चंद्रभूषण
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध चल रहा था तो साथ में इन दोनों खेमों के बीच चांद पर पहुंचने की होड़ भी चल रही थी। अमेरिका ने 1969 में आसमानी लड़ाई जीती, फिर बीस साल बाद जमीनी शीतयुद्ध भी जीत लिया। जल्द ही सोवियत संघ बिखर गया और उसकी गुठली की तरह जो रूस बचा उसने दोनों खेमों के बीच सहयोग के सबूत की तरह सन 2000 में अमेरिका से मिलकर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) चला दिया। लेकिन दुनिया की बड़ी ताकतों में रूस का नाम अब कभी भूले-भटके ही लिया जाता है।
रूस पर अपनी रही-सही निर्भरता भी अमेरिका ने पिछले साल प्राइवेट कंपनी स्पेस एक्स के जरिये आईएसएस तक सप्लाई पहुंचाकर खत्म कर ली। 2024 में आईएसएस अपनी वैज्ञानिक जिम्मेदारियों से रिटायर हो जाएगा और सुपर रिच टूरिस्टों के लिए आसमानी होटल का काम करने लगेगा। अगला स्पेस स्टेशन बना भी तो धरती के इर्दगिर्द नहीं बनेगा, इतना तय है। काफी संभावना है कि वह चांद पर या उसकी कक्षा में बनेगा और उसका उपयोग चंद्रमा से खनिज लाने या वहां से हासिल सूचनाओं के कारोबार में किया जाएगा।
इसके लिए अमेरिका ने ब्रिटेन, कनाडा, इटली, जापान, संयुक्त अरब अमीरात और लग्जेमबर्ग के साथ मिलकर 2017 में आर्टेमिस प्रोग्राम शुरू किया था और अभी जवाबी तौर पर चीन और रूस ने मिलकर चंद्रमा के उपयोग की लगभग वैसी ही योजना बनाई है। ध्यान रहे, आर्टेमिस प्रोग्राम पर डॉनल्ड ट्रंप की गहरी छाप मौजूद है, जिसकी प्रतिक्रिया का लाभ लेने के लिए चीन-रूस की योजना दुनिया के लिए खुली रखी गई है। तीसरी बड़ी अंतरिक्षीय शक्ति यूरोपियन स्पेस एजेंसी इन दोनों खेमों में से एक में शामिल होती है या चंद्रमा पर अपना कोई अलग कार्यक्रम प्रस्तुत करती है, यही देखना है।
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