सफलता का जलवा जबरदस्त है। मशहूर अमेरिकी अभिनेत्री शर्ली
जोन्स के मुताबिक ऑस्कर अवार्ड मिलने के बाद फिल्मों में उनका मेहनताना
दोगुना हो गया। दोस्त तीन गुना हो गए और स्कूल में उनके बच्चे ज्यादा
लोकप्रिय हो गए। आज सारी दुनिया इस समय मार्क जकरबर्ग की सफलता से अभिभूत
हैं। टेक्नोलॉजी कंपनियों के अमेरिकी शेयर बाजार नैस्डेक पर पहले ही दिन
फेसबुक का 105 अरब डॉलर से ज्यादा की कंपनी के रूप में उभरना वाकई चौंकाने
वाली सफलता है।
दरअसल फेसबुक की इस सफलता में 21वीं सदी में बदली
दुनिया की कई सफलताओं की झलक है। यह एक विचार की सफलता है, जिसमें सोशल
मीडिया ने सारी दुनिया को एक दूसरे से मिलने और खुलकर बात करने का मंच दिया
और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उच्चतम प्रतिमान स्थापित किए। जकरबर्ग की
सफलता नवाचार की सफलता है, जिसने लोगों को जोड़ने, पसंद करने, नापंसद करने
की आजादी दी। भौगोलिक सीमाओं से परे उन्हें अपने समुदाय और समाज को विकसित
करने का सीधा और सरल मंच दिया। कहा जाता है कि सफलता सरल है। वह कीजिए जो
सही है।
सही तरीका अपनाइए और काम सही समय पर कीजिए।
जकरबर्ग
भी 8 से 9 साल तक यही करते रहे। जकरबर्ग अपनी सफलता के मामले में लोगों तक
यह फलसफा पहुंचाने में कामयाब रहे हैं कि लोगों को साथ लेकर चलना ही
कामयाबी का नुस्खा है।
सफल उद्यमी हेनरी फोर्ड ने कहा है कि जो
व्यक्ति अपनी दक्षता और रचनात्मक कल्पना को यह देखने में इस्तेमाल करेगा कि
वह एक डॉलर के ऐवज में कितना ज्यादा दे सकता है, उसका सफल होना तय है।
सफलता उसका साथ नहीं देगी, जो सोचेगा कि उसे एक डॉलर के बदले कितना कम
देना पड़ेगा। कहा नहीं जा सकता कि जकरबर्ग ने फोर्ड की इस बात को सुना भी
है या नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि फेसबुक के बनने और सफल होने में उनकी
तरफ से ज्यादा से ज्यादा देने की नीयत साफ दिखाई देती है। मार्क जकरबर्ग
सोशल नेटवर्क्स की अवधारणा के जनक नहीं हैं, लेकिन वे इस आइडिया को बहुत
आगे और बहुत सरल तरीके से ले जाने में सफल हुए। साल 2004 में मायस्पेस एक
बेहद सफल सोशल नेटवर्कि ग वेबसाइट थी। 2005 में उसे मीडिया मुगल रुपर्ट
मडरेक ने 58 करोड़ डॉलर में खरीद लिया और धीरे-धीरे वे उसे एक मीडिया
साम्राज्य के रूप में तब्दील करने लगे। यह सालभर के भीतर इंटरनेट की दुनिया
की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किग वेबसाइट बन गई, लेकिन जैसे-जैसे उसका
स्वरूप बदलने लगा और विज्ञापनों, वीडियो, गेम्स, ऐप्लिकेशंस और इंस्टेंट
मैसेजिंग जैसी खूबियों की भरमार होने लगी, लोग उससे दूर होने लगे और फेसबुक
को अपनाने लगे। ऐसा क्यों हुआ इसका सीधा सा जवाब लोगों के पास नहीं था
लेकिन कालांतर में महसूस किया गया कि फेसबुक पर अपनी बात कहनासु नना और
दुनिया से जुड़ना ज्यादा आसान था। यानी सरलता ने फेसबुक को बड़ी सफलता
दिलाई।
फेबबुक जकरबर्ग की बड़ी और लंबी सोच का जादू है। इसकी ताकत
को भांपकर कई लोगों ने इसे खरीदने की कोशिश की। 2006 में याहू ने 1 अरब
डॉलर में फेसबुक को खरीदने की पेशकश की। फेसबुक का बोर्ड एक बार तैयार हो
गया, लेकिन बाद में जब याहू ने बोली घटाई तो जकरबर्ग ने खुद पर भरोसा किया
और फेसबुक को नहीं बेचा। जकरबर्ग ने इसे अपने तरीके से चलाया और पैसों की
खातिर दूसरों के आइडियाज इसमें दखल न दें, इसके लिए रूस,जर्मनी और हांककांग
के निवेशकों से पैसा जुटाया।
जकरबर्ग ने दोस्तों के साथ मिलकर
फेसबुक को बनाने और चलाने के लिए परंपराएं तोड़ीं। कहा जाता है कि उनके
ऑफिस में केबिन नहीं है पर दांव लगाया, लेकिन सुपर हीरो बनने की जगह गूगल,
लिंक्ड इन जैसी दूसरी कंपनियों से शीर्ष पदों के लिए अच्छे टैलेंट को चुना
और सलाहकारों की एक फौज खड़ी की, जिसमें मीडिया और आईटी उद्योग की
जानी-मानी हस्तियां हैं। जकरबर्ग के साथ काम कर चुके लोग कई जगह कह चुके
हैं कि उनमें कोई बड़बोलापन नहीं है और वे अपने बारे में ज्यादा बात नहीं
करते। उन्हें फेसबुक की कीमत का अंदाज है, लेकिन वे चैन से नहीं बैठते।
दरअसल, हर दिन उन्नति कर रही सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के विभिन्न घटक
ज्ञान आधारित नई वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में अपना योगदान दे रहे
हैं। टेलीकॉम सेक्टर और कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के सतत विकास ने नई
अर्थव्यवस्था पर आधारित उद्योगों को अद्यतन रखा है और ग्लोबल विलेज की
अवधारणा को आगे बढ़ाया है। इस नई दुनिया ने भौगोलिक सीमाओं की अहमियत को
काफी कम किया है। आबादी की गणना को लेकर नए विचार सामने आ रहे हैं। भारत और
चीन के बाद फेसबुक को तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाला क्षेत्र बताया जा रहा
है। जकरबर्ग शेयर बाजार में कीर्तिमान बना चुके हैं। यहां वे सूचकांक को
कितना ऊपर ले जाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन बतौर आइडिया फेसबुक सफल
है। सफलता फेसबुक की मंजिल नहीं एक यात्रा है। उम्मीद करें यह जारी रहेगी। सफलता की नई मिसाल फेसबुक सफल उद्यमी
हेनरी फोर्ड ने कहा है कि जो व्यक्ति अपनी दक्षता और रचनात्मक कल्पना को यह
देखने में इस्तेमाल करेगा कि वह एक डॉलर के ऐवज में कितना ज्यादा दे सकता
है, उसका सफल होना तय है। सफलता उसका साथ नहीं देगी, जो सोचेगा कि उसे एक
डॉलर के बदले कितना कम देना पड़ेगा।लेखक -जी रामचंद्रन
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