Monday 21 April 2014

अठारह करोड़ वर्ष पुरानी कोशिकाएं भी सुरक्षित मिलीं


मुकुल व्यास
दक्षिणी स्वीडन के स्कान क्षेत्र में मिले फर्न के पौधे के जीवाश्म ने दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय को बेहद रोमांचित कर दिया है। रोमांचित करने वाली बात यह है कि स्वीडिश वैज्ञानिकों ने 18 करोड़ वर्ष पुराने इस जीवाश्म में कोशिकाओं के नाभिकों और क्रोमोजोम को संरक्षित अवस्था में पाया है। इस पौधे का संबंध जुरासिक काल से है। उस समय स्कान एक ऊष्ण क्षेत्र था और वहां डाइनासोरों का वर्चस्व था। वहां ज्वालामुखी भी सक्रिय थे। वैज्ञानिकों ने जीवाश्म का विस्तृत अध्ययन किया है। जांच पड़ताल से पता चला कि यह पौधा क्षय की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही तत्काल संरक्षित हो गया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्वालामुखी से निकले लावा ने इस पौधे को दफन कर दिया था। स्वीडिश भूगर्भशास्त्री विवि वाज्दा के मुताबिक संरक्षण इतनी तेजी से हुआ कि कुछ कोशिकाएं कोशिका विभाजन के विभिन्न चरणों में ही संरक्षित हो गईं। पौधे की अचानक मौत की वजह से कोशिकाओं के संवेदनशील हिस्से भी संरक्षित हो गए। रिसर्चरों को इस पौधे में कोशिका के नाभिक, कोशिका की झिल्लियां और क्रोमोसोम सही सलामत मिले हैं। जीवाश्मों के भीतर इस तरह की संरचनाओं का मिलना बहुत दुर्लभ होता है। मुमकिन है कि लावा के प्रवाह में और भी कई चीजें दफन हो गई हों।

प्रो.वाज्दा ने जीवाश्म के आसपास की चट्टानों पर जमा पराग कणों का भी अध्ययन किया है। पता चला कि इस इलाके में 18 करोड़ वर्ष पहले ज्वालामुखी का लावा फैला था। वाज्दा के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि इस इलाके की जलवायु गर्म थी और यहां उगने वाले पेड़ पौधों में अच्छी खासी विविधता थी। फर्न का यह दुर्लभ जीवाश्म साठ के दशक में एक किसान को मिला था। उसने यह जीवाश्म स्वीडन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय को सौंप दिया जहां उसे लगभग भुला दिया गया। करीब चालीस साल बाद शोधकर्ताओं का ध्यान इस दुर्लभ जीवाश्म की तरफ गया। यह फर्न आधुनिक रॉयल फर्न के परिवार से संबंध रखता है। रॉयल फर्न स्वीडन के जंगलों में उगता है। इस परिवार के जीवित सदस्य और जुरासिक काल के जीवाश्म में काफी समानताएं हैं। इससे पता चलता है कि करोड़ों वर्ष बीत जाने के बाद भी इसमें कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है। रिसर्चरों ने फर्न के जीवाश्म के कोशिका नाभिक का मिलान उसके जीवित रिश्तेदारों से करने के बाद पाया कि इस पौधे में विकास क्रम की दृष्टि से गजब की स्थिरता है।

इस बीच, ब्रिटिश आर्कटिक सर्वे और रीडिंग युनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने अंटार्टिक बर्फ में करीब 1530 वर्षों से जमा काई(मॉस ) को फिर से जीवित कर दिया है। दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों के जीव विज्ञान के लिए काई का विशेष महत्व है। दरससल इन इलाकों में इसी पौधे का बोलबाला है। यह पहला अध्ययन है जिसमें किसी पौधे को इतनी लंबी अवधि तक जीवित पाया गया है। काई पर्यावरण की विषमताओं को झेल सकती है लेकिन पिछले अध्ययनों में इस पौधे में 20 साल तक ही जीवित रहने की क्षमता देखी गई थी। प्राकृतिक पर्यावरण प्रणाली में काई एक खास भूमिका निभाती है। यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि अंटार्टिक जैसे दुनिया के तेजी से बदलने वाले इलाकों में इस पौधे के विकास और वितरण को कौन सी चीजें नियंत्रित करती हैं। प्रो.कन्वे के अनुसार उनके प्रयोग से सिद्ध होता है कि बहु-कोशिका जीव लंबे समय तक विषम परिस्थितियों को झेल सकते हैं। रिसर्चरों ने अंटार्टिक से काई के जो नमूने एकत्र किए वे पहले ही कई दशक पुराने थे। उन्होंने इन नमूनों को प्रदूषण से मुक्त रखने के बाद सामान्य तापमान पर एक इंक्यूबेटर में रखा जहां कुछ सप्ताह के भीतर उन्होंने विकसित होना शुरू कर दिया। कार्बन डेटिंग की मदद से रिसर्चरों ने पता लगाया कि यह काई कम से कम 1530 वर्ष पुरानी है। संभव है कि जटिल संरचना वाले दूसरे जीव रूप इससे भी ज्यादा समय तक बर्फीली सतह में अपना अस्तित्व बनाए रखने में समर्थ होंगे। 

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