Saturday 18 June 2022

केपलर का जीवन और थर्ड लॉ ऑफ प्लैनेटरी मोशन

सुशोभित

वर्ष 1619 में जब केपलर ने अपना सुप्रसिद्ध 'थर्ड लॉ ऑफ़ प्लैनेटरी मोशन' खोजा, तो इसके महज़ आठ दिन बाद यूरोप में तीस वर्षीय युद्ध छिड़ गया और केपलर का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। केपलर को यह समझने का अवसर ही न मिला कि उसने क्या खोज निकाला है। उसके आसपास की दुनिया तो इन चीज़ों के बारे में उससे भी कम जानती और समझती थी। तब किसी के भी पास ये पहचानने का परिप्रेक्ष्य नहीं था कि केपलर इतिहास के किस अहम मोड़ पर खड़ा है। उसने ग्रहों के अपनी कक्षाओं में गतिपथ का ठीक-ठीक अनुमान लगा लिया था और उस महान बल की अनुगूँजें उसे सुनाई देने लगी थीं, जिसे उसने भूल से मैग्नेटिज़्म कहा, किंतु जो वास्तव में यूनिवर्सल लॉ ऑफ़ ग्रैविटेशन था। बाद में न्यूटन ने इस बल की समूची रूपरेखा खींची और भौतिकी का पुरोधा बन गया। किन्तु अगर केपलर को अवसर मिला होता तो वह उस दिशा में चलने वाला प्रथम मनुष्य बना होता

केपलर का जीवन त्रासदियों और विपदाओं से भरा रहा। यह विडम्बना ही है कि वह अंतरिक्ष में सुसंगति की तलाश करता रहा, जबकि उसके स्वयं के जीवन में इसका अभाव था। केपलर हार्मनी की भाषा में सोचता था। वास्तव में, जिस पुस्तक में उसने 'थर्ड लॉ ऑफ़ प्लैनेटरी मोशन' लिखा, वह मूलत: संगीत के नियमों पर आधारित पुस्तक थी। उसका शीर्षक था- 'द हार्मनी ऑफ़ वर्ल्ड्स'। उसका थर्ड लॉ भी इसी कारण से हार्मनिक लॉ कहलाया है। सदियों बाद जब कार्ल सैगन ने तेरह कड़ियों में अपना 'कॉसमॉस' धारावाहिक प्रस्तुत किया, तो उसमें एक पूरा एपिसोड उसने केपलर को समर्पित किया। इस एपिसोड का शीर्षक भी 'द हार्मनी ऑफ़ वर्ल्ड्स' ही था। यह सम्मान उसने गैलीलियो, न्यूटन और आइंश्टाइन को भी नहीं दिया था। कार्ल सैगन ने केपलर को पहला एस्ट्रोफ़िज़िसिस्ट क़रार दिया था

केपलर उस सदी में जी रहा था, जब चीज़ों को थियोलॉजी से पृथक नहीं किया जा सकता था- नेचरल साइंसेस को भी नहीं। यही प्रभाव न्यूटन पर भी दिखाई देता रहा है। केपलर और न्यूटन दोनों के लिए प्रकृति के रहस्यों की खोज ईश्वर के स्वरूप-निर्धारण की एक रीति थी। ग्रहों की गतियों और गुरुत्वाकर्षण में वे ईश्वर का करस्पर्श देखते थे। गणित, संगीत, ज्यामिति और भौतिकी में जो निरंतरता की लय थी, वह ईश्वर जैसी किसी महाशक्ति का ही कौशल हो सकता था। विज्ञान उनके लिए ईश्वर के मन को पढ़ने की युक्ति थी। अकसर ऐसा भी होता कि उनके लिए ईश्वर और भौतिकी एक-दूसरे के पर्याय बन जाते। केपलर ने कहा था- "ज्यामिति सृष्टि के सृजन से भी पूर्व उपस्थित थी, वह ईश्वर की सहभागी थी, उसी ने ईश्वर को सृष्टि के निर्माण का एक मॉडल दिया।" और उसके बाद कुछ देर ठहरकर केपलर ने इसमें आगे जोड़ा- "ज्यामिति स्वयं ईश्वर है!

वास्तव में जब केपलर ने कोपर्निकस के हेलियोसेंट्रिक विज़न को अंगीकार किया तो इसके पीछे भी उसकी धार्मिक आस्था ही काम कर रही थी। तब तक टोलेमी का जियोसेंट्रिक दृष्टिकोण ही स्वीकृत था, जो कहता था कि पृथ्वी सौरमण्डल के केंद्र में है और सूर्य उसकी परिक्रमा करता है। किन्तु केपलर सूर्य को ईश्वर की छवि में देखता था, क्योंकि उसका ईश्वर न केवल एक स्रष्टा था, बल्कि वह सृष्टि में निरंतर सक्रिय रहने वाली ऊर्जा भी था। यही कारण है कि जब कोपर्निकस ने कहा कि वास्तव में सूर्य सौरमण्डल के केंद्र में है और पृथ्वी सहित सभी ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं तो केपलर की ख़ुशी का पारावार न रहा। उसे ऐसा लगा, जैसे सूर्य को नहीं, बल्कि सृष्टि के ईश्वर को ही उसके यथेष्ट मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया गया हो

केपलर में धर्म और विज्ञान का यह जो द्वैत था, वह प्रकारान्तर से एस्ट्रोलॉजी और एस्ट्रोनॉमी का युगपत् भी था। उसने ज्योतिष और खगोलविद्या के बीच एक संधिरेखा खोज ली थी, किन्तु वह कब धीरे-धीरे खगोलभौतिकी में बदल गई, उसे पता ही न चला। इसका कारण यह था कि केपलर के भीतर गूँजने वाली चेतना अपने स्वरूप में वैज्ञानिक थी और प्रत्यक्ष का प्रमाण उसे जिस लोक में ले गया, वह उसी की ओर नि:शंक यात्रा करता चला गया। उसने अपनी मान्यताओं का परीक्षण किया और उन्हें सही नहीं पाने पर उन्हें त्याग भी दिया। प्लैटोनिक सॉलिड्स वाले अपने काम को उसने इसी तरह से कालान्तर में तिलांजलि दे दी थी।

1609 में अपनी किताब 'एस्त्रोनोमिया नोवा' यानी 'न्यू एस्ट्रोनॉमी' में उसने यह खोज निकाला कि ग्रह सर्कुलर के बजाय नॉन-सर्कुलर ओर्बिट यानी एलिप्सेस में सूर्य की परिक्रमा करते हैं और जब वे सूर्य से दूर होते हैं तो उनकी गति धीमी पड़ जाती है, निकट आते ही गति तीव्र हो जाती है। वो कौन-सा बल था, जो ग्रहों को सूर्य की ओर खींचता था? केपलर की जीभ की नोक पर इस प्रश्न का उत्तर रखा था- यूनिवर्सल ग्रैविटेशन। लेकिन इसका विवेचन न्यूटन की ही नियति में बदा था, केपलर सृष्टि के रहस्य के प्रवेशद्वार पर जाकर ठिठक गया था।


साल 1577 का ग्रेट कॉमेट देखकर सम्मोहित हो जाने वाला, गैलीलियो से ख़तो-किताबत करने वाला, टाइचो ब्राहे का सहचर, परिजनों के लिए बेबूझ और सुदूर, मित्रों के लिए मूक और अपने ही स्कूली-विद्यार्थियों के उपहास का पात्र रहा यह व्यक्ति जीवन में बार-बार अपनी धुरी से अपदस्थ होता रहा, और उसके अंतिम युद्धग्रस्त वर्ष अराजकता और दु:खों के बीच बीते। उसकी क़ब्र तक सलामत न रही। केवल उसका शोकलेख शेष रह गया है, जो उसने स्वयं अपने लिए लिखा था-

"मैं आकाश को मापता था, अब धरती पर छायाएँ गिनता हूँ। मेरी आत्मा दूसरे लोक से आई थी, पर मेरी देह की परछाई सदियों तक अब यहीं सोती रहेगी।"



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