Saturday 23 May 2020

खतरे में वेलविट्शिया

चंद्रभूषण
ऑस्ट्रियन वनस्पतिशास्त्री और चिकित्सक फ्राइडरिख वेलविट्श उन्नीसवीं सदी के मध्य में किसी दिन अंगोला के अटलांटिक तटीय रेगिस्तान में घूम रहे थे कि नंगे सख्त पहाड़ों और तपती रेत से भरे इस निचाट इलाके में अचानक उन्हें एक पौधा दिख गया। लंबी हरी-सूखी पत्तियों के बेतरतीब ढूह के बीच लाल-बैंगनी फल जैसी चीजें। उस पौधे ने वेलविट्श को इतना चकित किया कि कुछ देर वे वहीं आंखें मूंदे बैठे रहे। यह सोचकर कि अगर यह उनका भ्रम हुआ तो आंख खोलते ही गायब हो जाएगा।

संसार की कुछ सबसे पुरानी, विचित्र और विलुप्ति के कगार पर खड़ी वनस्पतियों में आज इस वेलविट्शिया मिराबिलिस की गिनती होती है। इसे और चाहे जो भी कहें, पौधा तो नहीं कहना चाहिए क्योंकि इनकी औसत उम्र 300 साल से ज्यादा होती है और इनमें कुछ तो 2000 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। वनस्पतिशास्त्रियों के बीच वेलविट्शिया को जिंदा जीवाश्म कहने का चलन है क्योंकि यह जुरासिक युग की वनस्पति है, जब दुनिया में फल-फूल जैसा कुछ होता ही नहीं था। चीड़ की तरह सारे पेड़-पौधे सीधे अपने बीज बनाया करते थे।

वेलविट्शिया का डेढ़ से लेकर छह फुट तक ऊंचा तना होता है, जिससे सिर्फ दो पत्तियां निकलती हैं और वे सैकड़ों, हजारों साल तक बढ़ती, सूखती, टूटती चली जाती हैं। गहरी जड़ों के बावजूद जिंदा रहने के लिए ओस और कोहरे से नमी जुटाने वाले इस रफ-टफ पेड़ का ग्लोबल वार्मिंग कुछ नहीं कर पाएगी, ऐसा वैज्ञानिक हाल तक मानते थे। लेकिन अभी उनका अध्ययन बता रहा है कि इसका यह सदी पार कर लेना भी एक चमत्कार होगा।

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