Monday 26 August 2013

बढ़ेगी तोपखाने की ताकत

डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव
भारतीय सेना के तोपखाने की ताकत बढ़ने का समय नजदीक आ गया है। अमेरिका अपनी तोपें भारत को बेचने के लिए तैयार है। दो अगस्त, 2013 को अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने होवित्जर किस्म की 145 तोपें भारत को बेचने के बारे में अमेरिकी संसद को सूचित किया है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय द्वारा कहा गया है कि भारत सरकार ने हल्के वजन वाली लेजर इनर्शियल आर्टिलरी प्वाइंटिंग सिस्टम ‘एलआइएनएपीएस’
वाली 145, एम-777 होवित्जर तोपों की खरीद एवं उनकी मरम्मत के लिए आवश्यक कलपुजरे, प्रशिक्षण के उपकरण एवं रखरखाव आदि के लिए अनुरोध किया है। इन तोपों की अनुमानित लागत साढ़े 88 करोड़ डॉलर है। एम-777 होवित्जर तोपों का सबसे पहले अफगानिस्तान युद्ध में प्रयोग किया गया। वहां इनके बेहतर परिणाम सामने आए। वर्तमान में अमेरिकी सेनाओं के अलावा इन तोपों का इस्तेमाल ऑस्ट्रेलिया और कनाडाई सेना द्वारा किया जा रहा है। सऊदी अरब ने भी इन तोपों की खरीद के लिए आर्डर दे रखा है। अमेरिका की रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी ‘डीएससीए’
द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि यह प्रस्तावित बिक्री भारत-अमेरिका के बीच रणनीतिक संबंधों को मजबूत बनाने में मदद करेगी। यह बिक्री दक्षिण एशिया में अमेरिका के एक ऐसे सहयोगी देश (भारत) की सुरक्षा व्यवस्था को सुधारने में सहायता करेगी जो अपने यहां की राजनीतिक स्थिरता, शांति एवं आर्थिक प्रगति के प्रति समर्पित रहा है। रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी के अनुसार भारत अपने सैन्यबलों के आधुनिकीकरण और कठिन यौद्धिक परिस्थितियों में विशेष अभियान चलाने के लिए इन तोपों का इस्तेमाल करना चाहता है। तोपों की बिक्री के क्रियान्वयन के लिए अमेरिकी सरकार और अनुबंधकर्ता प्रतिनिधियों के आठ सदस्यीय दल को भारत की वार्षिक यात्रा की जरूरत होगी। यह दल दो साल तक भारत में तकनीकी सहयोग, प्रशिक्षण और परीक्षण के लिए रहेगा। भारतीय सेना एवं रक्षा मंत्रालय ने तोपखाने की ताकत बढ़ाने के लिए 11 मई, 2012 को अमेरिका से लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत से 145 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर तोपें खरीदने का फैसला किया था। रक्षा मंत्री एके एंटनी की अध्यक्षता में हुई सैन्य अधिग्रहण परिषद ‘डीएसी’
की बैठक में विदेशी सैन्य खरीद ‘एफएमएस’ मार्ग से 145 एम-777 हॉवित्जर तोपों तथा अन्य कई रक्षा उपकरणों की खरीद को हरी झंडी देने का निर्णय लिया गया था। इससे पहले इन तोपों को खरीदने की सिफारिश रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के प्रमुख वीके सारस्वत की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति ने की थी। सैन्य अधिग्रहण परिषद की स्वीकृति के बाद इसे रक्षा मंत्रालय व संसद की सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ‘सीसीएस’ के पास मंजूरी के लिए भेजा गया। इनसे मंजूरी हासिल होने के बाद तोपों की खरीद का अंतिम निर्णय हुआ। एम-777 हॉवित्जर तोपें अमेरिका के बीएई सिस्टम द्वारा निर्मित हैं और भारत की जरूरतों के हिसाब से भरोसेमंद एवं अत्यंत उपयोगी हैं। इन तोपों को सरलता के साथ हवाई जहाज के द्वारा इधर-उधर लाया व ले जाया जा सकता है। इस कारण इन्हें पर्वतीय क्षेत्रों में भी तेजी से तैनात किया जा सकेगा। ये काफी अत्याधुनिक किस्म की तोपें हैं। भारतीय सेना की योजना के मुताबिक इन हॉवित्जर तोपों को लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा। इनकी तैनाती के बाद ऊंचाई पर स्थित चौकियां युद्ध के लिए अधिक सक्षम हो जाएंगी। उत्तरी मोर्चे पर यही चौकियां युद्ध का मुख्य मैदान होंगी। इस तरह भारत की तोपखाना ताकत अत्यंत बढ़ जाएगी। इस तरह तकरीबन 27 वर्षो बाद हॉवित्जर तोपों की खरीद हो रही है। विदित हो कि वर्ष 1986 में बोफोर्स तोप सौदे के विवाद के बाद सेना के तोपखाना भंडार को किसी प्रकार की नई तोपें प्राप्त नहीं हुई हैं। उस समय बोफोर्स तोप सौदे में दलाली को लेकर बड़ा विवाद हुआ था। इस विलंब से सेना की तैयारियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था और भारतीय सेना का तोपखाना पूरी दनिया में इस्तेमाल हो रही आधुनिकतम तोपों से वंचित था। अब सेना 1970 के दशक वाली तोपों को हटाकर आधुनिक तकनीक वाली तोपों से लैस हो जाएगी। सेना पिछले लगभग 17 वर्षो से 155 मिलीमीटर और 52 कैलिबर की खींच कर ले जाई जा सकने वाली 400 तोपें, 145 बेहद हल्की तोपें तथा पहियों वाली खुद चलने में सक्षम 140 तोपें खरीदने की कोशिश कर रही थी। अब इनके प्राप्त होने की उम्मीद बढ़ गई है। चूंकि तोपों की खरीद में विलंब हो रहा था इसलिए देश में बोफोर्स जैसी 100 तोपें निर्मित करवाने का फैसला फरवरी 2012 में लिया गया था। सेना ने 155 मिमी की 100 तोपें खरीदने का आदेश आयुध कारखाना बोर्ड को जारी कर दिया है और इन तोपों के निर्माण को एक निश्चित समय में पूरा करने को कहा गया है। विदित हो कि जब बोफोर्स तोपों की खरीद की गई थी तभी से इनके उत्पादन की तकनीक भारत में आ गई थी। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने का एक बड़ा कदम था। इन स्वदेशी तोपों का विकास जबलपुर के तोप कारखाने में किया जाएगा। इसके बाद इनका निर्माण कोलकाता स्थित कारखाने में किया जाएगा। सैन्य अधिग्रहण परिषद की इस मंजूरी के साथ ही तकरीबन 7000 करोड़ रुपये से अधिक की खरीद परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान कर दी गई थी। इसमें एल- 70 हवाई रक्षा तोपों के लिए 65 से अधिक की संख्या में रडारों की खरीद की मंजूरी भी है। इस सौदे में लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत आने की उम्मीद है। अन्य जिन परियोजनाओं को हरी झंडी प्रदान की गई है उनमें 300 करोड़ रुपये से अधिक की लागत के सिमुलेटर खरीदे जाएंगे जिनका उपयोग टी-90 टैंकों में किया जाएगा। तोपों की तरह टैंकों की निगहबानी बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। सेना की पश्चिमी कमान में स्थानीय स्तर पर ऐसी तकनीक विकसित कर ली गई है जिससे टैंकों पर लगे विजुअल वीडियो डिस्प्ले ‘वीवीडी’ की जगह एलसीडी स्क्रीन लगाई जाएगी। सेना की इलेक्ट्रॉनिक एंड मैकेनिकल इंजीनियर कोर के इंजीनियरों ने पुरानी रुस की वीवीडी की जगह नई एलसीडी स्क्रीन लगाने में कामयाबी हासिल कर ली है। इस नई तकनीक से सेना रात में दुश्मनों की हरकतों पर नजर रख सकेगी। दूसरे, रूस से मंगाई जाने वाली 25 से 30 लाख की वीवीडी की जगह पांच हजार रुपये में यह एलसीडी उपलब्ध होगी। नई एलसीडी को रूस से खरीदे गए टी-90 टैंकों पर लगाया जाएगा। इससे सेना को एक नई ताकत मिल गई है क्योंकि इससे टैंको की मारक क्षमता में बढ़ोत्तरी होगी।


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