Tuesday 9 June 2015

अभी दूर है स्किल इंडिया का सपना

नवभारत टाइम्स (NBT)
शशांक द्विवेदी 
डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च ),मेवाड़ यूनिवर्सिटी
नवभारत टाइम्स (NBT) के संपादकीय पेज पर प्रकाशित  
अपने पहले साल में मोदी सरकार ने विज्ञान, शोध, तकनीक और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कोई बड़ा और ठोस कदम नहीं उठाया। वैज्ञानिक शोध के लिए पर्याप्त बजट नहीं दिया गया, न ही बुनियादी विज्ञान के प्रसार के लिए कोई विशेष कार्ययोजना बन पाई, जिससे विज्ञान को आम लोगों से जोड़ा जा सके। 'अटल नवाचार मिशन' के तहत अनुसंधान और विकास के लिए सिर्फ 150 करोड़ रुपये आवंटित किए गए।
स्किल डिवेलपमेंट के लिए सरकार जरूर संजीदा हुई और इसके लिए बाकायदा अलग मंत्रालय भी बनाया गया, लेकिन इसके भी ठोस नतीजे अभी तक आए नहीं हैं। दूसरी तरफ देश में तकनीकी और उच्च शिक्षा की हालत बहुत खराब हो गई है। हायर और टेक्निकल एजुकेशन के मौजूदा सत्र में देश भर में सात लाख से ज्यादा सीटें खाली हैं। नया सत्र जुलाई से शुरू होने वाला है, लेकिन इस स्थिति में बदलाव की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही।
यूपीए जैसा ही माहौल

सिर्फ कुछ आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम और सरकारी कॉलेजों के भरोसे देश उच्च शिक्षा में तरक्की नहीं कर सकता। सरकार के पास निजी संस्थानों और विश्वविद्यालयों के लिए भी कोई बेहतर कार्य योजना होनी चाहिए। उसे पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि इतने बड़े पैमाने पर साल दर साल सीटें क्यों खाली रह रही हैं, हायर एजुकेशन से लोगों का मोहभंग क्यों हो रहा है और इसे ठीक कैसे किया जा सकता है। इंजीनियरिंग कॉलेजों की सीटों का खाली रहना देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिरता के लिए भी ठीक नहीं है।

दस साल चली पिछली यूपीए सरकार ने भी इंजीनियरिंग में गुणवत्ता लाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि 2010 के बाद से उच्च शिक्षा की बुनियाद कमजोर पड़ने लगी। दरअसल गवर्नमेंट ने बिना किसी विशेष खोजबीन के और बिना गुणवत्ता को ध्यान में रखे हजारों इंजीनियरिंग कालेज खोलने की अनुमति दे दी, लेकिन उनके भविष्य के बारे में नहीं सोचा गया।बिना स्किल के हजारों-लाखों इंजीनियरिंग ग्रेजुएट बेरोजगार घूमने लगे तो इससे लोगों का मोहभंग होना शुरू हो गया। रही-सही कसर बढ़ती महंगाई और मोटी फीस ने पूरी कर दी। मोदी सरकार से उम्मीद थी कि वह इस मामले में कुछ अलग कोशिश करेगी, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
सरकार जब भयंकर कर्ज में डूबी एक बीमार एयरलाइंस को उबारने के लिए प्रयास कर सकती है तो उसे उच्च और तकनीकी शिक्षा के लिए भी कुछ जरूर करना चाहिए। इस सचाई को हमें समझना ही होगा कि तकनीकी और उच्च शिक्षा में मजबूती के बिना हम दुनिया में आगे नहीं बढ़ सकते, क्योंकि विकास का असली रास्ता शिक्षा और कौशल से होकर ही जाता है। हालत यह है कि देश में लाखों युवाओं के पास इंजीनियरिंग की डिग्री तो है लेकिन कुछ भी कर पाने का 'स्किल' नहीं है। इसकी वजह से अपने यहां हर साल लाखों इंजीनियर बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर हैं।पिछले दिनों जारी हुई सीआईआई की इंडिया स्किल रिपोर्ट-2015 के मुताबिक हर साल सवा करोड़ भारतीय युवा रोजगार बाजार में उतरते हैं। इनमें मात्र 37 प्रतिशत ही रोजगार के काबिल होते हैं। यह आंकड़ा कम होने के बावजूद पिछले साल के 33 प्रतिशत के आंकड़े से ज्यादा है और इससे यह संकेत मिलता है कि युवाओं को हुनरमंद करने की दिशा में धीमी गति से ही सही, लेकिन काम हो रहा है।
एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार हर साल देश में 15 लाख इंजीनियर तैयार होते है लेकिन उनमें सिर्फ चार लाख को नौकरी मिल पाती है। नैसकॉम (नेशनल असोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज) द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार देश के 75 फीसदी टेक्निकल ग्रेजुएट नौकरी के लायक नहीं हैं।
आईटी इंडस्ट्री इन इंजीनियरों को भर्ती करने के बाद इनकी ट्रेनिंग पर करीब एक अरब डॉलर खर्च करती है। इंडस्ट्री को उसकी जरूरत के हिसाब से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट नहीं मिल पा रहे। डिग्री और स्किल के बीच फासला बहुत बढ़ गया है। असल में हमने यह समझने में बहुत देर कर दी कि अकादमिक शिक्षा की तरह अपनी नई पीढ़ी को बाजार की मांग के मुताबिक उच्च गुणवत्ता वाली स्किल एजुकेशन देना भी हमारे लिए बहुत जरूरी है।एशिया की एक आर्थिक महाशिक्त दक्षिण कोरिया ने स्किल डिवेलपमेंट के मामले में चमत्कार कर दिखाया है। 1950 तक विकास के स्तर और विकास दर, दोनों ही मामलों में कोरिया हमारे मुकाबले कहीं नहीं था। लेकिन अभी अगर उसकी गिनती भारत से एक पायदान आगे के देशों में होती है और विकास के कुछ पैमानों पर वह जर्मनी को भी पीछे छोड़ चुका है तो इसमें सबसे बड़ी भूमिका स्किल एजुकेशन की ही है।
हुनर बढ़ाने पर जोर
आज डिग्री से ज्यादा जरूरत हुनर की है। केंद्र सरकार को शैक्षणिक कोर्सेज के साथ स्किल डिवेलपमेंट के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देना होगा क्योंकि 'मेक इन इंडिया' का सपना 'स्किल इंडिया' के बिना पूरा नहीं हो सकता। सरकार अगर वाकई देश को साइंस-टेक्नॉलजी के क्षेत्र में आगे बढ़ाना चाहती है और अपने वादे के मुताबिक करोड़ों युवाओं को रोजगार देना चाहती है तो उसे शोध, विज्ञान, तकनीक, उच्च शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट के लिए बजट बढ़ाना होगा। इसके साथ ही तकनीकी संस्थानों में नियुक्ति और इनके संचालन आदि के मामले में उसे संकीर्ण नजरिए से ऊपर उठना होगा।
Article link
http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nbteditpage/entry/skill-india-dream-is-far-away


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