मुकुल व्यास
वैज्ञानिक कुछ समय से उन जीव-जंतुओं को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं,जो एक जमाने पहले पृथ्वी से लुप्त हो चुके हैं। उनकी कोशिश का यह अर्थ नहीं है कि जुरासिक पार्क जैसी कोई चीज हमारे सामने आने वाली है। हॉलिवुड की इस चर्चित साइंस फिक्शन फिल्म में वैज्ञानिकों को सैकड़ों डायनोसोर प्रजातियों को पुनर्जीवित करते हुए दिखाया गया था। करोड़ों साल पहले लुप्त हो चुके डायनोसोरों को फिर से पैदा करना एक नामुमकिन सी बात है। लेकिन मैमथ (हाथी का करीबी, लेकिन उसके दोगुने कद वाला रिश्तेदार) और उड़ न पाने वाला भारी पक्षी डोडो कुछ ऐसे विलुप्त जीव है, जिन्हें वैज्ञानिक क्लोनिंग तकनीक के जरिए पुनर्जीवित करना चाहते हैं।
इस दिशा में उन्हें कुछ कामयाबी भी मिल रही है। पिछले दिनों ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने क्लोनिंग तकनीक से एक अनोखे मेंढक का भ्रूण उत्पन्न कर दिया, जो 1983 में लुप्त हो गया था। यह मेंढक ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड के घने जंगलों में पाया जाता था। इसकी खासियत यह थी कि इसकी मादा अपने अंडे निगलने के बाद मुंह से अपनी संतानों को जन्म देती थी। प्राकृतिक आवास के विनाश और एक संक्रामक बीमारी ने इस अजीबोगरीब जीव की जाति ही नष्ट कर दी थी। वैज्ञानिकों ने लेजारस प्रोजेक्ट के तहत अपने प्रयोग में मेंढक की 'मृत' कोशिका के नाभिक को इससे मिलती-जुलती प्रजाति के ताजा अंडे में प्रत्यारोपित कर दिया। इसके लिए उन्होंने मेंढक के नमूनों का इस्तेमाल किया, जिन्हें पिछले 40 साल से एक डीप फ्रीजर में संभाल कर रखा गया था। इस प्रक्रिया में उत्पन्न कुछ अंडे विभाजित हो कर प्रारंभिक भ्रूण में तब्दील हो गए। ये भ्रूण कुछ दिन तक ही जिंदा रह पाए, लेकिन आनुवंशिक परीक्षणों से इस बात की पुष्टि हो गई कि विभाजित कोशिकाओं में विलुप्त मेंढक की जीन सामग्री मौजूद है।
इस प्रोजेक्ट से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक और न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइक आर्चर ने बताया कि हमने मृत कोशिकाओं को सक्रिय करके उन्हें जीवित कोशिकाओं में बदल दिया और इस प्रक्रिया में विलुप्त मेंढक के जीनोम (जीन समूह) को पुनर्जीवित कर दिया। विलुप्त मेंढक की ताजा कोशिकाओं का इस्तेमाल भविष्य में नए क्लोनिंग प्रयोगों के लिए किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि उनके प्रयोग ने लुप्त जीव-जंतुओं को पुनर्जीवित करने का रास्ता खोल दिया है। उनका ख्याल है कि इस तकनीक से मारीशस के विलुप्त पक्षी डोडो, साइबेरिया के मैमथ और न्यूजीलैंड के विशाल मोआ पक्षी को फिर से पैदा करना संभव है। प्रो. आर्चर कहना है कि विलुप्त जंतुओं के पुनर्जीवन में अड़चनें सिर्फ तकनीकी हैं, इसके लिए जैविक तौर पर कोई रुकावट नहीं है। इस तकनीक का उपयोग ऐसे जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए भी किया जा सकता है, जिनके लुप्त होने का खतरा है।
प्रो. आर्चर ने पिछले दिनों वॉशिंगटन में एक सम्मेलन के दौरान पहली बार अपने लेजारस प्रोजेक्ट के बारे में सार्वजनिक रूप से चर्चा की। नेशनल ज्योग्रैफिक सोसाइटी द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में दुनिया के विभिन्न कोनों से आए रिसर्चरों ने विलुप्त जीव-जंतुओं और पौधों को फिर से जीवित करने के उपायों पर विचार किया और इस संबंध में अब तक की प्रगति का जायजा लिया। आर्चर ने सम्मेलन को बताया कि उनका इरादा अब ऑस्ट्रेलिया के विलुप्त तस्मानियाई बाघ को क्लोनिंग के जरिये पुनर्जीवित करने का है।
विलुप्त जीवों को पुनर्जीवित करने की कोशिश में सबसे दिलचस्प मामला मैमथ का है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हाथी का यह नजदीकी रिश्तेदार 20 साल के अंदर साइबेरिया के घास के मैदानों में फिर से चहलकदमी करता हुआ दिख सकता है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों की कई टीमें उत्तरी रूस से मिले मैमथ जीवाश्मों के डीएनए के विश्लेषण से उसका जीन मैप बनाने की कोशिश कर रही हैं। रूस और दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने मैमथ का जीवित नमूना तैयार करने के लिए एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट के लिए वे मैमथ कोशिका के नाभिक और एशियाई हाथी के अंडाणु का इस्तेमाल करेंगे। यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है क्योंकि हाथी से अंडाणु हासिल करने में अभी तक किसी को भी सफलता नहीं मिली है। जापानी वैज्ञानिक पांच साल के अंदर मैमथ का क्लोन तैयार करने का सपना देख रहे हैं।
हावर्ड यूनिवर्सिटी के आनुवंशिक वैज्ञानिक जार्ज चर्च का कहना है कि करीब 4000 वर्ष पहले विलुप्त हो जाने के बावजूद साइबेरिया की बर्फीली जमीन में सुरक्षित मैमथ जीवाश्मों से डीएनए निकालना संभव है। चर्च के मुताबिक मैमथ के सही-सही जीन नक्शे के आधार पर एशियाई हाथी के जीन-नक्शे को संशोधित किया जाएगा। संशोधित जीन नक्शे का मैमथ के जीन नक्शे से पूरी तरह मिलान होने पर एशियाई हाथी के अंडाणु को निषेचित करके एक भ्रूण तैयार किया जाएगा। यह एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है। इस विधि से जन्म लेने वाला जीव मैमथ जैसा हो सकता है, लेकिन वह मैमथ की हूबहू कॉपी नहीं होगा।
विलुप्त प्रजातियों के डीएनए के लिए बर्फ में सुरक्षित जीवाश्मों को सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। साइबेरिया के परमाफ्रॉस्ट (स्थायी रूप से जमी हुई जमीन) में मैमथ के कई जीवाश्म मिले हैं, जो काफी अच्छी हालत में हैं। लेकिन रिसर्च के लिए उपयोगी डीएनए का बर्फ में संरक्षण अनिवार्य नहीं है। रिसर्चरों ने संग्रहालयों में रखे विलुप्त जीवों के नमूनों से भी जीन सामग्री जुटा ली है। मसलन, हावर्ड के आनुवंशिक वैज्ञानिकों ने एक संग्रहालय में रखे एक विलुप्त कबूतर, पैसेंजर पिजन के 100 साल पुराने नमूने के डीएनए से उसका जीन नक्शा तैयार कर लिया है। अब वे इस नक्शे के आधार पर पैसेंजर पिजन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। पैसेंजर पिजन के विशिष्ट जीनों को एक सामान्य कबूतर में समाहित करके वे पैसेंजर पिजन जैसा पक्षी पैदा करने की कोशिश करेंगे। कुछ साल पहले रिसर्चरों के एक अन्य दल ने तस्मानियाई बाघ के 100 साल पुराने नमूने से डीएनए अलग कर लिया था।
कुछ विशेषज्ञों ने विलुप्त जीवों को फिर से जिंदा करने के प्रयोगों के औचित्य पर सवाल उठाए हैं। अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टुअर्ट पिम का कहना है कि बहुत सी प्रजातियां कुदरती आवास के असुरक्षित होने के कारण पृथ्वी से ओझल हो गई थीं। ऐसी प्रजातियों को पुनर्जीवित करके हम उनका क्या करेंगे, और आखिर उन्हें बसाएंगे कहां?
वैज्ञानिक कुछ समय से उन जीव-जंतुओं को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं,जो एक जमाने पहले पृथ्वी से लुप्त हो चुके हैं। उनकी कोशिश का यह अर्थ नहीं है कि जुरासिक पार्क जैसी कोई चीज हमारे सामने आने वाली है। हॉलिवुड की इस चर्चित साइंस फिक्शन फिल्म में वैज्ञानिकों को सैकड़ों डायनोसोर प्रजातियों को पुनर्जीवित करते हुए दिखाया गया था। करोड़ों साल पहले लुप्त हो चुके डायनोसोरों को फिर से पैदा करना एक नामुमकिन सी बात है। लेकिन मैमथ (हाथी का करीबी, लेकिन उसके दोगुने कद वाला रिश्तेदार) और उड़ न पाने वाला भारी पक्षी डोडो कुछ ऐसे विलुप्त जीव है, जिन्हें वैज्ञानिक क्लोनिंग तकनीक के जरिए पुनर्जीवित करना चाहते हैं।
इस दिशा में उन्हें कुछ कामयाबी भी मिल रही है। पिछले दिनों ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने क्लोनिंग तकनीक से एक अनोखे मेंढक का भ्रूण उत्पन्न कर दिया, जो 1983 में लुप्त हो गया था। यह मेंढक ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड के घने जंगलों में पाया जाता था। इसकी खासियत यह थी कि इसकी मादा अपने अंडे निगलने के बाद मुंह से अपनी संतानों को जन्म देती थी। प्राकृतिक आवास के विनाश और एक संक्रामक बीमारी ने इस अजीबोगरीब जीव की जाति ही नष्ट कर दी थी। वैज्ञानिकों ने लेजारस प्रोजेक्ट के तहत अपने प्रयोग में मेंढक की 'मृत' कोशिका के नाभिक को इससे मिलती-जुलती प्रजाति के ताजा अंडे में प्रत्यारोपित कर दिया। इसके लिए उन्होंने मेंढक के नमूनों का इस्तेमाल किया, जिन्हें पिछले 40 साल से एक डीप फ्रीजर में संभाल कर रखा गया था। इस प्रक्रिया में उत्पन्न कुछ अंडे विभाजित हो कर प्रारंभिक भ्रूण में तब्दील हो गए। ये भ्रूण कुछ दिन तक ही जिंदा रह पाए, लेकिन आनुवंशिक परीक्षणों से इस बात की पुष्टि हो गई कि विभाजित कोशिकाओं में विलुप्त मेंढक की जीन सामग्री मौजूद है।
इस प्रोजेक्ट से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक और न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइक आर्चर ने बताया कि हमने मृत कोशिकाओं को सक्रिय करके उन्हें जीवित कोशिकाओं में बदल दिया और इस प्रक्रिया में विलुप्त मेंढक के जीनोम (जीन समूह) को पुनर्जीवित कर दिया। विलुप्त मेंढक की ताजा कोशिकाओं का इस्तेमाल भविष्य में नए क्लोनिंग प्रयोगों के लिए किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि उनके प्रयोग ने लुप्त जीव-जंतुओं को पुनर्जीवित करने का रास्ता खोल दिया है। उनका ख्याल है कि इस तकनीक से मारीशस के विलुप्त पक्षी डोडो, साइबेरिया के मैमथ और न्यूजीलैंड के विशाल मोआ पक्षी को फिर से पैदा करना संभव है। प्रो. आर्चर कहना है कि विलुप्त जंतुओं के पुनर्जीवन में अड़चनें सिर्फ तकनीकी हैं, इसके लिए जैविक तौर पर कोई रुकावट नहीं है। इस तकनीक का उपयोग ऐसे जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए भी किया जा सकता है, जिनके लुप्त होने का खतरा है।
प्रो. आर्चर ने पिछले दिनों वॉशिंगटन में एक सम्मेलन के दौरान पहली बार अपने लेजारस प्रोजेक्ट के बारे में सार्वजनिक रूप से चर्चा की। नेशनल ज्योग्रैफिक सोसाइटी द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में दुनिया के विभिन्न कोनों से आए रिसर्चरों ने विलुप्त जीव-जंतुओं और पौधों को फिर से जीवित करने के उपायों पर विचार किया और इस संबंध में अब तक की प्रगति का जायजा लिया। आर्चर ने सम्मेलन को बताया कि उनका इरादा अब ऑस्ट्रेलिया के विलुप्त तस्मानियाई बाघ को क्लोनिंग के जरिये पुनर्जीवित करने का है।
विलुप्त जीवों को पुनर्जीवित करने की कोशिश में सबसे दिलचस्प मामला मैमथ का है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हाथी का यह नजदीकी रिश्तेदार 20 साल के अंदर साइबेरिया के घास के मैदानों में फिर से चहलकदमी करता हुआ दिख सकता है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों की कई टीमें उत्तरी रूस से मिले मैमथ जीवाश्मों के डीएनए के विश्लेषण से उसका जीन मैप बनाने की कोशिश कर रही हैं। रूस और दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने मैमथ का जीवित नमूना तैयार करने के लिए एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट के लिए वे मैमथ कोशिका के नाभिक और एशियाई हाथी के अंडाणु का इस्तेमाल करेंगे। यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है क्योंकि हाथी से अंडाणु हासिल करने में अभी तक किसी को भी सफलता नहीं मिली है। जापानी वैज्ञानिक पांच साल के अंदर मैमथ का क्लोन तैयार करने का सपना देख रहे हैं।
हावर्ड यूनिवर्सिटी के आनुवंशिक वैज्ञानिक जार्ज चर्च का कहना है कि करीब 4000 वर्ष पहले विलुप्त हो जाने के बावजूद साइबेरिया की बर्फीली जमीन में सुरक्षित मैमथ जीवाश्मों से डीएनए निकालना संभव है। चर्च के मुताबिक मैमथ के सही-सही जीन नक्शे के आधार पर एशियाई हाथी के जीन-नक्शे को संशोधित किया जाएगा। संशोधित जीन नक्शे का मैमथ के जीन नक्शे से पूरी तरह मिलान होने पर एशियाई हाथी के अंडाणु को निषेचित करके एक भ्रूण तैयार किया जाएगा। यह एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है। इस विधि से जन्म लेने वाला जीव मैमथ जैसा हो सकता है, लेकिन वह मैमथ की हूबहू कॉपी नहीं होगा।
विलुप्त प्रजातियों के डीएनए के लिए बर्फ में सुरक्षित जीवाश्मों को सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। साइबेरिया के परमाफ्रॉस्ट (स्थायी रूप से जमी हुई जमीन) में मैमथ के कई जीवाश्म मिले हैं, जो काफी अच्छी हालत में हैं। लेकिन रिसर्च के लिए उपयोगी डीएनए का बर्फ में संरक्षण अनिवार्य नहीं है। रिसर्चरों ने संग्रहालयों में रखे विलुप्त जीवों के नमूनों से भी जीन सामग्री जुटा ली है। मसलन, हावर्ड के आनुवंशिक वैज्ञानिकों ने एक संग्रहालय में रखे एक विलुप्त कबूतर, पैसेंजर पिजन के 100 साल पुराने नमूने के डीएनए से उसका जीन नक्शा तैयार कर लिया है। अब वे इस नक्शे के आधार पर पैसेंजर पिजन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। पैसेंजर पिजन के विशिष्ट जीनों को एक सामान्य कबूतर में समाहित करके वे पैसेंजर पिजन जैसा पक्षी पैदा करने की कोशिश करेंगे। कुछ साल पहले रिसर्चरों के एक अन्य दल ने तस्मानियाई बाघ के 100 साल पुराने नमूने से डीएनए अलग कर लिया था।
कुछ विशेषज्ञों ने विलुप्त जीवों को फिर से जिंदा करने के प्रयोगों के औचित्य पर सवाल उठाए हैं। अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टुअर्ट पिम का कहना है कि बहुत सी प्रजातियां कुदरती आवास के असुरक्षित होने के कारण पृथ्वी से ओझल हो गई थीं। ऐसी प्रजातियों को पुनर्जीवित करके हम उनका क्या करेंगे, और आखिर उन्हें बसाएंगे कहां?
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