जम्मू में १०१ विज्ञान कांग्रेस (2-7 फरवरी )पर मेरी आँखों देखी रिपोर्ट
शशांक द्विवेदी
जम्मू में १०१ वे विज्ञान कांग्रेस समारोह सरकारी रस्म अदायगी का एक और सम्मेलन बन कर रह गया .जिसमें केंद्र और राज्य सरकार के नुमाइंदों द्वारा कोई नई बात नहीं कही गयी .प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भी पिछले सालों की तरह एक बार फिर विज्ञान के लिए बजट में जीडीपी का दो प्रतिशत खर्च करने की वकालत की .जबकि इसके पहले भी वो विज्ञान कांग्रेस के समारोह में यही बात कह चुके है लेकिन इसका क्रियान्वयन आज तक नहीं हो पाया है .देश में विज्ञान और शोध के बुनियादी ढांचें में कोई खास बदलाव नहीं आया है.विज्ञान कांग्रेस में प्रधानमंत्री “विज्ञान “ पर कम और “कांग्रेस “ पर ज्यादा बोले मसलन सरकार ने इतने आई आई टी ,आई आई एम खोले ,कुछ और योजनाओं की भी घोषणा हुई लेकिन उनका क्रियान्वयन कब और कैसे होगा उसकी कोई रुपरेखा उन्होंने नहीं बताई .देश के अलग अलग हिस्सों में विज्ञान की अलख जगाने वाले विज्ञान संचारको ,विज्ञान पर लिखने वाले ,विज्ञान पर काम करने वालों के लिए सरकार के पास कोई कार्ययोजना नहीं है .नेताओं और वीआईपी की सुरक्षा के बीच सम्मेलन में आये वैज्ञानिकों और प्रतिनिधियों को भारी उपेक्षा का शिकार होना पड़ा । लगभग पूरे समारोह में जम्मू विश्वविद्यालय प्रशासन सिर्फ नेताओं और वीआईपी लोगों की आवाभगत में ही लगा रहा । यहाँ तक की सम्मेलन के पहले दिन प्रतिनिधियों का पंजीकरण भी दोपहर तीन बजे के बाद शुरू किया किया जिसकी वजह से सैकड़ो विज्ञान संचारक उद्घाटन समारोह में शिकरत ही नहीं कर पाए ,जिसके लिए वो लोग लंबी यात्रा करके जम्मू आये थे । जबकि पंजीकरण तो प्रधानमंत्री के कार्यक्रम से काफी पहले सुबह से ही शरू हो जाना चाहिए था क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों से लोग उस दिन भी वहाँ पहुँच रहें थे । इन लोगों को सुरक्षा के नाम पर मुख्य समारोह स्थल में घुसने ही नहीं दिया गया । विश्वविद्यालय प्रशासन की इस गंभीर गलती की वजह से सैकड़ों प्रतिनिधयों के साथ साथ कई आमंत्रित वक्ताओं को अपमानित होना पड़ा । प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के कई घंटे बाद जब पंजीकरण शुरू हुआ तो वहाँ भी अफरातफरी का माहौल था ,सैकड़ों की संख्या में लोग लाइन में देर शाम तक लगे रहें । यहाँ भी प्रतिनिधियों और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच जोरदार झड़प हुई और पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा । व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई थी । कई विदेशी वैज्ञानिकों को वजह से भारी परेशानी उठानी पड़ी । सम्मेलन के अधिकांश सत्र काफी देर से शुरू हुए और वहाँ पर भी श्रोताओं की भारी कमी देखी गई । चिल्ड्रेन साइंस कांग्रेस का उद्घाटन सत्र जरुर शानदार था जिसमें पूर्व राष्ट्रपति डॉ.ए. पी .जे अब्दुल कलाम ने प्रेरणादायक भाषण देते हुए सम्मेलन स्थल में सीधे सीधे बच्चों से संवाद स्थापित किया और उनके द्वारा बनायें गयें प्रोजेक्ट्स का भी अवलोकन किया .उन्होंने बच्चों के सवालों का जवाब देकर उनकी जिज्ञासा को शांत भी किया ।
सम्मेलन में राष्ट्रीय विज्ञान संचार सत्र के अंतर्गत पोस्टर प्रेजेंटेशन में आयोजकों ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई यहाँ तक की उनका अवलोकन तक करना मुनासिब नहीं समझा गया । कार्यक्रम सिर्फ रस्म आदायगी की तरह से हो रहें थे, सम्मेलन में विज्ञान या विज्ञान संचारको के प्रति कहीं कोई संजीदगी नहीं दिखाई दी । सब कुछ एक ढर्रे पर ही चल रहा था । पूरा सम्मेलन भारी अव्यवस्था का शिकार था । शोध पत्रों के प्रस्तुतिकरण के किसी भी सत्र के बाद उसमें निष्कर्ष तक नहीं पहुँचा गया ,भविष्य में उसकी क्या रुपरेखा होगी इस पर कोई बात नहीं हुई । कुलमिलाकर करोडों रुपया खर्च करके भी इस तरह के सम्मेलन करके रस्म आदायगी के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ .
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