मुकुल व्यास ॥
प्राचीन मंगल में परिस्थितियां जीवन के लिए सहायक थीं। आज बेजान सा दिखने वाला लाल ग्रह तब माध्यमिक रूप से गर्म था और वहां पानी भी मौजूद था। मंगल पर सक्रिय नासा के क्यूरिऑसिटी रोवर ने पता लगाया है कि अतीत में वहां की स्थितियां जीवाणुओं के पनपने योग्य थीं। क्यूरिऑसिटी की इस खोज के बाद वैज्ञानिक इस संभावना पर गंभीरतापूर्वक विचार करने लगे हैं कि मंगल पर जीवन की उत्पत्ति शायद पृथ्वी से पहले ही हो गई थी। हो सकता है, पृथ्वी पर जीवन का बीजारोपण मंगल से आए जीवाणुओं ने ही किया हो। कुछ जीवाणु विषम परिस्थितियों में जिंदा रह सकते है और अंतरिक्ष में लंबी यात्रा झेल सकते हैं। क्या पता कभी किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉयड) के प्रहार के बाद मंगल से छिटकी चट्टानें जीवाणुओं को लेकर पृथ्वी पर पहुंच गई हों।
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मंगल पर कितने समय पहले जीवन के अनुकूल परिस्थितियां मौजूद थीं। लेकिन समय गणना के लिए इसकी तुलना पृथ्वी से की जा सकती है, जहां करीब 3.8 अरब वर्ष पहले जीवन पहली बार प्रकट हुआ था। क्यूरिऑसिटी के प्रमुख वैज्ञानिक जॉन ग्रोटजिंगर के अनुसार मंगल पर 3 अरब वर्ष से भी काफी पहले परिस्थितियां जीवन के लिए सहायक थीं। क्यूरिऑसिटी की वैज्ञानिक टीम का ताजा निष्कर्ष मंगल की चट्टान के भीतरी भाग से लिए गए नमूने के अध्ययन पर आधारित है। जोन क्लेन नामक यह चट्टान करीब तीन अरब साल पुरानी है और अतीत में पानी सोख चुकी है। गत फरवरी में क्यूरिऑसिटी ने अपने उपकरण से इस चट्टान में 6.4 सेंटीमीटर का छेद करके वहां से कुछ नमूने निकाले थे। इतनी गहरी खुदाई अभी तक मंगल पर गए किसी और रोबोट यान ने नहीं की थी।
क्यूरिऑसिटी के विश्लेषण से पता चलता है कि यह क्षेत्र पानी से तरबतर था। इसके अलावा क्यूरिऑसिटी के वैज्ञानिकों ने चट्टान में सल्फर, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, फास्फोरस और कार्बन की पहचान की है। जीवन के लिए ये तत्व आवश्यक माने जाते हैं। उन्होंने सल्फेट्स और सल्फाइड्स का भी पता लगाया है, जिनका इस्तेमाल जीवाणुओं द्वारा भोजन के रूप में किया जा सकता है। डॉ. ग्रोटजिंगर का कहना है कि ये खनिज बैटरियों की तरह हैं और ये जीवन के लिए ऊर्जा स्रोत की तरह काम कर सकते हैं। उनका यह भी मानना है कि इस क्षेत्र में बहने वाला पानी पीने योग्य था।
प्राचीन मंगल में परिस्थितियां जीवन के लिए सहायक थीं। आज बेजान सा दिखने वाला लाल ग्रह तब माध्यमिक रूप से गर्म था और वहां पानी भी मौजूद था। मंगल पर सक्रिय नासा के क्यूरिऑसिटी रोवर ने पता लगाया है कि अतीत में वहां की स्थितियां जीवाणुओं के पनपने योग्य थीं। क्यूरिऑसिटी की इस खोज के बाद वैज्ञानिक इस संभावना पर गंभीरतापूर्वक विचार करने लगे हैं कि मंगल पर जीवन की उत्पत्ति शायद पृथ्वी से पहले ही हो गई थी। हो सकता है, पृथ्वी पर जीवन का बीजारोपण मंगल से आए जीवाणुओं ने ही किया हो। कुछ जीवाणु विषम परिस्थितियों में जिंदा रह सकते है और अंतरिक्ष में लंबी यात्रा झेल सकते हैं। क्या पता कभी किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉयड) के प्रहार के बाद मंगल से छिटकी चट्टानें जीवाणुओं को लेकर पृथ्वी पर पहुंच गई हों।
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मंगल पर कितने समय पहले जीवन के अनुकूल परिस्थितियां मौजूद थीं। लेकिन समय गणना के लिए इसकी तुलना पृथ्वी से की जा सकती है, जहां करीब 3.8 अरब वर्ष पहले जीवन पहली बार प्रकट हुआ था। क्यूरिऑसिटी के प्रमुख वैज्ञानिक जॉन ग्रोटजिंगर के अनुसार मंगल पर 3 अरब वर्ष से भी काफी पहले परिस्थितियां जीवन के लिए सहायक थीं। क्यूरिऑसिटी की वैज्ञानिक टीम का ताजा निष्कर्ष मंगल की चट्टान के भीतरी भाग से लिए गए नमूने के अध्ययन पर आधारित है। जोन क्लेन नामक यह चट्टान करीब तीन अरब साल पुरानी है और अतीत में पानी सोख चुकी है। गत फरवरी में क्यूरिऑसिटी ने अपने उपकरण से इस चट्टान में 6.4 सेंटीमीटर का छेद करके वहां से कुछ नमूने निकाले थे। इतनी गहरी खुदाई अभी तक मंगल पर गए किसी और रोबोट यान ने नहीं की थी।
क्यूरिऑसिटी के विश्लेषण से पता चलता है कि यह क्षेत्र पानी से तरबतर था। इसके अलावा क्यूरिऑसिटी के वैज्ञानिकों ने चट्टान में सल्फर, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, फास्फोरस और कार्बन की पहचान की है। जीवन के लिए ये तत्व आवश्यक माने जाते हैं। उन्होंने सल्फेट्स और सल्फाइड्स का भी पता लगाया है, जिनका इस्तेमाल जीवाणुओं द्वारा भोजन के रूप में किया जा सकता है। डॉ. ग्रोटजिंगर का कहना है कि ये खनिज बैटरियों की तरह हैं और ये जीवन के लिए ऊर्जा स्रोत की तरह काम कर सकते हैं। उनका यह भी मानना है कि इस क्षेत्र में बहने वाला पानी पीने योग्य था।
क्यूरिऑसिटी के पास इस समय ऐसा कोई उपकरण नहीं है, जो मंगल पर जीवन के चिन्ह खोज सके। लेकिन वह कार्बन और हाइड्रोजन से बने कुछ कार्बनिक मॉलिक्यूल्स (अणु समूहों) की पहचान कर सकता हैं। सिर्फ कार्बनिक मॉलिक्यूल्स की मौजूदगी से ही जीवन की पुष्टि नहीं की जा सकती क्योंकि कई अजैविक रासायनिक प्रतिक्रियाओं से भी कार्बनिक मॉलिक्यूल्स उत्पन्न हो सकते हैं। दूसरी तरफ हम यह भी जानते हैं कि जीवन निर्माण के लिए कार्बनिक मॉलिक्यूल्स का होना जरूरी है। फिलहाल क्यूरिऑसिटी के वैज्ञानिक यह नहीं कह रहे हैं कि चट्टान में कार्बनिक मॉलिक्यूल्स मौजूद हैं। लेकिन वे इसकी संभावना से इनकार भी नहीं कर रहे हैं। क्यूरिऑसिटी के पास अपना प्राथमिक मिशन पूरा करने के लिए अभी 17 महीने बाकी हैं और वैज्ञानिकों को कुछ और रोचक जानकारियां मिलने की उम्मीद है।
पहले भेजे गए नासा के दो रोवरों, स्पिरिट और अपॉरच्युनिटी ने मंगल की सतह पर तरल जल की मौजूदगी के पक्के सबूत जुटाए थे। लेकिन यह ग्रह की ऐसी जगहों पर था, जहां अम्ल और लवण की मात्रा बहुत ज्यादा थी। इस तरह के हालात जीवाणुओं के लिए कठोर होते हैं। क्यूरिऑसिटी के उपकरणों ने कुछ साधारण किस्म के कार्बनिक पदार्थ अवश्य खोजे हैं। रिसर्चर यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि ये रसायन मंगल की चट्टानों से निकले हैं या वे पृथ्वी से मंगल पर पहुंचे प्रदूषण की देन हैं। चट्टान के पाउडर को गर्म करने के दौरान रासायनिक क्रियाओं से भी इस तरह के कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न हो सकते हैं। कार्बनिक मॉलिक्यूल्स के बारे में किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने से पहले वैज्ञानिक पूरी तरह से आश्वस्त होना चाहते हैं। फिर भी नासा के वैज्ञानिक क्यूरिऑसिटी के ताजा विश्लेषण से उपजी संभावनाओं को लेकर बेहद रोमांचित हैं।
मंगल की सतह आज ठंडी और शुष्क है। उसे अंतरिक्ष से रेडिएशन का प्रहार भी झेलना पड़ता है। लेकिन ग्रहों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि तीन अरब वर्ष से भी पहले मंगल अपने यौवन काल में जीवन के लिए ज्यादा अनुकूल स्थान था। वहां के मौसम में गर्माहट थी और वायुमंडल काफी घना था। उसकी सतह पर पानी बहता था। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि अतीत में मंगल पर जीवन अंकुरित हुआ था तो मुमकिन है कि उसका कोई रूप वहां सतह के नीचे आज भी पनप रहा हो। करीब तीन अरब वर्ष पहले मंगल के हालात बदल गए थे। वह अपने अधिकांश वायुमंडल को संभाल नहीं पाया। ग्रह का भीतरी भाग ठंडा हो गया और सतह पर मौजूद ज्वालामुखियों ने फटना बंद कर दिया। उसका पानी जम गया या अंतरिक्ष में उड़ गया। इसके परिणामस्वरूप मंगल ठंडा और शुष्क हो गया।
क्यूरिऑसिटी रोवर पिछले साल मंगल के गेल नामक क्रेटर में उतरा था और वह तभी से इस क्षेत्र में चहलकदमी कर रहा है। रोवर का मुख्य लक्ष्य क्रेटर के बीच करीब पांच किलोमीटर ऊंचे पहाड़, माउंट शार्प तक पहुंचना है। परिक्रमारत यानों के पर्यवेक्षण के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस पहाड़ पर चिकनी मिट्टी का पता लगाया था। अब वैज्ञानिकों ने पहाड़ तक पहुंचने से पहले ही चिकनी मिट्टी का पता लगा लिया है और अब वे इसके नमूनों में कार्बनिक पदार्थों की खोज पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करेंगे। नासा के मंगल अन्वेषण कार्यक्रम से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक माइकल मेयर का कहना है कि मंगल ने गेल क्रेटर की चट्टानों में अपनी आत्मकथा लिख दी है, हमने अभी इसके पन्ने उलटने ही शुरू किए हैं।
मंगल की गुत्थियों को सुलझाने में काफी वक्त लगेगा। फिलहाल नासा के इंजीनियर क्यूरोऑसिटी के कंप्यूटर में आई खराबी को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। कंप्यूटर की मेमरी का कुछ हिस्सा करप्ट हो गया है। इंजीनियर फिलहाल यह जानने में जुटे हैं कि क्या कंप्यूटर के री-स्टार्ट होने पर यह खराबी दूर हो जाएगी, या स्थायी रूप से बनी रहेगी। दूसरी समस्या यह है कि अप्रैल के अधिकांश दिनों में सूरज के मंगल और पृथ्वी के बीच में रहने से रोवर के साथ संवाद मुश्किल हो जाएगा। अगले कुछ दिनों में सीमित स्तर पर वैज्ञानिक कार्य शुरू हो सकता है, लेकिन चट्टानों की ड्रिलिंग के लिए मई तक इंतजार करना पड़ेगा।
पहले भेजे गए नासा के दो रोवरों, स्पिरिट और अपॉरच्युनिटी ने मंगल की सतह पर तरल जल की मौजूदगी के पक्के सबूत जुटाए थे। लेकिन यह ग्रह की ऐसी जगहों पर था, जहां अम्ल और लवण की मात्रा बहुत ज्यादा थी। इस तरह के हालात जीवाणुओं के लिए कठोर होते हैं। क्यूरिऑसिटी के उपकरणों ने कुछ साधारण किस्म के कार्बनिक पदार्थ अवश्य खोजे हैं। रिसर्चर यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि ये रसायन मंगल की चट्टानों से निकले हैं या वे पृथ्वी से मंगल पर पहुंचे प्रदूषण की देन हैं। चट्टान के पाउडर को गर्म करने के दौरान रासायनिक क्रियाओं से भी इस तरह के कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न हो सकते हैं। कार्बनिक मॉलिक्यूल्स के बारे में किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने से पहले वैज्ञानिक पूरी तरह से आश्वस्त होना चाहते हैं। फिर भी नासा के वैज्ञानिक क्यूरिऑसिटी के ताजा विश्लेषण से उपजी संभावनाओं को लेकर बेहद रोमांचित हैं।
मंगल की सतह आज ठंडी और शुष्क है। उसे अंतरिक्ष से रेडिएशन का प्रहार भी झेलना पड़ता है। लेकिन ग्रहों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि तीन अरब वर्ष से भी पहले मंगल अपने यौवन काल में जीवन के लिए ज्यादा अनुकूल स्थान था। वहां के मौसम में गर्माहट थी और वायुमंडल काफी घना था। उसकी सतह पर पानी बहता था। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि अतीत में मंगल पर जीवन अंकुरित हुआ था तो मुमकिन है कि उसका कोई रूप वहां सतह के नीचे आज भी पनप रहा हो। करीब तीन अरब वर्ष पहले मंगल के हालात बदल गए थे। वह अपने अधिकांश वायुमंडल को संभाल नहीं पाया। ग्रह का भीतरी भाग ठंडा हो गया और सतह पर मौजूद ज्वालामुखियों ने फटना बंद कर दिया। उसका पानी जम गया या अंतरिक्ष में उड़ गया। इसके परिणामस्वरूप मंगल ठंडा और शुष्क हो गया।
क्यूरिऑसिटी रोवर पिछले साल मंगल के गेल नामक क्रेटर में उतरा था और वह तभी से इस क्षेत्र में चहलकदमी कर रहा है। रोवर का मुख्य लक्ष्य क्रेटर के बीच करीब पांच किलोमीटर ऊंचे पहाड़, माउंट शार्प तक पहुंचना है। परिक्रमारत यानों के पर्यवेक्षण के आधार पर वैज्ञानिकों ने इस पहाड़ पर चिकनी मिट्टी का पता लगाया था। अब वैज्ञानिकों ने पहाड़ तक पहुंचने से पहले ही चिकनी मिट्टी का पता लगा लिया है और अब वे इसके नमूनों में कार्बनिक पदार्थों की खोज पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करेंगे। नासा के मंगल अन्वेषण कार्यक्रम से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक माइकल मेयर का कहना है कि मंगल ने गेल क्रेटर की चट्टानों में अपनी आत्मकथा लिख दी है, हमने अभी इसके पन्ने उलटने ही शुरू किए हैं।
मंगल की गुत्थियों को सुलझाने में काफी वक्त लगेगा। फिलहाल नासा के इंजीनियर क्यूरोऑसिटी के कंप्यूटर में आई खराबी को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। कंप्यूटर की मेमरी का कुछ हिस्सा करप्ट हो गया है। इंजीनियर फिलहाल यह जानने में जुटे हैं कि क्या कंप्यूटर के री-स्टार्ट होने पर यह खराबी दूर हो जाएगी, या स्थायी रूप से बनी रहेगी। दूसरी समस्या यह है कि अप्रैल के अधिकांश दिनों में सूरज के मंगल और पृथ्वी के बीच में रहने से रोवर के साथ संवाद मुश्किल हो जाएगा। अगले कुछ दिनों में सीमित स्तर पर वैज्ञानिक कार्य शुरू हो सकता है, लेकिन चट्टानों की ड्रिलिंग के लिए मई तक इंतजार करना पड़ेगा।
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