शशांक द्विवेदी
अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में 12 नवंबर को एक खास तारीख के तौर पर याद किया जाएगा। वैानिकों ने धूमकेतु पर बुधवार रात करीब दस बजे अंतरिक्ष यान उतारने में सफलता हासिल कर ही ली। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के वैानिकों ने बताया कि सौ किलोग्राम वजन वाले फिल लैंडर ने धूमकेतु 67पी/चुरयोमोव-गेरासिमेन से सिग्नल भेजे हैं। इस लैंडर को रोसेटा यान के जरिए धूमकेतु पर उतारा गया है। फ्लाइट निदेशक आंद्रेया अकोमाजो ने कहा, हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि लैंडर धूमकेतु की सतह पर उतर गया है। किसी धूमकेतु या पुच्छल तारे पर अंतरिक्ष यान को उतारने का यह पहला मौका है।
10 साल की कड़ी मेहनत के बाद यूरोपियन स्पेस
एजेंसी के रोसेटा मिशन ने इतिहास रच दिया है। रोबॉटिक अंतरिक्ष यान रोसेटा का
लैंडर मॉड्यूल 'फिलाय' किसी
धूमकेतु पर पहली बार लैंडिंग करने में कामयाब हो गया है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने
रोसेटो का निर्माण धूमकेतु (67P/Churyumov–Gerasimenko) का अध्ययन करने के लिए बनाया था।
ईस्टर्न स्टैँडर्ड
टाइम के मुताबिक, बुधवार सुबह साढ़े 10 बजे के करीब फिलाय ने धूमकेतु पर सफलतापूर्वक
लैंडिंग की। यह लैंडिंग धरती से करीब 30 करोड़
मील यानी करीब 48 करोड़ किमी दूर हुई। रोसेटा मिशन को पूरा करने
में करीब 10 हजार 700 करोड़
रुपए का खर्च आया है। खास बात यह है कि जानकार इस खर्च को मिशन की सफलता के नजरिए
से बेहद कम मान रहे हैं। गौरतलब है कि कुछ वक्त पहले ही भारत ने भी मंगल की कक्षा
में यान भेजने में ऐतिहासिक सफलता पाई थी।
तस्वीरें मिलनी शुरू
धेमकेतु पर लैंडिंग के बाद फिलाय ने तस्वीरें भेजनी शुरू कर दी हैं। बता दें कि लैडिंग के बाद भी काफी देर तक रोसेटा मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों में बेचैनी छाई रही। इस वजह यह थी कि कम्यूनिकेशन में देरी की वजह से लैडिंग की पुष्टि में 28 मिनट का वक्त लग गया। हालांकि, जैसे ही लैडिंग की पुष्टि की जानकारी मिली, वैज्ञानिकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया।
धेमकेतु पर लैंडिंग के बाद फिलाय ने तस्वीरें भेजनी शुरू कर दी हैं। बता दें कि लैडिंग के बाद भी काफी देर तक रोसेटा मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों में बेचैनी छाई रही। इस वजह यह थी कि कम्यूनिकेशन में देरी की वजह से लैडिंग की पुष्टि में 28 मिनट का वक्त लग गया। हालांकि, जैसे ही लैडिंग की पुष्टि की जानकारी मिली, वैज्ञानिकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया।
क्यों जरूरी है मिशन
धूमकेतु दरसअल उन पदार्थों से बना है, जिनसे हमारा सोलर सिस्टम बना है। ऐसे में, इसका अध्ययन करके धरती की उत्पत्ति के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल सकेगी। धूमकेतु पर मौजूद करीब 4 अरब साल प्राचीन फिजिकल डेटा के अध्ययन से कुछ आधारभूत जानकारी मिलने की संभावना है। रोसेटा स्पेसक्राफ्ट अगले साल तक इस धूमकेतु पर रहेगा।
धूमकेतु दरसअल उन पदार्थों से बना है, जिनसे हमारा सोलर सिस्टम बना है। ऐसे में, इसका अध्ययन करके धरती की उत्पत्ति के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल सकेगी। धूमकेतु पर मौजूद करीब 4 अरब साल प्राचीन फिजिकल डेटा के अध्ययन से कुछ आधारभूत जानकारी मिलने की संभावना है। रोसेटा स्पेसक्राफ्ट अगले साल तक इस धूमकेतु पर रहेगा।
मंगलयान से ली गई धूमकेतु की तस्वीर
जारी
यूरोपीय अंतरिक्ष यान रोसेटा को जिस दिन 67पी/चुरयोमोव-गेरासिमेनको नामक धूमकेतु पर उतारने का
प्रयास हो रहा है उसी दिन इसरो ने इस धूमकेतु की तस्वीर को जारी किया है। यह
तस्वीर पिछले महीने मंगलयान द्वारा ली गई थी। इसरो के मार्स आर्बिटर (मंगलयान) को 19 अक्टूबर को मंगल ग्रह के
नजदीक से गुजरे धूमकेतु के साइडिंग स्प्रिंग को देखने का मौका मिला था। इस दौरान
सुरक्षा के लिहाज से मंगलयान को खिसकाया गया था। धूमकेतु के गुजरने के बाद मंगलयान
ने ट्विट किया, ‘ओह! जीवनकाल का अनुभव। मंगल के पास से गुजरे धूमकेतु की बौछार को देखा। मैं
अपनी कक्षा में सुरक्षित और ठीक हूं।’ मंगलयान में लगे रंगीन कैमरे ने धूमकेतु के ऊपरी
चमकदार हिस्से की तस्वीर ली। यह तस्वीर अंतिम 40 मिनट के दौरान ली गई जब धूमकेतु मंगल ग्रह के बेहद
नजदीक था। इसरो ने बताया कि यह तस्वीर 19 अक्टूबर को तब ली गई जब धूमकेतु की मंगलयान से दूरी 1.8 किमी से 1.3 किमी के बीच थी। धूमकेतु
अपने पीछे धूल कणों से भरे बादलों के पुंज छोड़ते हुए चलते हैं। उल्लेखनीय है कि
धूमकेतु के रहस्य को जानने के प्रयास में भारत के अलावा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के
वैानिक भी जुटे हैं। हालांकि, इसमें अब तक कोई खास सफलता नहीं मिल सकी है। दूसरी तरफ, बुधवार को यूरोपीय एजेंसी ने एक धूमकेतु पर अंतरिक्ष
यान उतारने में सफलता हासिल की है, लेकिन इसकी सफलता का आकलन कुछ दिनों बाद ही हो सकेगा।
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