शशांक द्विवेदी
डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च),
मेवाड़ यूनिवर्सिटी
इस सदी की सबसे बड़ी खोज करते हुए
अन्तराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने पहली बार गुरूत्वाकर्षण तरंगों की झलक पाने का दावा किया
है। आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत की खोज के ठीक 100 साल बाद
वैज्ञानिकों ने बेहद अहम खोज किया है. ऐसा अनुमान है कि इस खोज के बाद इंसान को ब्रहांड के चकित कर देने वाले रहस्यों
के बारे में पता चल पायेगा । वैज्ञानिकों ने गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज कर लिया
है। यह तरंगे प्रकाशीय तरंगों से पूरी तरह
भिन्न है। वैज्ञानिक इन तरंगों को
ग्रेविटेशनल वेव्स भी कहते हैं।
वैज्ञानिकों को उमीद है कि इस खोज से
दूर के सितारों, आकाश गंगाओं
और ब्लैक होल सहित ब्रह्मांड के रहस्यों
के बारे में अहम जानकारी जुटाने में मदद मिल सकती है। आइंस्टीन ने कहा था
कि अंतरिक्ष समय एक जाल की तरह है, जो किसी पिंड के भार से झुकता है, जबकि गुरूत्वाकर्षण
तरंगें किसी तालाब में कंकड़ फेंकने से उठी लहरों की तरह है। गुरूत्वाकर्षण
तरंगों का पता दो भूमिगत डिटेक्टरों की मदद से लगाया गया जो बेहद सूक्ष्म तरंगों
को भी भांप लेने में सक्षम हैं। इस योजना को लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैवीटेशनल वेव
ऑब्जर्वेटरी यानी LIGO
नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों को इन तरंगों से संबंधित
आंकड़ों की पुष्टि में कई महीने लग गये। गुरूत्वाकर्षण
तरंगें अंतरिक्ष के फैलाव का एक मापक हैं। ये विशाल पिंडों की गति के कारण होती
हैं और प्रकाश की गति से चलती हैं, इन्हें कोई चीज रोक नहीं सकती। गुरुत्व
तरंगों की तलाश के लिए चलाए जा रहे प्रोजेक्ट की लागत करीब एक अरब डॉलर है। यह सफल
खोज दुनिया भर के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का नतीजा है।
ब्लैक होल
क्या होतें है ?
अल्बर्ट आइंस्टीन ने भविष्यवाणी की थी
कि दो ब्लैक होल के टकराने पर गुरुत्व तरंगें उत्पन्न होंगी, लेकिन अभी तक
किसी ने भी इनका प्रायोगिक परीक्षण नहीं किया था।
अभी तक किसी को भी दो ब्लैक होल के बारे में प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला
था। एक बड़ा प्रश्न है कि ब्लैक होल क्या होते हैं ? ब्लैक होल अंतरिक्ष का वह क्षेत्र है
जहां शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के कारण वहां से प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता। इसमें
गुरुत्वाकर्षण बहुत ज्यादा इसलिए होता है, क्योंकि पदार्थ को बहुत छोटी जगह में समाहित
होना पड़ता है। ऐसा तारे के नष्ट होने की स्थिति में होता है । चूंकि यहां से
प्रकाश बाहर नहीं आ सकता, इसलिए लोग
इन्हें नहीं देख सकते। ये अदृश्य होते हैं। किसी तारे के नष्ट होने पर ब्लैक होल
बनता है। छोटे और बड़े दो तरह के ब्लैक होल हो सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार सबसे
छोटे ब्लैक होल एक अणु के बराबर छोटे होते हैं। ये ब्लैक होल छोटे जरुर होतें है लेकिन
उनका द्रव्यमान एक पहाड़ के बराबर होता है। बड़े ब्लैक होल यानी स्टेलर का द्रव्यमान
सूर्य के द्रव्यमान से 20 गुना तक
ज्यादा होता है। सबसे बड़े ब्लैकहोल को सुपरमैसिव कहा जाता हैं, क्योंकि उनका
द्रव्यमान 10 लाख सूर्यो
से भी ज्यादा होता है। हमारी मिल्कीवे आकाशगंगा में सुपरमैसिव ब्लैक होल का नाम
सैगिटेरियस है। इसका द्रव्यमान 40 लाख सूर्यो
के बराबर है। बहुत बड़े यानी अत्यंत विशाल ब्लैक होल सभी आकाशगंगाओं के केंद्र में
पाए जाते हैं। गुरुत्व तरंगों की खोज से पहले ब्लैक होल का पता लगाना मुश्किल था, क्योंकि ये प्रकाश
उत्पन्न नहीं करते थे जबकि सभी खगोलीय भौतिकी उपकरण प्रकाश का इस्तेमाल करते हैं।
दो ब्लैक होल
की टक्कर
दो ब्लैक होल में से प्रत्येक ब्लैक
होल का द्रव्यमान करीब 30 सूर्यो के
बराबर था। जैसे ही गुरुत्वाकर्षण की वजह
से दोनों ब्लैक होल एक दूसरे के करीब आए, उन्होंने तेजी से एक दूसरे की
परिक्रमा आरंभ कर दी। आपस में टकराने से पहले उन्होंने प्रकाश की गति हासिल कर ली
थी। उनके उग्र विलय से गुरुत्व तरंगों के रूप में प्रचंड ऊर्जा निकली जो सितंबर
में पृथ्वी पर पहुंची। एक अरब साल पहले निकली ऊर्जा पिछले साल सितंबर में पृथ्वी
पर पहुंची है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि
अंतरिक्ष में यह टक्कर कितनी दूर हुई होगी . वैज्ञानिकों के अनुसार सितंबर
में पृथ्वी पर पहुंचने वाली तरंग दो ब्लैक होल के विलय से पूर्व अंतिम क्षण में
उत्पन्न हुई थी।
भारतीय
वैज्ञानिक भी इस अनुसंधान में शामिल रहें
भारतीय वैज्ञानिकों ने गुरूत्वाकर्षी
तरंगों की खोज के लिए महत्वपूर्ण परियोजना में डाटा विश्लेषण सहित अत्यंत
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इंस्टिटयूट ऑफ प्लाजमा रिसर्च गांधीनगर, इंटर
यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनामी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पुणे और राजारमन सेंटर फॉर
एडवांस्ड टेक्नोलाजी इंदौर सहित कई संस्थान इस परियोजना से जुड़े थे। गुरूत्वाकर्षी
तरंगों की खोज की घोषणा आईयूसीएए पुणे और वाशिंगटन डीसी, अमेरिका में
वैज्ञानिकों ने समानांतर रूप से की। भारत उन देशों में से भी एक है जहां
गुरूत्वाकर्षण प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और
परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष अनिल काकोदकर ने गुरूत्वाकर्षी तरंगों की खोज में
महत्वपूर्ण योगदान के लिए आज भारतीय वैज्ञानिकों की टीम को बधाई दी है।
खगोल विज्ञान
के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि
यह सफल खोज दुनिया भर के वैज्ञानिकों
की कड़ी मेहनत का नतीजा है जिनमें भारतीय वैज्ञानिक भी शामिल हैं। ब्रह्मांड को
अभी तक हमने सिर्फ प्रकाश में देखा है, लेकिन वहां जो घटित हो रहा है उसका हम
सिर्फ एक हिस्सा ही देख पा रहे हैं। यह खोज ब्रह्मांडीय भौतिकी और खगोल विज्ञान के लिए एक बहुत बड़ी
उपलब्धि है। और इससे ब्रहमांड को समझने के खुले नए रास्ते खुलेंगे ।
(लेखक शशांक द्विवेदी चितौड़गढ, राजस्थाइन में मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च) हैं और टेक्निकल टूडे पत्रिका के संपादक हैं। 12 सालों से विज्ञान विषय पर लिखते हुए
विज्ञान और तकनीक पर केन्द्रित विज्ञानपीडिया डॉट कॉम के संचालक है । एबीपी न्यूज द्वारा विज्ञान लेखन के लिए सर्वश्रेष्ठ
ब्लॉगर का सम्मान हासिल कर चुके शशांक को विज्ञान संचार से जुड़ी देश की कई
संस्थाओं ने भी राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया है। वे देश के प्रतिष्िंचात
समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लगातार लिख रहे हैं।)
nice lekin gravitation wave kya hoti he iske bare me bhi btaye sir
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