Tuesday 29 April 2014

मानव अंगों का निर्माण

प्रयोगशाला में मानव अंग उगाने पर मुकुल व्यास की टिप्पणी


लंदन के रॉयल फ्री हॉस्पिटल के वैज्ञानिक स्टेम कोशिकाओं से नाक, कान और रक्त धमनियों का निर्माण कर रहे हैं। अमेरिका और दुनिया के दूसरे देशों की प्रयोगशालाओं में भी मानव अंग निर्मित किए जा रहे हैं। ब्रिटेन में निर्मित मानव अंगों को कुछ मरीजों में प्रत्यारोपित भी किया जा चुका है। इनमें रक्त धमनियां और श्वासनलियां शामिल हैं। रिसर्चरों का कहना है कि आने वाले समय में वे विविध किस्म के मानव अंगों के प्रत्यारोपण में समर्थ हो जाएंगे। इन अंगों में दुनिया की पहली नाक भी शामिल है जिसे आंशिक रूप से स्टेम कोशिकाओं से निर्मित किया गया है। ब्रिटेन में मानव अंगों के निर्माण के लिए चल रही रिसर्च का नेतृत्व यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रो. एलेक्जेंडर सैफालियन कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रयोगशाला में अंगों का निर्माण एक केक बनाने जैसा ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि हम एक अलग किस्म के ओवन का इस्तेमाल करते हैं। पिछले साल सैफालियन और उनकी टीम ने एक ऐसे व्यक्ति के लिए नाक निर्मित की थी जिसने कैंसर के कारण अपनी असली नाक गंवा दी थी। वैज्ञानिकों ने उस व्यक्ति की वसा से निकाली गई स्टेम कोशिकाओं को नाक के सांचे में रखा। इसके पश्चात इस सांचे को व्यक्ति की भुजा में प्रत्यारोपित कर दिया गया ताकि नाक के चारों तरफ त्वचा उग जाए।
प्रो. सैफालियन इस नाक को उस व्यक्ति के चेहरे पर लगाने के लिए अधिकारियों की अनुमति का इंतजार कर रहे हैं। यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो व्यक्ति की भुजा से नाक निकाल कर उसके चेहरे में प्रत्यारोपित कर दी जाएगी। सैफालियन को पूरा भरोसा है कि दूसरी नाक वास्तविक नाक की तरह ही काम करेगी। दूसरी खास बात यह है कि नई नाक व्यक्ति की असली नाक से काफी कुछ मिलती-जुलती है। इस व्यक्ति की असली नाक कुछ टेढ़ी थी। उसने रिसर्चरों से आग्रह किया था कि उसकी दूसरी नाक को भी असली नाक की तरह टेढ़ा रखा जाए। रिसर्चरों ने उसकी मूल नाक पर आधारित कांच के सांचे में नई नाक उगानी शुरू की। प्रो. सैफालियन का इरादा अब प्रयोगशाला में पूरा चेहरा निर्मित करने का है। इस विधि से दुर्घटना के शिकार लोगों को फायदा होगा। अंगों के सांचे बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाले पोलिमर का पेटेंट करा लिया गया है। प्रो. सैफालियन ने प्रयोगशाला में निर्मित रक्त धमनियों और श्वास नालियों के पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है। उनकी टीम दूसरे अंग भी निर्मित करने की कोशिश कर रही है जिनमें हृदय की धमनियां और कान शामिल हैं। कान के बगैर जन्में लोगों में प्रयोगशाला में बने कान लगाने के लिए इस साल भारत और ब्रिटेन में परीक्षण शुरू करने का भी कार्यक्रम है। प्लास्टिक सर्जन डॉ. मिशैली ग्रिफिन का कहना है कि कान बनाना थोड़ा मुश्किल काम है। डॉ. ग्रिफिन दर्जनों कानों और नाकों का निर्माण कर चुकी हैं। स्वीडन में गोटेनबर्ग यूनिवर्सिटी की प्रत्यारोपण विशेषज्ञ सुचित्र सुमित्रन होल्गरसन का खयाल है कि जैव इंजीनियरिंग से तैयार अंग शीघ्र ही प्रयोगावस्था से निकल कर बाजार में आ जाएंगे। उन्होंने कुछ मरीजों में कृत्रिम रक्त धमनियां प्रत्यारोपित की हैं और 2016 तक वह बड़े पैमाने पर इस तरह के प्रत्यारोपण करना चाहती हैं, लेकिन इसके लिए अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ेगी। वह खुद इस बात को मानती हैं कि डॉक्टरों को इस तरह के प्रत्यारोपण के दूसरे प्रभावों, खास कर कैंसर के जोखिम पर भी गौर करना पड़ेगा। प्रो. सैफालियन का अनुमान है कि प्रयोगशाला में मानव अंग निर्मित करने के लिए 2005 से चल रही रिसर्च पर अभी तक 1.6 करोड़ डॉलर खर्च हो चुके हैं, लेकिन आने वाले समय में लैब में निर्मित अंग बहुत सस्ते हो जाएंगे।
प्रो. सैफालियन और उनके सहयोगियों के दावों के बावजूद प्रयोगशाला में कृत्रिम अंगों का निर्माण आसान नहीं है। किंग्स कॉलेज लंदन की स्टेम कोशिका विशेषज्ञ आइलीन जेंटलमैन का मानना है कि वैज्ञानिकों को गुर्दे, फेफड़े और जिगर जैसे जटिल अंगों के निर्माण से पहले नाक और कान जैसे अंगों को पूरी तरह से कार्य सक्षम बनाना पड़ेगा।

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