीकी कार्यक्रम श्री
आशुतोष के सम्मान में एक विशेष व्याख्यान के साथ शुरू हो, जो उस राष्ट्रीय विज्ञान आंदोलन के मूर्त रूप थे, जिसकी 100 वर्ष पहले शुरूआत हुई थी।
भारतीय विज्ञान कांग्रेस का इस वर्ष
का भाव-विषय यानी थीम है "भारत का भविष्य संवारने में विज्ञान की
भूमिका"। यह ऐसी थीम है, जो आज से 100 वर्ष पहले जब एसोसियेशन की स्थापना हुई थी, तब भी यही थीम रही होगी।
हर पीढ़ी अपने समय की जटिल समस्याओं
से जूझते हुए सोचती है कि वह आगे आने वाली पीढ़ी के सामने भारत का क्या स्वरूप
और विशिष्टता प्रस्तुत करे।
इस बारे में हम सभी सहमत हैं कि हम
चाहते हैं कि भविष्य का भारत ऐसा हो, जिसमें प्रत्येक नागरिक भोजन, स्वच्छ पानी और आवास की अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सके तथा
वह शिक्षित और हुनरमंद हों, ताकि वह न केवल अपनी रोजी –रोटी कमा सके, बल्कि विश्व की सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक उपलब्धियों का लाभ उठा सके और स्वयं को समृद्ध
कर सके।
हमारे विकास की यात्रा में कई शानदार
वैज्ञानिक उपलब्धियां हैं, चाहे वे परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में
हों या अंतरिक्ष, कृषि अथवा सूचना प्रौद्योगिकी के
क्षेत्र में हों। भविष्य में विज्ञान की जिम्मेदारी बढ़ेगी ही। हमारी समस्याएँ
बहुत बड़ी हैं और उनके लिए वैज्ञानिक समाधान की आवश्यकता है। हमें अपने विशाल
बौद्धिक संसाधनों से विकास के ऐसे नये रास्ते खोजने होंगे, जो उचित तरीके से हमारे सीमित प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर सकें।
लेकिन विज्ञान को और बड़ी भूमिका
निभानी है। हाल के वर्षों में मैंने देखा है कि ऐसे विचारों के प्रति, जो पौराणिक परम्पराओं के विरोधाभासी हैं, लोगों में असंतोष और असहिष्णुता बढ़ रही है। जहां विचारों में अंतर
होता है, लगता है, हम उसे युक्ति संगत तरीके से सुलझाने की योग्यता को खोते जा रहे
हैं। सार्वजनिक बहस का स्थान अक्सर सनसनी ले लेती है। मैं कई बार भय महसूस करता
हूं कि बढ़ती संकीर्ण मानसिकता से कहीं हमारे युवाओं की सृजनात्मक, प्रगतिशील और कल्पनाशील वृत्तियां प्रभावित न हो जाएं।
विभिन्न दृष्टिकोणों, प्रतिरूपों और सांस्कृतिक मतभेदों को स्वीकार करते हुए मेल-मिलाप
को बढ़ाने और सामाजिक सौहार्द को बनाए रखने की हमारी सभ्यता की समृद्ध परम्परा
रही है। हमें वैज्ञानिक सोच के प्रचार के जरिए और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के
सही अर्थ को समझते हुए इन वृत्तियों को मजबूत बनाना चाहिए।
मैं वैज्ञानिक समुदाय की दिग्गज
हस्तियों से आग्रह करूंगा कि वे देश के सामने मौजूद मसलों पर युक्तिसंगत और सही
जानकारी पर आधारित बहस में और ज्यादा प्रभावी योगदान दे। हमारे वैज्ञानिकों की
राय महत्वपूर्ण है और उसे सुना जाना चाहिए। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि हमने
इस शताब्दी वर्ष को भारत में विज्ञान वर्ष घोषित किया है। हम सभी को इसे सफल
बनाने के लिए कार्य करना चाहिए।
मैं यहां उपस्थित प्रतिष्ठित जनों को
यह बताना चाहूंगा कि हमारी सरकार ने भारतीय विज्ञान में इतना निवेश किया है, जितना पहले कभी नहीं हुआ। कई वर्षों तक हमारे बड़े वैज्ञानिक और
तकनीकी ढांचों की क्षमताओं में वृद्धि नहीं हुई थी। हमने विश्व स्तरीय संस्थाओं
का निर्माण किया और उत्कृष्टता केन्द्र बनाए, जिससे नये ज्ञान का आविर्भाव हुआ है। लेकिन हमने अपनी विकास
प्रक्रियाओं में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उतना इस्तेमाल नहीं किया है, जितना हमें करना चाहिए था। हमने स्थानीय क्षमताओं को नहीं बढ़ाया, जहां इस ज्ञान का इस्तेमाल करके विकेन्द्रीकृत तरीके से विकास की
समस्याओं के सार्थक हल निकल सकते थे।
मेरा विश्वास है कि हमारी सरकार के
प्रयासों से शिक्षा के बुनियादी ढांचे का जो विशाल विस्तार हुआ है, उससे आधुनिक ज्ञान पर आधारित हमारी अर्थव्यवस्था के विकास में और
उससे भी अधिक समाज के निर्माण में सहायता मिलेगी। लेकिन इसके लिए हमें कई
चुनौतियों से निपटना है, जैसे पर्याप्त संख्या में योग्य
शिक्षक तैयार करना, आधुनिक पाठ्यक्रम और शिक्षण तरीके
तैयार करना तथा समुचित भौतिक बुनियादी ढांचों का निर्माण करना आदि। लेकिन यह बिल्कुल
सही है कि भारतीय विज्ञान के लिए हमारी महत्वाकांक्षाओं की दिशा में हम बहुत बड़ा
कदम उठा चुके हैं।
मुझे उम्मीद है कि हमारी सभी शिक्षा
संस्थाएं और वैज्ञानिक प्रतिष्ठान देश में विज्ञान की महत्ता बढ़ाने के लिए इस
अवसर पर उचित कार्यक्रम करेंगे।
वर्ष भर में हमें उम्मीद है कि एक नई
विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति तैयार हो जाएगी, जिससे देश में और विश्व में तेजी से बदलते वैज्ञानिक माहौल को ध्यान
में रखते हुए वर्ष 2003 की हमारी मौजूदा नीति को नया रूप
मिलेगा। अन्य देशों में विज्ञान के क्षेत्र में क्या–क्या हो रहा है और भारतीय लोगों की आकांक्षाएं क्या हैं, उसे ध्यान में रखते हुए हमें उसके साथ चलना होगा।
शताब्दी वर्ष में जो कार्यक्रम होने
हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि अगला
वर्ष बहुत ही व्यस्त वर्ष होगा। कोलकाता में वार्षिक अधिवेशन के अलावा देश के
उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में तीन क्षेत्रीय
विज्ञान कांग्रेस सम्मेलन होंगे।
हम एक ऐसा अनुसंधानपूर्ण प्रकाशन भी
तैयार करेंगे, जिनमें पिछले 100 वर्षों के दौरान भारतीय विज्ञान के क्षेत्र में हुई 100 अत्यंत प्रभावशाली खोजों और आविष्कारों का विवरण होगा। भारतीय
विज्ञान के योगदान को दुनिया के सामने रखने के लिए हम साइबर स्पेस में एक हॉल ऑफ
फेम की भी शुरूआत करेंगे।
मेरे विचार से हम ऐसे कार्यक्रमों पर
ध्यान केन्द्रित करके सही कर रहे हैं, जिससे कि हम विज्ञान के प्रति युवाओं को आकर्षित कर सकें। शताब्दी
वर्ष के दौरान युवाओं के लिए एक विज्ञान अकादमी खोलने के बारे में भी कुछ विचार
हुआ है, इस बारे में उचित रूप से विचार –विमर्श करने के बाद हमें इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ना चाहिए।
अगले वर्ष कोलकाता में भारतीय विज्ञान
कांग्रेस के अधिवेशन में हम 45 वर्ष से कम आयु के
प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों को आमंत्रित करेंगे, जो युवाओं के लिए व्याख्यान देंगे। हम युवा वैज्ञानिकों के लिए
कोलकाता में एक विशेष अधिवेशन आयोजित करेंगे। युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए
एसोसियेशन, आधुनिक विज्ञान के इतिहास को उजागर
करते हुए प्रेरणा दायक वीडियो वृत्त चित्र तैयार करेगी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी
मंत्रालय तथा भारतीय उद्योग परिसंघ के बीच सरकारी – निजी क्षेत्र भागीदारी के अंतर्गत हर साल डॉक्ट्रेट स्तर के
अनुसंधान के लिए 100 फेलोशिप देने की विशेष योजना शुरू की
जाएगी, जो इसी वर्ष शुरू हो जाएगी। अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर और अपने क्षेत्र में विज्ञान को बढ़ावा देने की हमारी जिम्मेदारी को ध्यान
में रखते हुए हमारा प्रस्ताव एक योजना शुरू करने का है, जिसके अंतर्गत पड़ोसी देशों से 25 युवा वैज्ञानिकों को भारत में डॉक्ट्रेट स्तर के अनुसंधान के लिए
आमंत्रित किया जाएगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग इस संबंध में उचित प्रबंध
करेगा।
मुझे इस बात की खुशी है कि शताब्दी
वर्ष के अवसर पर अतिरिक्त भवन ढांचा खड़ा करने और 150 करोड़ रुपये की निधि के लिए धन इकट्ठा करने के अभियान के जरिए
भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसियेशन को सक्रिय बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
मुझे उम्मीद है कि वैज्ञानिक समुदाय
शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों का इस्तेमाल इस उद्देश्य के लिए करेगा कि किस तरह
से हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति बनाएं, जिससे हमारे देश के विकास में विज्ञान को अग्रणी भूमिका मिले। आशा है
अब से सात महीने बाद जब हम भारतीय विज्ञान कांग्रेस के सम्मेलन के लिए इकट्ठे
होंगे, हम अपने विचारों को ऐसा ठोस रूप दे
पाएंगे, जिससे हमारे देश के भविष्य का मार्ग
सुनिश्चित हो सकेगा।
अंत में मैं पंडित नेहरू के शब्दों
को दोहराना चाहूंगा, जो उन्होंने 1938 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अधिवेशन में कहे थे।
"..... आज से भी ज्यादा
भविष्य उनका अच्छा होगा, जो विज्ञान के साथ मिलकर
चलेंगे।"
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