राष्ट्रीय सहारा के संपादकीय पेज पर शशांक द्विवेदी का विशेष लेख
राष्ट्रीय सहारा |
भारत बड़े पैमानें पर ऊर्जा की कमी से जूझ रहा है। उर्जा की माँग और
आपूर्ति का अंतर दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । देश के एक चैथाई लोग आज भी बिना
बिजली के रहने को मजबूर है। देश के 28
में से 9 राज्यों आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, गोवा, दिल्ली, हरियाणा, केरल, पंजाब और तमिलनाडु का ही
पूरी तरह विद्युतीकरण हो पाया है । बाकी 19
राज्यों में तो पूर्ण विद्युतीकरण भी नहीं हुआ है । विद्युतीकरण के बावजूद इन 9 राज्यों में भी बिजली कटौती आम बात
है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) के अनुसार अगले 20 सालों में भी भारत में ऊर्जा की
समस्या बनी रहेगी। कुलमिलाकर उर्जा की यह समस्या देश के विकास और भविष्य को सीधा
सीधा प्रभावित करती है जिसके लिए हमें अभी
से ठोस कदम उठाने होंगे । किसी भी देश क लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि
वत्र्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग ऊर्जा
से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कु-प्रभाव न पड़े, और यह तरीका स्थायी हो, न कि लघुकालीन । इस तरह की ऊर्जा नीति
अनेकों वैकल्पिक ऊर्जा का मिश्रण हो सकती है जैसे कि, सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, छोटे पानी के बाँध , गोबर गैस इत्यादि। भारत में इसके लिए
पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं, और वैकल्पिक ऊर्जा के तरीके ग्राम
स्वराज्य या स्थानीय स्तर पर स्वावलंबन के सपने से भी अनुकूल हैं, इसलिए देश में इन्हे बड़े पैमाने पर
अपनाने की जरूरत है । जिससे देश में उर्जा के क्षेत्र में बढती मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम किया जा
सके । हमें न केवल वैकल्पिक ऊर्जा बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करना होगा, बल्कि उर्जा संरक्षण के लिए सांस्थानिक
परिवर्तन भी करना होगा जिससे कि लोगों के लिए स्थायी और स्थानीय ऊर्जा के संसाधनों
से स्थानीय ऊर्जा की जरुरत पूरी हो सके।
पिछले दिनों दिल्ली में वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा
आधारित अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से बदलाव पर र्चचा के लिए दुनिया के 20 अग्रणी देशों के ऊर्जा मंत्रियों के
सम्मेलन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा की पर्यावरण की कीमत पर उर्जा
सुरक्षा सुनिश्चित न हो । इसके लिए सभी देशों को गैर परंपरागत स्वच्छ ऊर्जा
स्रेतों के दोहन के लिए पर्याप्त कदम उठा उठाने होंगे । भारत सौर ऊर्जा और पवन
ऊर्जा जैसे गैर परंपरागत स्वच्छ ऊर्जा स्रेतों के दोहन के लिए पर्याप्त कदम उठा
रहा है। भारत का लक्ष्य अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता को मौजूदा 25000 मेगावाट से बढ़ाकर वर्ष 2017 तक दोगुना से भी ज्यादा यानी 55000 मेटावाट करने का है।
ऊर्जा आपूर्ति के लिए गैर नवीकरणीय ऊर्जा
स्रोतों जैसे कोयला, कच्चा तेल आदि पर निर्भरता इतनी बढ़ रही
है कि इन स्रोतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । विशेषज्ञों का कहना है कि अगले
40 वर्षों में इन स्रोतों के खत्म होने
की संभावना है । ऐसे में विश्वभर के सामने ऊर्जा आपूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा
स्रोतों से बिजली प्राप्त करने का विकल्प रह जाएगा । अक्षय ऊर्जा नवीकरणीय होने के
साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी है । हालांकि यह भी सत्य है कि देश की 80 प्रतिशत विद्युत आपूर्ति गैर नवीकरणीय
ऊर्जा स्रोतों से पूरी हो रही है । जिसके लिए भारी मात्रा में कोयले का आयात किया
जाता है । वर्तमान में देश की विद्युत आपूर्ति में 64 प्रतिशत योगदान कोयले से बनाई जाने वाली ऊर्जातापीय ऊर्जा का है
। विकास का जो माडल हम अपनाते जा रहे हैं
उस दृष्टि से अगली प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में हमें ऊर्जा उत्पादन को लगभग दुगना
करते जाना होगा । हमारी ऊर्जा खपत बढ़ती जा रही है। इस प्रकार ऊर्जा की मांग व
पूर्ति में जो अंतर है वह कभी कम होगा ऐसा
संभव प्रतीत नहीं होता।
सूरज से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए
फोटोवोल्टेइक सेल प्रणाली का प्रयोग किया जाता है । फोटोवोल्टेइक सेल सूरज से
प्राप्त होने वाली किरणों को ऊर्जा में तब्दील कर देता है । भारत में सौर ऊर्जा की
काफी संभावनाएं हैं क्योंकि देश के अधिकतर हिस्सों में साल में 300दिन सूरज अपनी किरणें बिखेरता है ।
फोटोवोल्टेइक सेल के जरिए सूरज की किरणों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है । भारत
में पिछले 30 वर्षों से सौर ऊर्जा पर काम हो रहा है
लेकिन पिछले तीन सालों के दौरान इसमें गति आई है । सरकार ने वर्ष 2009 में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए
जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन का अनुमोदन किया जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक ग्रिड विद्युत शुल्क दरों के साथ
समानता लाने के लिए देश में सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का विकास और संस्थापन करना
है । हालांकि सौर ऊर्जा का विकास बहुत धीमी गति से हो रहा है । सौर ऊर्जा में
प्रतिवर्ष लगभग 5 हजार खरब यूनिट बिजली बनाने की
संभावना मौजूद है जिसके लिए इस दिशा में तीव्र गति से कार्य किए जाने की आवश्यकता
है ।
लगता है बिजली की कमी से जूझ रहे भारत गणराज्य
में अब बिजली की बचत के लिए केंद्र सरकार संजीदा हो रही है। पिछले दिनों केंद्रीय नवीन एवं नवीनीकरण उर्जा
मंत्रालय ने देश के हर राज्य को कहा है कि सरकारी कार्यालय में जल्द ही सोलर
सिस्टम लगाकर बिजली की बचत सुनिश्चित की जाए। नवीनीकरण उर्जा विकास विभाग के
माध्यम से राज्यों में कराए जाने वाले इस काम के लिए केंद्र सरकार द्वारा तीस से
नब्बे फीसदी तक का अनुदान दिया जाएगा । इस योजना के तहत देश के हर प्रदेश में
सरकारी कार्यालयों में जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन के तहत सोलर सिस्टम
लगाया जाएगा। इस सिस्टम से सूर्य की रोशनी से दिन रात कार्यालय रोशन रह सकेंगे।
मंत्रालय का उद्देश्य बिजली की कमी से जूझते देश को इससे निजात दिलाना है। इसके
लिए अरबोँ रूपए के बजट प्रावधान का प्रस्ताव है जो जल्द ही योजना आयोग को प्रेषित
कर दिया जाएगा। अब सवाल इन सरकारी घोषणाओं का नहीं बल्कि इनके क्रियान्वन का है ।
उर्जा मंत्रालय द्वारा इन योजनाओ को कब तक अमलीजामा पहनाया जायेगा ये तो आगे आने
वाला वक्त ही बताएगा ।
देश के टेलीकॉम टॉवर प्रतिवर्ष लगभग 5 हजार करोड़ का तेल जला रहे हैं । यदि वह
अपनी आवश्यकता सौर ऊर्जा से प्राप्त करते हैं तो बड़ी मात्रा में डीजल बचाया जा
सकता है । सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लोगों को इसकी ओर आकर्षित करना जरूरी है
। लोग इसको समझने तो लगे हैं लेकिन इसका प्रयोग करने से कतराते हैं । छोटे स्तर पर
सोलर कूकर,सोलर बैटरी, सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहन, मोबाइल फोन आदि का प्रयोग देखने को मिल
रहा है लेकिन ज्यादा नहीं । विद्युत के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करने से लोग अभी
भी बचते हैं जिसका कारण सौर ऊर्जा का किफायती न होना है । सौर ऊर्जा अभी महंगी है
और इसके प्रति आकर्षण बढ़ाने के लिए जागरूकता जरूरी है । साथ ही यदि इसे स्टेटस
सिंबल बना दिया जाए तो लोग आकर्षित होंगे । अक्षय ऊर्जा पर्यावरण के अनुकूल भी है।
हमें घरेलू, औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में जरूरी
ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए दूसरे वैकल्पिक उपायों पर भी विचार करने की
आवश्यकता है। भारत में अक्षय ऊर्जा के कई स्रोत उपलब्ध हैं। सुदृढ़ नीतियों द्वारा
इन स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।
Article link
No comments:
Post a Comment