Saturday 23 March 2013

आज अर्थ हावर पर विशेष -भावी पीढ़ी के “उजाले “ के लिए


अर्थ आवर यानी  दुनिया में पृथ्वी को बचाने की एक छोटी सी कोशिश जिसमे लगभग 100  देश और 6000  शहर जुड़ चुके हैं । 2007 में ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर से अर्थ आवर की शुरुआत हुई। कुछ लोगों को ख्याल आया कि कम से कम 1 घंटे के लिए ही हम ऊर्जा की बेतहाशा खपत पर लगाम लगाएं। कुछ लोगों की यह कोशिश आज पूरे विश्व में एक सकारात्मक अभियान का हिस्सा है । पहली बार  2007 में  22 लाख घरों और उद्योगों ने एक घंटे के लिए अपनी लाइटें बंद कर दीं। जब हम  घरों की बत्ती बुझाते हैं तो हम समाज और दुनिया को बेहतर बनानेके आन्दोलन का अहम हिस्सा बन जाते हैं।
वल्र्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) द्वारा शुरू किए गए अर्थ आवर अभियान में दुनिया के 5 करोड़ से ज्यादा लोग पर्यावरण के प्रति चिंता जाहिर करते हुए एक घंटे के लिए इसका हिस्सा बन रहें है । एक शहर से शुरू हुई इस अनोखी पहल में आज दुनिया के सैकड़ों शहर शामिल होंगे । एक घंटे के लिए ये शहर इस उम्मीद में अंधेरे में डूब जाते हैं कि आने वाली पीढ़ियों को उर्जा संकट और ग्लोबल वार्मिंग का कहर न झेलना पड़े ।
क्या  हम उर्जा बचत में विश्वास रखते हैं ? या इसे महज एक नारा समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं ? हम में से अधिकांश का सोचना है कि यह हमारी नहीं ,सरकार की जरूरत है। बिजली की कमी हो रही है तो इसकी देखभाल बिजली बोर्ड करेगा ,हम क्यों  करें ? कार्यालय से बाहर जाते समय वातानुकूलक यंत्र, पंखे, ट्यूबलाइट, संगणक यंत्र इत्यादि चालू रहते हैं ,तो हमें इससे क्या मतलब ? बिल हमें थोड़े ना भरना है। या हम में से कई सोचते है कि हमारे अकेले के बचत करने से क्या होने वाला है ? देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए हमें उर्जा बचत के महत्व को समझना होगा । यदि उर्जा का उपयोग सोच समझ कर नहीं किया गया तो इसका भंडार जल्द ही समाप्त  हो सकता है। आज हम बचत करेंगे तो ही भविष्यं सुविधाजनक रह पाएगा। उर्जा बचत के उपायों को शीघ्रतापूर्वक और सख्ती से अमल में लाए जाने की जरूरत है ।   
वैश्वीकरण के दौर में आज हमारी जीवन शैली में तेजी से बदलाव हो रहे हैं । यह बदलाव हम इस रूप में भी देख सकते हैं कि जो काम दिन के उजाले में सरलता से हो सकते हैं उन्हें भी हम देर रात तक अतिरिक्त प्रकाश व्यवस्था करके करते हैं। हमारी दिनचर्या दिन प्रतिदिन अधिकाधिक ऊर्जा की मांग करती जा रही है।  विकास का जो माडल हम अपनाते जा रहे हैं उस दृष्टि से अगली प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में हमें ऊर्जा उत्पादन को लगभग दुगना करते जाना होगा । हमारी ऊर्जा खपत बढ़ती जा रही है। इस प्रकार ऊर्जा की मांग व पूर्ति में जो अंतर है वह कभी  कम होगा ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता .
  एक अनुमान के अनुसार उर्जा संरक्षण उपायों से देशभर में 25,000 मेगावाट बिजली की बचत की जा सकती है। उर्जा संरक्षण के लिये सरकार बचत लैंप योजना, स्टार रेटिंग कार्यक्रम, इमारतों को उर्जा दक्ष बनाने जैसे कई कार्यक्रम चला रही है। पिछले दिनों सरकार ने उर्जा क्षमता विस्तार के राष्ट्रीय मिशन को मंजूरी दी है। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर जारी वैश्विक चिंता के बीच भारत ने 2020 तक कार्बन उत्सर्जन में 2005 के स्तर से 20 से 25 फ़ीसद कमी लाने की प्रतिबद्धता जतायी है। इसी कड़ी में उर्जा संरक्षण उपायों पर जोर दिया जा रहा है। बिजली की कमी से जूझ रहे भारत गणराज्य में अब बिजली की बचत के लिए केंद्र सरकार संजीदा हो रही  है। पिछले  दिनों केंद्रीय नवीन एवं नवीनीकरण उर्जा मंत्रालय ने देश के हर राज्य को कहा है कि सरकारी कार्यालय में जल्द ही सोलर सिस्टम लगाकर बिजली की बचत सुनिश्चित की जाए। नवीनीकरण उर्जा विकास विभाग के माध्यम से राज्यों में कराए जाने वाले इस काम के लिए केंद्र सरकार द्वारा तीस से नब्बे फीसदी तक का अनुदान दिया जाएगा । इस योजना के तहत देश के हर प्रदेश में सरकारी कार्यालयों में जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन के तहत सोलर सिस्टम लगाया जाएगा। इस सिस्टम से सूर्य की रोशनी से दिन रात कार्यालय रोशन रह सकेंगे। मंत्रालय का उद्देश्य बिजली की कमी से जूझते देश को इससे निजात दिलाना है। पिछले दिनों देश में यात्री कारों पर उर्जा बचत के मानक लागू करने के विषय में उद्योग के साथ सहमति बन गयी है और सरकार कारों पर स्टार रेटिंग की व्यवस्था लागू करने की घोषणा कर चुकी है । स्टार रेटिंग के तहत वाहनों पर लगे स्टार के निशान से उसमें उर्जा बचत की क्षमता का अंदाज लगाया जा सकेगा । बीईई का स्टार रेटिंग कार्यक्रम उर्जा बचाने का एक प्रमुख कार्यक्रम है ।
उर्जा की उत्पत्ति ,उपलब्ध उर्जा का संरक्षण तथा उर्जा को सही दिशा देना जरूरी है उर्जा को बचाने के लिए हमेशा छोटे कदमो की जरूरत होती है जिनके असर बडे होते है जैसे एक पैसा बचाने का अर्थ है एक पैसा कमाना ।
पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन निश्चित हैं। आज प्रकृति के मिट्टी, पत्थर, पानी, खनिज, धातु को भौतिक सुख साधनों में बदलकर उससे विकसित होने का सपना देखा जा रहा है, जिससे अंधाधुंध ऊर्जा खपत बढ़ रही है। इस कथित विकास में इस बात की अनदेखी हो रही है कि प्रकृति में पदार्थ की मात्रा निश्चित है, जो बढ़ाई नहीं जा सकती। फिर भी पदार्थ का रूप बदलकर, सुख साधनों में परिवर्तन करके, खपत बढ़ाकर विकास का रंगीन सपना देखा जा रहा है। इस विकास के चलते संसाधनों का संकट, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, पानी की कमी , उर्जा की व्यापक कमी आदि मुश्किलें सिर पर मंडरा रही हैं।
सिर्फ सरकारी प्रयासों से उर्जा संरक्षण की दिशा में बड़ा परिवर्तन नहीं होगा । इसके लिए हम सबको व्यक्तिगत तौर पर भी जिम्मेदार बनना होगा तभी हम अपने देश का ,समाज का और अपनी आगे आने वाली पीढियों का भला कर पायेगे । बचत चाहे छोटे स्तर पर क्यों न हो , जरूर कारगर होगी क्योंकि बूंद-बूंद से ही सागर भरता है। आज हम संभल कर उर्जा के साधनों का इस्तेनमाल करेंगे तो ही इनके भंडार भविष्य तक रह पाएंगे। कोशिश जमीन स्तर से की जाए तो आकाश छूने में समय नहीं लगेगा । बशर्ते देश का प्रत्येक नागरिक इस दिशा में जागरूक हो तथा हर संभव उर्जा बचत करें तथा औरों को भी इसका महत्व  बताएं। अपने परिवेश में बिजली ,पेट्रोल ,गैस,उर्जा की बचत करने का एक महान संकल्प लेकर एक नव चिंतन को क्रियान्वित करने की शुभ शुरूआत करे। क्योकि उर्जा संरक्षण ,बिजली का मितव्ययी उपयोग समय का तकाजा है जिसे हमें स्वीकार करना ही होगा ।


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