Sunday 6 May 2012

उर्जा संकट पर विशेष


उर्जा किसी देश के विकास के ईंजन का ईंधन है. प्रति व्यक्ति औसत उर्जा खपत वहाँ के जीवन स्तर की सूचक होती है. इस दृष्टि से दुनियाँ के देशों मे भारत का स्थान काफ़ी नीचे है . देश की आबादी बढ़ रही है. बढ़ती आबादी के उपयोग के लिए और विकास को गति देने के लिए हमारी उर्जा की मांग भी बढ़ रही है
क्‍या आप उर्जा बचत में विश्‍वास रखते हैं ? या इसे महज़ एक नारा समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं ? हम में से कईयों का सोचना है कि यह हमारी नहीं ,सरकार की जरूरत है। बिजली की कमी हो रही है तो इसकी देखभाल बिजली बोर्ड करेगा ,हम क्‍यों करें ? कार्यालय से बाहर जाते समय वातानुकूलक यंत्र, पंखे, ट्‌यूबलाइट, संगणक यंत्र इत्‍यादि शुरू रहते हैं ,तो हमें इससे क्‍या लेनदेन ? बिल हमें थोड़े ना भरना है। या हम में से कई सोचते है कि हमारे अकेले के बचत करने से क्‍या होने वाला है ? हम यह सवाल भी अपने दिलो दिमाग में ला सकते है कि हमारे पास तो हमारी आवश्‍यकताओं से अधिक कुछ खास नहीं है ,क्‍यों हम अपने आप को नियंत्रित करें ? अपने देश को पूर्ण रूप से विकसित करने के लिए हमें अन्‍य विकसित देशों में जो कुछ हो रहा है उससे सीख लेने की आवश्‍यकता है। उर्जा बचत में हम सबका सहयोग अत्‍यंत आवश्‍यक है ? यदि उर्जा का उपयोग सोच समझ कर नहीं किया गया तो इसका भंडार जल्‍द ही समाप्‍त हो सकता है।
अपना भविष्‍य उज्‍जवल बनाए रखने के लिए वर्तमान परिस्‍थितियों में सभी तरह की ऊर्जाओं तथा इंधन की बचत अत्‍यंत ही आवश्‍यक है ,क्‍योंकि आज हम बचत करेंगे तो ही भविष्‍य सुविधाजनक रह पाएगा। आवश्‍यकतानुसार आज विद्युत की आपूर्ति में कमी तथा भारनियमन (लोडशेडिंग) होना एक आम बात हो गई है। हमें उन दिनों को भूल जाना होगा जब पूरे 24 घंटे सतत विद्युत आपूर्ति होती रहती थी । खंडित विद्युत पूर्ति और भारनियमन /लोडशेडिंग के समय में लगातार बढ़ोतरी होना इस बात की ओर इशारा करता है कि आज वाकई में विद्युत उर्जा की जितनी मांग है उतनी पूर्ति नहीं हो पा रही है। हमारे विद्युत उत्‍पादन केंद्र की उत्‍पादन क्षमता इतनी नही है कि बढ़ती हुई मांग की पूर्ति कर सकें। यह बात सिर्फ विद्युत के संबंध में ही नहीं ,बल्‍कि पेट्रोलियम पदार्थो के संबंध में भी लागू होती है। पेट्रोलियम पदार्थों की निरंतर बढ़ती हुई मांग तथा नित नई बढ़ती हुई कीमतें और पेट्रोल पंपों में बार-बार पेट्रोल समाप्‍त का बोर्ड दिखाई देना भविष्‍य में आने वाली समस्‍याओं का संकेत है। हमें निश्‍चित तौर पर इन मुद्‌दों की ओर ध्‍यान देना होगा क्‍योंकि उर्जा के भंडार प्रकृति में सीमित है और हमें संभलकर आवश्‍यकतानुसार इनका उपयोग करना अनिवार्य है । साथ ही उर्जा बचत के उपायों को शीघ्रतापूर्वक और सख्‍ती से अमल में लाए जाने की जरूरत है तथा प्रत्‍येक नागरिक को इसमें जुट जाना चाहिए । बचत चाहे छोटे स्‍तर पर क्‍यों न हो ,जरूर कारगर होगी क्‍योंकि बूंद-बूंद से ही सागर भरता है। आज हम संभल कर उर्जा के साधनों का इस्‍तेमाल करेंगे तो ही इनके भंडार भविष्‍य तक रह पाएंगे। कोशिश जमीन स्‍तर से की जाए तो आकाश छूने में समय नहीं लगेगा । बशर्ते देश का प्रत्‍येक नागरिक इस दिशा में जागरूक हो तथा हर संभव उर्जा बचत करें तथा औरों को भी इसका महत्‍व बताएं।


 ऊर्जा हमारे जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है, चाहे वह किसी भी रूप में हो। भोजन, प्रकाश, यातायात, आवास, स्वास्थ्य की मूलभूत आवश्यकताओं के साथ मनोरंजन, दूरसंचार, सुख संसाधन ,पर्यटन जैसी आवश्यकताओं में भी ऊर्जा के विभिन्न रूपों ने हमारी जीवन शैली में अनिवार्य स्थान बना लिया है। इस सब में भी बिजली उर्जा वह प्रकार है जो सबसे सुगमता से हर कहीं  सदैव हमारी सुविधा हेतु सुलभ  है .इधर आपने बटन दबाया और फट से बिजली हमारी सेवा में हाजिर हुई . यही कारण है कि अन्य उर्जा विकल्पों को बिजली में बदलकर ही उपभोग किया जाता है .
     वैश्वीकरण के दौर में आज हमारी जीवन शैली में तेजी से बदलाव हो रहे हैं .यह बदलाव हम इस रूप में भी देख सकते हैं कि जो काम दिन के उजाले में सरलता से हो सकते हैं उन्हें भी हम देर रात तक अतिरिक्त प्रकाश व्यवस्था करके करते हैं, उदाहरण के लिये क्रिकेट का खेल , विभिन्न सामाजिक समारोह आदि । नियमित व संतुलित दिनचर्या छोड़कर हम ऐसा जीवन जीने के आदी होते जा रहे हैं जो हमें अस्पताल, एक्सरे, ईसीजी, आईसीयू के माध्यम से भयंकर उर्जा व्यय में उलझा रहा है। हमारी दिनचर्या दिन प्रतिदिन अधिकाधिक ऊर्जा की मांग करती जा रही है।  विकास का जो माडल हम अपनाते जा रहे हैं उस दृष्टि से अगली प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में हमें ऊर्जा उत्पादन को लगभग दुगना करते जाना होगा । हमारी ऊर्जा खपत बढ़ती जा रही है। इस प्रकार ऊर्जा की मांग व पूर्ति में जो अंतर है वह कभी  कम होगा ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता .
     पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन निश्चित हैं। आज प्रकृति के मिट्टी, पत्थर, पानी, खनिज, धातु को भौतिक सुख साधनों में बदलकर उससे विकसित होने का सपना देखा जा रहा है, जिससे अंधाधुंध ऊर्जा खपत बढ़ रही है। इस कथित 'विकास' में इस बात की अनदेखी हो रही है कि प्रकृति में पदार्थ की मात्रा निश्चित है, जो बढ़ाई नहीं जा सकती। फिर भी पदार्थ का रूप बदलकर, सुख साधनों में परिवर्तन करके, खपत बढ़ाकर विकास का रंगीन सपना देखा जा रहा है। इस विकास के चलते संसाधनों का संकट, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, पानी की कमी , उर्जा की व्यापक कमी आदि मुश्किलें सिर पर मंडरा रही हैं।
                        प्रकृति पर जितना अधिकार हमारा है उतना ही हमारी भावी पीढ़ीयों का भी , जब हम अपने पूर्वजों के लगाये वृक्षों के फल खाते हैं , उनकी संजोई धरोहर का उपभोग करते हैं तो हमारा नैतिक दायित्व है कि हम भविष्य के लिये भी नैसर्गिक संसाधनो को सुरक्षित छोड़ जायें ,कम से कम अपने निहित स्वार्थों हेतु उनका दुरुपयोग तो न करें . अन्यथा भावी पीढ़ी और प्रकृति हमें कभी माफ नहीं करेगी .
                        आज जरूरत है कि हम चिंतन करें कि बिजली और उर्जा की अधिकाधिक बचत किस तरह की जावे ? किसी न किसी को तो , कभी न कभी प्रारंभ करना ही होगा , तो क्यों न आज से ही हम अपने व्यक्तिगत जीवन में व अपने परिवेश में बिजली पैट्रोल , गैस , उर्जा की बचत करने का एक महान संकल्प लेकर एक नव चिंतन को क्रियान्वित करने की शुभ शुरुवात करें ? एक आदमी बहुत कुछ कर सकता है. बाबा आमटे मेरे आपके समान ही एक व्यक्ति थे. मदर टेरेसा एक व्यक्ति मात्र थीं थीं. महात्मा  गांधी भी एक व्यक्ति ही थे. मैं आप शायद वहां तक न पहुंच पायें, लेकिन यह चुप बैठने के लिये पर्याप्त बहाना नहीं है. उर्जा संरक्षण , बिजली का मितव्ययी उपयोग समय का तकाजा है जिसे हमें स्वीकार करना ही होगा .  

 देश में यात्री कारों पर उर्जा बचत के मानक लागू करने के विषय में उद्योग के साथ सहमति बन गयी है और सरकार एक पखवाड़े में कारों पर स्टार रेटिंग की व्यवस्था लागू करने की घोषणा कर सकती है. स्टार रेटिंग के तहत वाहनों पर लगे स्टार के निशान से उसमें उर्जा बचत की क्षमता का अंदाज लगाया जा सकेगा.
स्टार रेटिंग के नियमन और निर्धारण के लिए जिम्मेदार बिजली मंत्रालय के अधीन आने वाले उर्जा कार्यकुशलता ब्यूरो बीईई के महानिदेशक अजय माथुर के अनुसार कारों को स्टार रेटिंग के दायरे में लाने के लिये बीईई, सियाम तथा सडक परिवहन राजमार्ग मंत्रालय के बीच सहमति बन गयी है. शुरू में यह योजना स्वैच्छिक होगी लेकिन अप्रैल 2012 से वाहन निर्माताओं के लिये यह अनिवार्य हो जाएगा.’’
उल्लेखनीय है कि वाहन निर्माताओं का संगठन सोसाइटी आफ आटोमोबाइल मैनुफैक्चर्स सियामस्टार रेटिंग लागू करने के प्रस्ताव का विरोध कर रहा था. बीईई का स्टार रेटिंग कार्यक्रम उर्जा बचाने का एक प्रमुख कार्यक्रम है.
वर्ष 2006 में शुरू स्टार रेटिंग कार्यक्रम के तहत एक से पांच तक स्टार के निशान दिये जाते हैं. जिन उपकरणों पर जितना अधिक स्टार होगा, वह उतना ही कम बिजली खपत करता है. इस स्कीम के दायरे में फिलहाल फ्रीज, कलर टेलीविजन, ट्यूबलाइट, एयर कंडीशनर, ट्रांसफार्मर आदि शामिल हैं.
फिलहाल उपभोक्ताओं के पास ईंधन खपत के बारे में वाहनों के मूल्यांकन को लेकर कोई आधार नहीं है. ऐसे में इस योजना से वे यह जान सकेंगे कि कौन सा वाहन कितना ईंधन खपत करेगा और वे बेहतर विकल्प का चयन कर सकेंगे. विनिर्मातओं को ईंधन खपत के बारे में लेबलिंग के लिये विशेष प्राधिकरण के पास आवेदन देने होंगे.
लेबलिंग कार्यक्रम को अधिसूचित बिजली मंत्रालय करेगा और इससे जुड़े नियमन बीईई अधिसूचित करेगा. बीईई के अनुसार 2011 का लेबलिंग कार्यक्रम 2009-10 में में बिकी कारों में ईंधन खपत के आंकडों पर आधारित होगा और यह 2014-15 तक लागू होगा. 2013-14 के आंकडों के आधार पर इसे 2014-15 में फिर से नया रूप दिया जाएगा जो 2015-16 से 2018-19 तक लागू होगा.
बीईई का स्टार रेटिंग कार्यक्रम उर्जा बचाने का एक प्रमुख कार्यक्रम है. वर्ष 2006 में शुरू स्टार रेटिंग के दायरे में फिलहाल फ्रीज, कलर टेलीविजन, ट्यूबलाइट, एयर कंडीशनर, ट्रांसफार्मर आदि शामिल हैं. 11वीं योजना में उर्जा संरक्षण उपायों के जरिये 10,000 मेगावाट बिजली बचत का लक्ष्य है. बीईई के अनुसार अप्रैल 2007 से लेकर मार्च 2010 तक 4995.97 मेगावाट बिजली की बचत की जा चुकी है.
2010-11 में 2600 मेगावाट बिजली बचत का लक्ष्य था जिसमें से दिसंबर 2010 तक 2482.4 मेगावाट का लक्ष्य हासिल किया जा चुका है. बिजली मंत्रालय का अनुमान है कि उर्जा संरक्षण के विभिन्न उपायों से कुल बिजली उत्पादन क्षमता 25,000 मेगावाट का इजाफा किया जा सकता है.

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