पृथ्वी के गर्भ में पानी के स्रोत की खोज पर विशेष
प्रसिद्ध फ्रांसीसी
विज्ञान कथाकार जूल्स वर्न ने डेढ़ सौ साल पहले अपने एक उपन्यास में पृथ्वी की सतह
के नीचे एक विशाल समुद्र की मौजूदगी की कल्पना की थी। अब वैज्ञानिकों का कहना है
कि सतह के नीचे सचमुच पानी बड़ी मात्र में मौजूद है। कनाडा की अल्बर्टा यूनिवर्सिटी
के प्रोफेसर ग्राहम पियरसन के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने
इस बात के प्रमाण भी जुटा लिए हैं। टीम ने पृथ्वी की गहराई से मिले रिंगवुड़ाइट
नामक खनिज के नमूने का विश्लेषण करके पता लगाया है कि यह खनिज पानी से भरपूर है।
समझा जाता है कि पृथ्वी की सतह से 410 से 660 किलोमीटर नीचे उच्च दबाव की स्थितियों
में यह खनिज पाया जाता है। ऑस्ट्रेलिया के भूवैज्ञानिक टेड रिंगवुड ने पृथ्वी के
भीतरी भाग में इस खनिज की उपस्थिति की कल्पना की थी। इसी वजह से यह खनिज
रिंगवुडाइट के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कहा था कि अत्यधिक दबाव और तापमान
में एक खास तरह के खनिज का निर्माण तय है। वैज्ञानिकों ने उल्कापिंडों में इस खनिज
के नमूने खोजे थे, लेकिन अभी तक पृथ्वी से इसका कोई
नमूना नहीं मिला था क्योंकि इतनी गहराई पर जा कर नमूने एकत्र करना मुश्किल है।
रिंगवुड़ाइट की खोज
भी महज संयोग से हुई है। दरअसल यह खनिज एक बदसूरत से भूरे हीरे में मौजूद था, जिसे 2008 में कुछ खनिकों ने ब्राजील के माटो
ग्रोसो क्षेत्र में एक नदी तेल से खोजा था। यह हीरा ज्वालामुखी की चट्टान के साथ
पृथ्वी की सतह के ऊपर आया था। रिसर्चरों ने शोध के लिए यह हीरा खरीद लिया। पियरसन
ने बताया कि रिसर्चर तीन मिलीमीटर चौड़े इस हीरे में कोई दूसरा खनिज खोज रहे थे।
यह वैज्ञानिकों की खुशकिस्मती थी कि उन्हें अचानक इस नमूने में रिंगवुड़ाइट मिल
गया। यह खनिज इतना छोटा होता है कि इसे कोरी आंखों से नहीं देखा जा सकता। हीरे के
भीतर रिंगवुड़ाइट को खोजने का श्रेय पियरशन के स्नातक छात्र जॉन मैक्नील को है।
उसने 2009 में इस नमूने में रिंगवुड़ाइट की खोज
की थी, लेकिन इस खनिज की वैज्ञानिक रूप से
पुष्टि करने में कई वर्ष लग गए। इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफी और एक्स रे के जरिए
उसका विस्तृत विश्लेषण किया गया। अल्बर्टा यूनिवर्सिटी में पियरसन की भू-रसायन
प्रयोगशाला में इस खनिज की पानी की मात्र नापी गई। यह प्रयोगशाला केनेडा के विश्व
प्रसिद्ध सेंटर फॉर आइसोटोपिक माइक्रोएनिलिसिस का एक हिस्सा है।
आभूषणों में
प्रयुक्त होने वाले ज्यादातर हीरे पृथ्वी की सतह से करीब 150 किलोमीटर की गहराई पर मिलते हैं। करीब 500 किलोमीटर नीचे पृथ्वी की भीतरी परत के आसपास पाए जाने वाले हीरे सुपर
डीप डायमंड कहलाते हैं। भीतरी परत को मैंटल भी कहा जाता है। मैंटल के दो हिस्से
होते हैं। इन दो हिस्सों के बीच वाली जगह को ट्रांजिशन जोन कहते हैं। इसी जोन में
अत्यधिक दबाव की कारण सुपर डीप डायमंड बनते हैं। ये हीरे देखने में बहुत ही बदसूरत
होते हैं और इनमें नाइट्रोजन की मात्र बहुत कम होती है। इन हीरों और उनमे मौजूद
जलयुक्त खनिजों के अध्ययन के बगैर वैज्ञानिक पृथ्वी के भीतरी हिस्से की वास्तविक
संरचना की पुष्टि नहीं कर सकते। वैज्ञानिक समुदाय कई दशकों से यह अटकल लगा रहा था
कि पृथ्वी के भीतरी हिस्से में रिंगवुड़ाइट बड़ी मात्र में मौजूद है लेकिन इस बात
को निर्विवाद रूप से साबित करने के लिए अभी तक किसी को भी यह खनिज खोजने में सफलता
नहीं मिली थी।
खनिज पर किए गए
परीक्षणों से पता चलता है कि इसके कुल वजन में करीब 1.5 प्रतिशत पानी है। पियरसन के मुताबिक यह मात्र सुनने में ज्यादा नहीं
लगती लेकिन यदि हम पृथ्वी के भीतरी हिस्से में मौजूद रिंगवुड़ाइट की विशाल मात्र
की गणना करें तो उनमें पानी की मात्र पृथ्वी के सारे समुद्रों में मौजूद पानी से
ज्यादा बैठेगी। अभी यह कहना मुश्किल है कि यह पानी किस रूप में मौजूद है। यह पानी
खनिजों में कैद हो सकता है। यह भी मुमकिन है कि भीतरी हिस्से में स्थानीय जलाशयों
के रूप में यह पानी मौजूद हो।(मुकुल व्यास )
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